‘महान व समृद्ध देश के निर्माण के लिए स्वस्थ प्रजनन दर आवश्यक’
जोधपुर,’महान व समृद्ध देश के निर्माण के लिए स्वस्थ प्रजनन दर आवश्यक’।भारत पर घटती आबादी का खतरा विषय पर स्वदेशी शोध संस्थान तथा स्वदेशी जागरण मंच के संयुक्त तत्वावधान में एक परिचर्चा का आयोजन जोधपुर में किया गया। परिचर्चा में मुख्य वक्ता स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ.धर्मेंद्र दुबे थे।
स्वदेशी जागरण मंच,जोधपुर प्रांत के सह प्रांत प्रचार प्रमुख राधेश्याम बंसल ने बताया कि तीन दिन पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ.मोहनराव भागवत द्वारा देश की घटती जनसंख्या वृद्धि दर के खतरे विषय पर दिए गए उद्बोधन के संबंध में विस्तृत परिचर्चा में बोलते हुए डॉ. धर्मेंद्र दुबे ने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच की शोध इकाई स्वदेशी शोध संस्थान द्वारा गत 3 वर्षों के अनुसंधान के तहत देश व विदेश में प्रजनन दर तथा उनके विकास के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट में विश्व डेमोग्राफी में भारत की घटती प्रजनन दर पर चिंता व्यक्त की गई है। घटती आबादी हमारे परिवार का तो विघटन करेगी ही साथ में हमें आर्थिक महाशक्ति व स्वावलंबी होने के सपने को भी पूरा नहीं होने देगी।
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मधुमेह नियंत्रण का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जहां बढी हुई शर्करा स्तर के नियंत्रण के लिए इंसुलिन तथा अन्य दवाओं का सेवन करना पड़ता है तो शर्करा का स्तर कम होने पर शर्करा का सेवन भी करना आवश्यक हो जाता है। उन्होंने कहा कि 1947 में जब प्रजनन दर 6 तथा 1960 में 4 से अधिक थी तब जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता थी,लेकिन आज जब प्रजनन दर आवश्यक 2.1 के स्तर से नीचे जा रही है तो इसे पुनः बढ़ाकर 2.1 से ऊपर ले जाने की आवश्यकता है।
चीन,रूस,कोरिया में विवाह की आयु तथा प्रजनन दर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जनसंख्या किसी भी देश के विकास में बाधक नहीं अपितु साधक ही बनती है।परिचर्चा को संबोधित करते हुए स्वावलंबी भारत अभियान के प्रदेश समन्वयक अनिल वर्मा ने कहा कि जहां घटती हुई प्रजनन दर राष्ट्र के विकास को बाधित करती है तो साथ ही परिवार के समग्र विकास को भी रोकती है।
भारत के विकास में परिवार नामक संस्था का अपना बड़ा महत्व रहा है। प्रजनन दर कम होने के चलते घर में केवल एक या दो बच्चों के जन्म के कारण हमारे रिश्ते समाप्त होते जा रहे हैं। चाचा, ताऊ,मामा,मौसी,बुआ जैसे खून के रिश्ते अब धीरे-धीरे लुप्त होते चले जा रहे हैं। बच्चों की संख्या कम होने व नौकरी या अन्य व्यवसाय से बच्चों के बाहर चले जाने पर बड़े बुजुर्गों की देखरेख करने की पद्धति भी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। परिणामस्वरुप भारत में भी वृद्धआश्रमों की परंपरा बढ़ने लगी है। ऐसे में यदि हमारे परिवारों में दो या तीन बच्चे नहीं हुए तो हमारी पारिवारिक ढांचागत विकास की परिकल्पना भी कठिन हो जाएगी।
राधेश्याम बंसल ने बताया कि स्वदेशी जागरण मंच आने वाले समय में परिवार को बचाने,भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने हेतु इस विषय को लेकर के जन जागरण अभियान चलाएगा।परिचर्चा में जितेंद्र मेहरा,हंसराज,रमेश बिश्नोई, दौलाराम डूडी,मनोहर सिंह चारण सहित अनेक स्वदेशी कार्यकर्ता उपस्थित थे।