नेपथ्य की अनुगूँज का प्रसार है हाइकु – दीप्ति कुलश्रेष्ठ
‘नीलकंठी मैं’ हाइकु संग्रह का लोकार्पण
जोधपुर,जयनारायण व्यास विश्व विद्यालय एवं संभावना संस्था के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कैलाश कौशल की पुस्तक ‘नीलकंठी मैं’ का लोकार्पण बृहस्पति भवन में हुआ। इस कार्यक्रम में सूर्यनगरी के साहित्यकार एवं बड़ी संख्या में छात्र वृन्द भी उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार दीप्ति कुलश्रेष्ठ ने कहा कि ‘नीलकंठी मैं’ हाइकु संग्रह में विषय वैविध्य के साथ अर्थ विस्तार एवं अर्थ की गहराई दोनों मिलते हैं।
शब्द साधना/नेपथ्य की अनुगूँज/पाती प्रसार और चाहूँ अमृत/हलाहल अपार/नीलकंठी मैं, जैसे हाइकु विस्तृत व्याख्या की माँग करते हैं। सीमित शब्द/गहें अर्थ विस्तार/सार्थक छंद,जैसे हाइकु लिख कर लेखिका ने इस पुस्तक को अर्थपूर्ण बना दिया है। कैलाश कौशल के ये हाइकु विराटता लिए हुए हैं जिनमें उनका अनुभव संगुफित है। कार्यक्रम के प्रारंभ में ‘नीलकंठी मैं’ पुस्तक का विमोचन किया गया और स्वयं लेखिका ने अपने इस हाइकु संग्रह का विस्तृत परिचय देते हुए कहा कि हाइकु इक्कीसवीं सदी की विधा है और इस विधा के वर्तमान स्वरूप के दिशावाहक प्रो सत्यभूषण वर्मा इसी विश्वविद्यालय में अध्यापन करते रहे हैं।
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1971-72 के समय वे अज्ञेय के साथ व्यास विश्वविद्यालय में ही कार्यरत थे,बाद में हिन्दी विभाग की पूर्व अध्यक्ष एवं संभावना की संस्थापिका डाॅ सावित्री डागा ने हाइकु लेखन किया और आज उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मैं अत्यंत हर्षित हूँ। कैलाश कौशल ने अपनी लोकार्पित कृति ‘नीलकंठी मैं’ में से बहुत से हाइकु पढ़े
1- पुस्तक क्रांति
खोलें खिड़की द्वार
न रहे भ्रांति
2-मधुमास ने
धरा को ओढ़ा दी है
धानी चूनर
3-कृष्ण हैं वारी
सुदामा की पोटली
राज पे भारी
4- लबालब है
प्रेम वन का ताल
जियो जी भर
5- समय खग
अथक उड़ रहा
पंख फैलाए
पूर्व में कैलाश कौशल ने जापानी विधा की हाइकु कविता के शिल्प पर अपनी बात रखते हुए कहा कि 5-7-5 के वर्ण क्रम में लिखी यह हाइकु कविता मात्र 17 अक्षरों की ही कविता नहीं है, इन तीन पंक्तियों में प्रबंध काव्य का विन्यास भी समाहित हो जाता है, हाइकु की अभिव्यक्ति का आयतन महाकाव्य का सा विस्तार समेटने में भी सक्षम है, इसमें निहित शब्दों की इयत्ता फैली हुई है। कैलाश कौशल ने नया प्रयोग करते हुए सुविख्यात रचनाओं एवं साहित्यकारों संबंधी हाइकु भी लिखे हैं-
नदी के द्वीप
विलक्षण व्यक्तित्व
धार के बीच
असाध्य वीणा
साधी तथता डूब
अज्ञेय ज्ञेय
उसने कहा
लहने ने निभाया
प्रेम ही गाया
सतसई है
गागर में सागर
कवि नागर।
वस्तुतः हाइकु भी गागर में सागर ही है जो अपनी लघु काया में विराटता लिए हुए होता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में उद्बोधन देते हुए प्रोफ़ेसर कौशलनाथ उपाध्याय ने कहा कि इन हाइकु कविताओं की अर्थवत्ता गहरी है,कदम्ब छाँह/गूँज रही बाँसुरी/गहें लो बाँह और श्याम हैं मेरे/हारिल की लकड़ी/दृढ़ पकड़ी,तथा बाट निहारें/आज तक गोपियाँ/धर्म की ग्लानि’ जैसे हाइकु कृष्ण भक्ति की तन्मयता से जोड़ते हुए भक्तिकाल का स्मरण दिलाते हैं तो कलियुग में/उपेक्षित हैं हंस/काक वंदना एवं कौड़ी के मोल/बिक रहा आदमी/अमूल्य था जो और ‘रचे मानव/वे अस्त्र लील लेते/मानव को ही,आदि के माध्यम से लेखिका ने अपनी कृति में आधुनिक विसंगतियों को उभारा है।
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विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डाॅ सरोज कौशल ने कहा कि आज हाइकु विधा जापान की सीमाएँ लाँघकर विश्व पटल पर प्रतिष्ठित है।’पाषाण शिला/ जीवित नहीं होती/हर स्पर्श से’हाइकु में बिना नाम लिए ही अहल्या उद्धार की बात तो है ही,आज के प्रसंग में देखें तो प्रेम का स्पर्श पाषाण हृदय को भी कोमल बना देता है। क्रौंच पुकार/वाङ्मय प्रस्फुटन/ करुणा भाष्य तथा प्रतिभा शक्ति/करुणा रस निष्पत्ति/ लेखन सूत्र जैसे हाइकु हमारी समृद्ध संस्कृति एवं साहित्यिक विरासत की ओर इंगित करते हैं।
डाॅ अंशुल दाधीच ने अपने पत्रवाचन में हाइकु के उद्गम पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि इन हाइकु कविताओं में जेन दर्शन और भारतीय दर्शन का सुन्दर समन्वय होने के साथ ही स्त्री संसृति का अपने समय व समाज को देखने का नजरिया प्रभावित करता है जैसे भोर का तारा,हठ करता बच्चा,जाना न चाहे अथवा वृद्धाश्रमों में,अनुभव का कोना, समाज बौना जैसे हाइकु अप्रतिम बन पड़े हैं जिनमें नारी मन की विविध छवियाँ अंकित हैं। मोहित कुलश्रेष्ठ ने प्रस्तुत हाइकु संग्रह की शब्द संपदा और शब्द शक्तियों की दृष्टि से विवेचना की। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि लेखिका ने हमें ऐसे बहुत सारे हाइकु सौंपे हैं जिनमें पाठक एक यादृच्छिक तमाशबीन मात्र नहीं रहता बल्कि एक कवि के रूप में कृति की आत्मा के साथ जुड़ता चलता है।
इस अवसर पर संभावना की पूर्व अध्यक्ष डाॅ कमल मोहनोत, उपाध्यक्ष डाॅ चाँद कौर जोशी सहित सुषमा चौहान,आशा पाराशर,दिनेश सिन्दल,डाॅ हरीदास व्यास,डाॅ सत्यनारायण,मीठेश निर्मोही,माधव, कमलेश तिवारी,हरिप्रकाश राठी,डाॅ सीआर कुमार,डाॅ मंगलाराम विश्नोई, डाॅ शरच्चंद्र भाटी,डाॅ हेमन्त शर्मा, रंगकर्मी दिनेश सारस्वत,ऋचा अग्रवाल,मनीषा डागा,डाॅ कविता डागा,दीपा खेतावत,मंजु जांगिड़,रेणु वर्मा, शिवानी पुरोहित,पद्मजा शर्मा, विनोद गहलोत,नन्दकिशोर यादव, महेन्द्र, प्रेमसिंह,कुन्दन,प्रियंका, ज्योति,प्रवीण मकवाना,अरुण राजपुरोहित,रेणुका गोपा आदि सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कवयित्री एवं गीतकार मधुर परिहार ने किया और आभार स्वाति जैसलमेरिया ने दिया।
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