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तीन दिन में 1 लाख दर्शक पहुंचे लाकानुरंजन मेले में

  • 15 राज्यों के 1018 कलाकारों ने मोह लिया मन
  • लोकानुरंजन मेला सम्पन्न

जोधपुर,तीन दिवसीय लोकानुरंजन मेला इस बार सीधे दर्शकों से कुछ ऐसे रूबरू हुआ कि उनके दिल तक अपनी अमिट छाप छोड़ गया। पहली बार अशोक उद्यान के खुले प्रांगण में हुए लोकानुरंजन के सिल्वर जुबली मौके पर उमड़े दर्शकों के सैलाब और देश के लोक कलाकारों के बीच ऐसा अपनापन एक मिसाल बन गया है।

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राजस्थान संगीत नाटक अकादमी,जिला प्रशासन,जेडीए, उदयपुर,प्रयागराज और पटियाला के केंद्रों की जानिब से आए 15 राज्यों के 1018 लोक कलाकारों ने अद्भुत प्रस्तुति से एक नए अध्याय का सूत्रपात किया। इस बार की खासियत यह रही कि खुले प्रांगण में कलाकारों के साथ दर्शकों की अंतरंगता देखते ही बन रही थी। दर्शकों ने कलाकारों के साथ जहां जमकर ठुमके लगाए वहीं सेल्फी और साथ फोटो खिंचवाने की होड़ सी दिखाई दी।

सोमवार को अशोक उद्यान के प्रांगण में 3 दिवसीय लोकानुरंजन मेले का समापन जोश जुनून के साथ हो गया। जब मंच की सारी बत्तियां बुझा कर दर्शक अपने मोबाइल की टॉर्च लगा कर झूम रहे थे तो आकाश गंगा ज़मी पर नज़र आई।

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अध्यक्ष बिनाका जेश मालू ने 24 वर्ष पहले इस मेले के प्रणेता और इस वर्ष अशोक उद्यान में मेले की कल्पना और निर्देशक राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष राज्य मंत्री कला मर्मज्ञ रमेश बोराणा सहित जेडीसी नवनीत कुमार,जिला प्रशासन,जेडीए और सभी संस्थाओं के बेहतरीन सहयोग के लिए तथा तीन दिन में आये एक लाख नागरिकों का मेले में आकर प्यार एवं कलाकारों को अपनापन देने और लुत्फ उठाने पर आभार व्यक्त किया। खुले प्रांगण में भी लोक कलाकार कहीं लोक नृत्य की छटा बिखेर रहे थे कहीं कठपुतली,जादू शो,लंगा गायन, विभिन्न प्रदेशों के लोककलाकारों, हस्तशिल्प के साथ हस्तशिल्पियों का भी जमकर आनंद लिया गया।

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मंच पर हुआ शानदार कार्यक्रम

ओपन एयर थिएटर के विशाल मंच पर हुए देश के लोक कलाकारों की प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया।
नाथूलाल के नगाड़ा वादन से शुरू प्रोग्राम में घूमर,गिद्दा,राई,नाटी नृत्यों की प्रस्तुति अद्भुत रहीं। मुजरा,गोटी, बिहु,भांगड़ा, सांगी मुखोटे नृत्यों से लोग झूम उठे। भरतपुर के मयूर नृत्य की शोभा का लोगों ने भरपूर लुत्फ उठाया। कार्यक्रम का संयोजन अकादमी अधिकारी अरुण पुरोहित, रमेश कंदोई,अरुण चारण ने किया।कोरियोग्रफी राजेश बस्सी,संचालन प्रमोद सिंघल,कविता पंवार व विलास जानवे ने किया।

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