ऋग्वेद की व्याख्या
शब्द संदर्भ ((171) ऋग्वेद
लेखक:- पार्थसारथि थपलियाल
सनातन शब्द का अर्थ है निरंतर, जो अनादि अनंतर है। इसलिए सनातन ही भारत की संस्कृति है। यह मानवीय संस्कृति है। इसमें धर्म मानवीय व्यवहार है। इस संस्कृति का आधार वैदिक संस्कृति है। वैदिक अर्थात वेदों की या वेदों से अनुप्राणित संस्कृति।
वेद चार हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनमे सबसे प्रथम ऋग्वेद है। ऋक शब्द का अर्थ है “स्थिति और ज्ञान”। ऋग्वेद पद्यात्मक है। इसमें भौगोलिक स्थिति, देवलोक, देवताओं की प्रशंसा, स्वास्थ्य विज्ञान (जल चिकित्सा,वायु चिकित्सा,सौर चिकित्सा,हवन और 125 औषधियों का वर्णन) सृष्टि की उत्पत्ति (नासदीय सूक्त), ऋग्वेद में दस मंडल,1028 सूक्त,10600 मंत्र,10580 ऋचाएं हैं। पहला और दसवां मंडल बाद में लिखे गए। दूसरे से सातवें मंडल सब से पुराने हैं। ऋग्वेद में 33 देवी देवताओं का वर्णन है। विभिन्न ऋषियों द्वारा रचित लगभग 400 स्तुतियां ऋग्वेद में हैं। जिनकी स्तुतियाँ हैं उनमें अग्नि, वायु,इंद्र,वरुण,पूषा,सूर्य,उषा,रुद्र, सविता, प्रजापति,विश्वदेव आदि हैं। ऋग्वेद में जिन ऋषियों को प्राप्त ज्ञान उपलब्ध है उनके नाम हैं- गृत्स्मद, परमेष्ठी,भारद्वाज,वामदेव,वशिष्ठ, विश्वमित्र,कण्व,लोपामुद्रा,शची,घोष, पौलोमी आदि।
ऋग्वेद की 5 शाखाएं हैं- शाकाल, वाष्कल, आश्वलायन, शांखायन और माण्डकायन।
वेदों के चार भाग हैं-1.संहिता 2. ब्राह्मण ग्रंथ 3.अरण्यक 4.उपनिषद। वेद में संग्रहित ज्ञान को सहिंता कहा गया है। जैसे ऋग्वेद सहिंता ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है। ब्राह्मण का अर्थ पूजा पाठ करनेवाला नही बल्कि गद्य में वेदों की व्याख्या वाले ग्रंथ को ब्राह्मण कहा गया है। ब्राह्मण ग्रंथ वैदिक वाङ्मय का दूसरा भाग है। ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ ऐतरेय ब्राह्मण है। आरण्यक ग्रंथ वे हैं जिनका उपयोग अरण्य (जंगल) में किया गया। इनमें यज्ञ अनुष्ठान, चिंतन, मनन, रहस्य और आध्यात्म का संकेत है। ऋग्वेद के आरण्यक ग्रंथ ऐतरेय अरण्यक, कौशिकीति और शांखायन है। वैदिक साहित्य के अंतिम भाग को उपनिषद या वेदांत (वेदों का अंतिम भाग) कहते हैं। उपनिषद शब्द का अर्थ है निकट बैठना। इसका एक अर्थ है- सांसारिकता से दूर और अंत:करण के समीप होना। उपनिषद पूर्णतया दार्शनिक ग्रंथ हैं, जिनका मुख्य ध्येय ज्ञान की खोज है। ये बहुदेववाद के स्थान पर परब्रह्म की प्रतिष्ठा करते हैं। यज्ञीय कर्मकाण्डों तथा पशुबलि की निन्दा इनमें मिलती है। छन्दोग्योपनिषद में सर्व खल्विदं ब्रह्म अर्थात् ब्रह्म ही सब कुछ है कहकर अद्वैतवाद की प्रतिष्ठा की गयी है। “ब्रह्म सत्यम जगदमिथ्या”, अहम ब्रह्म, आत्मा-परमात्मा, जीव-जगत, प्रकृति-पुरुष,मोक्ष आदि इन उपनिषद ग्रंथों में है। उपनिषदों की संख्या के बारे में मतभेद है। कहीं 200 तो कहीं 108 बताई गई है। ऋग्वेद के 10 उपनिषद हैं। प्रमुख है ऐतरेय उपनिषद। (क्रमशः)
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