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तीसरे दिन मंगलवार को ‘रश्मिरथी’ नाटक का भावपूर्ण मंचन

जोधपुर में राष्ट्रीय स्तर का ओम शिवपुरी नाट्य समारोह

जोधपुर,जस्थान संगीत नाटक, अकादमी,जोधपुर की ओर से राष्ट्रीय स्तर की पांच दिवसीय ओम शिवपुरी स्मृति नाट्य समारोह के तीसरे दिन रंग मस्ताने,जयपुर के अभिषेक मुद्गल निर्देशित नाटक रश्मिरथी का भावपूर्ण मंचन किया गया।

कथासार

‘‘रश्मिरथी’’ रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित रचना है, जिसकी भाषा ओजस्वी एवं कविता छन्दों के रूप में है। उस नाटक ‘कर्ण’ के जीवन के इर्द-गिर्द घूमता है। किन परिस्थितियों में उसकी माँ गुम्ती द्वारा कर्ण के जन्म से ही उसका त्यागना,जीवन भर उसका पीछा नहीं छोड़ता। इस काव्य में दिनकर ने कर्ण के माध्यम से समाज के सामने एक ज्वलंत प्रश्न रखा है कि किसी व्यक्ति विशेष योग्यता के आधार पर होना चाहिए या उसके वंश के। कर्ण जो अर्जुन से कहीं श्रेष्ठ धनुर्धर होते हुए भी अपने सूतवंश के कारण उचित सम्मान नहीं प्राप्त कर पाता, अपनी पालनहार ‘राधा’ का ऋणी है, जिसने उसे अपने गले से लगाया और माँ का प्यार दिया बजाय उस माँ के जिसने लोक-लाज के चलते एक नवजात को गंगा की लहरों के सुपुर्द कर दिया। वो अपने मित्र दुर्याेधन का भी कृतज्ञ है जिसने उसे अंग देश का राजा बनाकर समाज में स्थान दिलवाया। इसके चलते कर्ण मरते दम तक दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ता। एक ओर गुरु द्रोणाचार्य का अर्जुन को श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का हठ, शिष्य एकलव्य का अंगूठा कटवाता है। वे कर्ण को शिष्य न बनाने का प्रण लेते हैं। किन्तु वे भीतर से जानते हैं कि कर्ण अर्जुन से श्रेष्ठ है।

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इसके चलते कर्ण गुरु द्रोणाचार्य के भी गुरु “परशुराम’’ के सान्निध्य में कठोर परिश्रम द्वारा प्राप्त की हुई विद्या, एक बोले गए झूठ के कारण गंवा देता है।
तो दूसरी ओर अर्जुन के पिता देवराज इंद्र छद्म भेष में आकर कर्ण के कवच और कुण्डल दान में मांग लेते हैं। कर्ण का पूरा जीवन त्याग, दान और दुर्याेधन व अपनी माँ राधा के प्रति प्रेम तथा कृतज्ञता से सराबोर है। जिसके कारण वो भगवान श्रीकृष्ण और जन्मदायिनी कुन्ती के समझाए भी नहीं समझता है और दुर्याेधन का साथ नहीं छोड़ता।

महाभारत का रण आज भी पूरे समाज को यह सोचने पर बाध्य करता है कि कौरवों और पांडवों में कौन अधिक गलत था? किसने मर्यादा का अधिक उल्लंघन किया? वो पाण्डव जिन्होंने द्रौपदी को भोग की वस्तु समझते हुए दांव पर लगाया था या वो कर्ण, जिसने भरी सभा में द्रौपदी का अपमान देखा? या कौरव जिन्होंने अभिमन्यु को को चक्रव्यूह में फंसाकर मारा या वो पाण्डव, जिन्होंने पितामह भीष्म और गुरु द्रोण का संहार किया? या भगवान श्रीकृष्ण ही, जिन्होंने देवराज इन्द्र द्वारा दिए गए अमोघ अस्त्र को घटोत्कच पर चलाने के लिए कर्ण को विवश किया और तो और अर्जुन को निहत्थे कर्ण पर बाण चलाने की प्रेरित किया?

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कार्यक्रम में अकादमी सदस्य तथा वरिष्ठ रंगकर्मी शब्बीर हुसैन एवं रमेश भाटी ने नाटक निर्देशक अभिषेक मुद्गल को पुष्पगुच्छ भेंट किया।
नाटक में नवीन शर्मा, गरिमा सिंह राजावत, निपुण माथुर/सुधांशु शुक्ला, अंकिता शर्मा, राहुल पारीक, प्रीतम सिंह, अनमोल, प्रांजल उपाध्याय, दीपक सैनी, साहिल टिंडवानी, खुशबू बसंदानी,ऋषभ मुद्गल,सुशांत कृष्णात्रे, भार्गवी सिंह नरूका,राहुल निर्वाण, श्वेता चौलगाय, देव स्वामी, अक्षय श्योजित ने अपनी-अपनी भूमिका से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।

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