लोकानुरंजन मेले का दूसरा दिन

जोधपुर, राजस्थान संगीत नाटक एकादमी की ओर से तीन दिवसीय लोकानुरंजन मेले में शुक्रवार को दूसरे दिन भी लोककला प्रेमी दर्शकों ने पूर्ण मुस्कान और आनंद के साथ दो सत्रों में हुए कार्यक्रमों का जमकर लुत्फ उठाया। लोकानुरंजन की गुलाबी ठंड की सुरमई शाम टाउन हाॅल परिसर के प्रथम सत्र में राजस्थान के परंपरागत लोक नृत्य, वादन व गायन के अलावा

duet of artists at the confluence of folk artलुत्फ होती जादू कला व कठपुतली प्रदर्शन ने लोगों को बेहद आकर्षित किया। इस सत्र में जानकीलाल चाचैड़ा का चकरी नृत्य, गोपाल धानुक शाहबाद का सहरिया, पवन कुमार लक्ष्मणगढ का बम्ब, अकरम बांदीकुई बहालिया, एहसास साथियों का सामूहिक शहनाई वादन, गंगादेव पादरला तेरहताली नृत्य, विजयलक्ष्मी व महेश आमरा उदयपुर चरी नृत्य, जितेन्द्र परासर डीग मयूर नृत्य,

duet of artists at the confluence of folk artबालोतरा उकराम परिसर लाल आंगी गैर, अचलाराम डांडिया, ढपनाथ कालबोलिया श्यामाराम तीन ढोल थाली, बांकिया वादन, दिलावर कच्छी घोड़ी, शनि जादूगर, लोककला मंडल का कठपुतली, अलवर के युसुफ खान का मयंग वादन ने समां बांध दिया। प्रेक्षागृह के भीतर देउ खान मांगणियार की सिम्फोनी व लोकगीत के साथ शुरू हुए कार्यक्रम ने दर्शकों को मोह में बांध लिया।

duet of artists at the confluence of folk artइस बार जम्मू-कश्मीर का रूफ नृत्य हरियाणा के अशोक गुड़ा साथियों का फाग नृत्य, प्रकाश बिस्ट उत्तराखंड के जौनसारी नृत्य, श्रद्धा सखियों ने कौली नृत्य, गोवा का समई नृत्य, रामपाल सिंह रोहतक का पनिहारी नृत्य, गुजरात के महेंद्रभाई का रास नृत्य, जोगिन्द्र सिंह हब्बी एवं साथियों का लबडा नृत्य, पंजाब के अरमिन्दरसिंह का भंगड़ा नृत्य व कंचनभाई का राठवा नृत्य ने दर्शकों को अंत तक बांधे रखा। आरंभ में अकादमी सचिव एलएन बैरवा ने अतिथियों का स्वागत तथा बिनाक व प्रमोद सिंघल ने संचालन किया। समारोह में अकादमी अधिकारी रमेश कंदोई व अरूण पुरोहित ने संयोजन किया।