तीन विभाग की टीम ने मिल कर किया स्लिप डिस्क का छाती के रास्ते जटिल ऑपरेशन

जोधपुर,तीन विभाग की टीम ने मिल कर किया स्लिप डिस्क का छाती के रास्ते जटिल ऑपरेशन। जोधपुर मेडिकल कॉलेज के महात्मा गांधी अस्पताल के तीन विभागों की टीम ने मिल कर छाती के रास्ते स्लिप डिस्क का जटिल ऑपरेशन किया।

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अस्थि रोग विभागाध्यक्ष डॉ किशोर रायचंदानी ने बताया कि अक्सर देखा जाता है अधिकतर स्लिप डिस्क या तो कमर में या कुछ गर्दन में होती है लेकिन रीढ़ की हड्डी के बीच के हिस्से को जिसको थोरसिक स्पाइन कहते हैं,इसमें स्लिप डिस्क होने के आसार बहुत ही कम,लगभग 6 से 7 लाख लोगो में से किसी एक में देखने को मिलती है।

यह बीमारी कमर एवं गर्दन के स्लिप डिस्क के बजाय बहुत ही गंभीर स्थिति उत्पन्न करती है,इस बीमारी में मरीज़ के अक्सर दोनों पाँवों में लकवा उत्पन्न हो जाता है।

लक्षण
पीठ में दर्द,छाती में दर्द,छाती के चारों तरफ़ किसी रस्सी बंधी होने जैसा महसूस होना,दोनों पाँवों में कमजोरी,दोनों पाँवों में सूनापन,मल मूत्र त्यागने के नियंत्रण में परेशानी मरीज़ ने महात्मा गांधी अस्पताल में अस्थि रोग विभाग में इकाई प्रमुख एवं सह आचार्य डॉ हेमंत जैन को दिखाया। उन्होंने यह बीमारी देख मरीज़ को ऑपरेशन की सलाह दी।

महात्मा गांधी अस्पताल के रीढ़ की हड्डी रोग विशेषज्ञ स्पाइन सर्जन डॉ महेंद्र सिंह टाक ने बताया कि पाली ज़िले की 52 वर्षीय महिला जिसको डी-11-डी-12 हड्डी के बीच की स्लिप डिस्क की बीमारी थी। इसमें डिस्क में कैल्शियम जमा होने से वो मार्बल पत्थर के जैसे कठोर अवस्था में आ गई थी एवं धीरेधीरे इस डिस्क ने स्पाइनल कॉर्ड को पूरी तरह से दबा दिया था जिससे मरीज़ दोनों पाँवों से चलने में असमर्थ हो गया एवं बिस्तर पर आ गया।

इस ऑपरेशन के लिए मेडिकल कॉलेज के सीटीवीएस विभागाध्यक्ष डॉ सुभाष बलारा एवं डॉ.अभिनव सिंह की टीम ने मरीज़ को पहले पसलियों को साइड कर छाती के रास्ते रीढ़ की हड्डी तक पहुँचने का ऑपरेशन किया।

उसके बाद आगे रीढ़ की हड्डी रोग विशेषज्ञ स्पाइन सर्जन डॉ महेंद्र सिंह टाक की टीम ने माइक्रोस्कोपिक तकनीक द्वारा मार्बल पत्थर की तरह मज़बूत स्लिप डिस्क को धीरे धीरे हाई स्पीड बोन ड्रिल मशीन कि सहायता से दबी हुई स्पाइनल कॉर्ड को डिस्क के दबाव से राहत दिलायी।

आज 2 हफ़्ते बाद मरीज़ स्वस्थ होकर अस्पताल से घर गया है।
इस ऑपरेशन में एनेस्थिसिया का काम बेहद ही जटिल होता है ये चुनौती भरा काम एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ सरिता जनवेज़ा के नेतृत्व में डॉ वंदना शर्मा की टीम ने किया।

डॉ वंदना ने बताया कि इस तरह के ऑपरेशन में मरीज़ को पूरे ऑपरेशन के दौरान एक ही फेफड़े पर निर्भर रखा जाता है,जिसे की सिंगल लंग वेंटिलेशन तकनीक कहा जाता है। बायें तरफ़ के फेफड़े को एक विशेष तरह के यंत्र द्वारा ऑपरेशन के दौरान सिकुड़ा जाता है ताकि ऑपरेशन करने वाली टीम को छाती के अंदर काम करने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। ऑपरेशन के पूर्ण होने पर बाये फेफड़े को फिर से फूला कर पहले की भाँति कार्य करने दिया जाता है।

इस ऑपरेशन में चिकित्सकों की टीम में टीम में डॉ गौतम,डॉ संदीप, डॉ वीजेंद्र,डॉ मनु,डॉ पीयूष,डॉ रेशम, डॉ शिप्रा थे। ओटी इंचार्ज मीनाक्षी अग्रवाल,अजीत गुरनानी,गणपत सिंह,नलिनी, प्रिया,जितेंद्र,ज्ञानप्रकाश,अकरम का सहयोग रहा। महात्मा गांधी अस्पताल अधीक्षक एवं मेडिकल कॉलेज प्राचार्य ने इस उपलब्धि के लिए पूरी टीम को बधाई दी है