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कोई रहने सदा नहीं आया,मौसमों का गुज़र बसर है ये

मशहूर शाइर सरफराज़ शाकिर को दी काव्यांजली

जोधपुर,वो पीछे पीछे क्यूं आते हैं शाकिर, पकड़ में कैसे आऊंगा धुआं हूं,ये शेर उर्दू के मशहूर शाइर सरफ़राज़ शाकिर का है,जिसको कविमित्र समूह की मासिक काव्यगोष्ठी में अपने तरन्नुम में पढ़ते हुए उनकी पुत्री उल्फत शाकिर ने सबकी आंखें नम कर दी,इस अवसर पर मरहूम शाइर को पुष्पांजली व शब्द सुमन अर्पित किये गये।

काव्यगोष्ठी के संयोजक अशफाक़ अहमद फ़ौजदार ने बताया कि मार्च के पहले सप्ताह में आयोजित मासिक काव्यगोष्ठी बलदेवनगर स्थित धनक सभागार में आयोजित की गई जिसमें शहर के ख्यातनाम और नवोदित रचनाकारों ने एकत्रित होकर अपनी रचनाओं के साथ सरफराज़ शाकिर की रूह के सुकून की दुआएं की।

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प्रारम्भ में नवोदित रचनाकार सत्यनारायण चितारा ने मां मुझको क्यूं फेंक दिया कूड़ेदान में.. ,डॉ जयकरण चारण ने बड़ा आदमी,मोहनदास वैष्णव ने ख़ून के रिश्ते मरने लगे हैं, परिवार बिखरने लगे हैं सुनाकर वर्तमान में परिवारों की स्थिति को बारीकी से रेखांकित किया। पूर्णिमा जायसवाल ’अदा’ ने खुल ना पाई वो बही मुझसे,कह सके जो ग़लत सही मुझसे सुनाई तो योगिता टाक ने खुद ही खुद के लिये जियो तुम.. सुनाकर सकारात्मक सन्देश दिया।

इस अवसर पर सरफराज़ शाकिर को याद करते हुए कविमित्र समूह के सचिव प्रमोद वैष्णव ने बहुत सी यादों में साथ एक टीस छोड़ जाता है लोगों के दिलों में, जीने की आस लेकर चला जाता है जब कोई दुनिया से… सुनाकर माहौल को मरहूम शाइर के नज़दीक ले गये। राजस्थानी के रचनाकार वाजिद हसन क़ाज़ी ने छोड़ सब पंपाळ भायला रैवण दै,खुद घर संभाळ भायला रैवण दे..दीपा परिहार ने प्रेम से सब पुकारती चली हूं मैं,सोच को यूं सुधारती चली हूं मैं…और छगनराज दीप ने हमने गाया फाग में फागण तेरे छंद सुनाकर होली की हुड़दंग की और माहौल को ले गये।

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शाकिर को याद करते हुए खुर्शीद खैराड़ी ने ग़ज़ल की मोहब्बत में डूबा हुआ हूँ…. काफ़िर इबादत में डूबा हुआ हूँ सुनाई। रज़ा मोहम्मद ख़ान ने मौत जिसको आ गई, उसकी क़यामत हो गई। अपने पिता को याद करते हुए उल्फत शाकिर ने बाग की हर कली ये कहती है,बागबां रूठ के गये मेरे….. सुनाकर माहौल को एक बार फिर यादों की ओर खींच ले गई। यासीन खान यासीन ने बचपन के दिन सुहाने ना जाने कहां गये सुनाकर अपने उस्ताद सरफ़राज़ को श्रद्धांजली दी।

अशफ़ाक़ अहमद फौजदार ने क्यूं उसको पाषाण हृदय कहूं,मुझे भी तो दुलारती है चांदनी….सुनाई। अन्त में प्रसिद्ध गीतकार दिनेश सिन्दल ने सरफराज़ शाकिर के साथ अपनी स्मृतियां साझा की। गोष्ठी का संचालन नवीन बोहरा पंछी ने किया।

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