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देहरादून,प्रख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे। कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से उनका निधन हो गया। नौ मई से ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उनका उपचार चल रहा था। शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी उम्र 94 साल थी, उनका जन्म 9 जनवरी 1927 को हुआ था। अपने जीवन मे उन्होंने अनेक आंदोलनों की अगुवाई की। छुआछूत,महिला अधिकार, हिमालय बचाओ आंदोलन के लिए उन्हें हिमालय का रक्षक भी कहा जाता था।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया। उन्होंने कहा बहुगुणा सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनियां में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक थे। सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी थी, साथ ही देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। परिणाम स्वरूप चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। वह पारिस्थितिकी को सबसे बड़ी आर्थिकी मानते थे। यही वजह भी है कि वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरू कर अलख जगाई थी। उनके निधन पर सभी प्रकृति प्रेमियों ने गहरा दुःख जताया है।

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प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा के निधन पर क्षेत्र के पर्यावरण प्रेमियों ने गहरा दुःख प्रकट किया ओर उनको कई जगह श्रदांजलि दी गई। बिंदुखाता में पर्यावरण प्रेमियों ने कहा कि पद्मभूषण से सम्मानित सुंदर लाल बहुगुणा ने हिमालय की रक्षा करने व पर्यावरण को जिंदा रखने के लिए चिपको आंदोलन किया।

माटू जनसंगठनों के राष्ट्रीय समन्यक बिमल भाई ने कहा कि गांधी व विनोवा भावे के साथ मिलकर चिपको आंदोलन को एक सच्चे सिपाही के रूप में कार्य किया। शोक व्यक्त करने वालों में हरीश बिसौती, आनन्द गोपाल बिष्ट, हर्ष बिष्ट, नंदन बोरा, सुरेश पांडे, कुंदन सिंह सोरागी, जीवन जोशी, राजू नेगी, गोपाल नेगी, राम सिंह किरमोलिया सहित कई लोग मौजूद थे।

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