यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को परिवादी को राशि अदा करने के आदेश

राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग

जोधपुर,यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को परिवादी को राशि अदा करने के आदेश। राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में यह व्यवस्था दी है कि वाहन बीमा पॉलिसी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि खुले स्थल पर ताला लगे हुए वाहन की सुरक्षा के वास्ते बीमाधारी किसी व्यक्ति को वहां रखे।

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आयोग के अध्यक्ष देवेंद्र कच्छवाहा, न्यायिक सदस्य अतुल कुमार चटर्जी और सदस्य लियाकत अली ने अपील मंजूर करते हुए यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को निर्देश दिए कि चोरी हुए वाहन की कीमत तीन लाख रुपए मय एक अप्रैल 2021से 9 फीसदी ब्याज और परिवाद व्यय बीस हजार रुपए परिवादी को अदा करें। उन्होंने अधीनस्थ जिला उपभोक्ता आयोग को हिदायत दी है कि किसी भी पक्षकार को परिवाद, जवाब,प्रार्थना पत्र या शपथ पत्र हरे कागज में ही पेश करने के वास्ते बाध्य नहीं करें।

सुखाराम और प्रेम इन्वेस्टमेंट ने अधिवक्ता अनिल भंडारी के माध्यम से अपील पेश कर कहा कि 6 मार्च 2016 को एमडीएम अस्पताल के बाहर ताला लगे हुए बीमित वाहन की चोरी का दावा देय नहीं किए जाने पर दायर परिवाद को जिला उपभोक्ता आयोग ने यह कहकर खारिज कर दिया है वाहन चोरी की प्रथम सूचना रपट अत्यधिक देरी से दायर की गई है और वाहन को अस्पताल की पार्किंग में नहीं रखकर खुले स्थल में असुरक्षित रख दिया गया था।

अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि परिवाद हरे कागज में पेश नहीं किए जाने की आपत्ति के बावजूद सफेद कागज में ही पेश किए जाने से नाराज होकर जिला आयोग ने परिवाद यह कहकर खारिज कर दिया कि बीमाधारी ने वाहन को अस्पताल की पार्किंग में नहीं रखकर खुले स्थान में रखकर सुरक्षा का उल्लंघन किया है। बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि परिवाद सही खारिज किया गया है सो अपील खारिज की जाए।

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राज्य उपभोक्ता आयोग ने अपील मंजूर करते हुए कहा कि ऐसा लग रहा है कि जिला आयोग ने परिवाद अटकलें और कयास के आधार पर खारिज किया है,क्योंकि चोरी की प्रथम सूचना रपट दूसरे दिन ही दर्ज हो जाने को कदापि अत्यधिक देरी से दर्ज किया जाना नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि अंतिम रपट में चोरी होने पर पुलिस ने कोई भी संदेह नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि पार्किंग की बजाए खुली जगह पर ताला लगाकर वाहन रखना असुरक्षित नहीं माना जा सकता है और न ही यह बीमा पॉलिसी का उल्लंघन है। उन्होंने दावा खारिज किए जाने को सेवा में कमी और त्रुटि माना है। उन्होंने बीमा कंपनी को निर्देश दिए कि परिवादी को दावा राशि तीन लाख रुपए मय नौ फ़ीसदी ब्याज और परिवाद व्यय बीस हजार रुपए अदा करें।

उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग को हिदायत दी कि उपभोक्ता अधिनियम उपभोक्ता के हितों एवं अधिकारों के संरक्षण के उद्देश्य से बनाया गया है सो परिवाद,जवाब,प्रार्थना पत्र या शपथ पत्र को हरे कागज में ही पेश करने के वास्ते बाध्य नहीं किया जा सकता है।