एमडीएमएच के कार्डियोलॉजी में हुए दो दिल के अनूठे ऑपरेशन
जोधपुर,मथुरादास माथुर अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में गत दिनों दो अनूठे ऑपरेशन किए गए। पहला मरीज़ एक 5 वर्षीय जोधपुर निवासी बच्चा था जिसे साँस फूलने,कमजोरी, वजन न बढ़ने तथा बार-बार इन्फेक्शन के चलते जाँच करने पर एक दुर्लभ बीमारी कोरोनरी एवी फ़िस्टूला से ग्रसित पाया गया। कोरोनरी एवी फ़िस्टूला में मरीज़ के हृदय को रक्त पहुँचाने वाली कोरोनरी आर्टरी से हृदय के दायें भाग से कही संपर्क बन जाता है। इस मरीज़ में ये संपर्क दायी कोरोनरी आर्टरी और राइट वेंट्रिकल में था जिससे खून की मिक्सिंग हो रही थी और हृदय पर दबाव बढ़ने से हृदय बढ़ गया था। मरीज़ के परिजन इसके लिए अहमदाबाद जा कर आये जिसका इलाज काफ़ी खर्चीला था। जोधपुर में परिजनों ने हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रोहित माथुर से संपर्क किया जिसमे सीटी एंजियो में इस बीमारी की पुष्टि की गई। बाद में डिवाइस लगा कर इस फ़िस्टूला को बंद किया गया। इस प्रक्रिया में फ़िस्टूला के अंदर से एक तार डाल कर उस तार पर बटन नुमा डिवाइस डाली जाती है,जिसकी उपयुक्त जगह पर पहुँचने पर डिवाइस खोल दी जाती है और तार वापिस निकाल लिये जाते हैं। यह बटन नुमा डिवाइस फ़िस्टूला से हो रही खून की मिक्सिंग बंद कर देता है।
दूसरा मरीज़ 49 वर्षीय बलोतरा निवासी था जो चलने में साँस फूलने और घबराहट की शिकायत के साथ अपने डॉक्टर के पास गया जहां इको में उसके हृदय में एक जन्मजात छेद पाया गया। इसके चलते मरीज़ ने मथुरादास माथुर अस्पताल विभाग में डॉ रोहित माथुर से संपर्क किया। विभाग में मरीज़ की एंडोस्कोपी से इको जाँच की गई जिसे ट्रांस एसोफेजियल इको कहते हैं। इसमें पाया गया कि मरीज़ के इंटर एट्रियल सेप्टम में एक नहीं वरन दो छेद हैं। इंटर एट्रियल सेप्टम हृदय के दायें और बायें भाग को अलग रखता है,जिसमे दो छेद होने से हृदय में खून की मिक्सिंग हो रही थी। सामान्यतया एक से अधिक डिफेक्ट होने पर मरीज़ को ओपन हार्ट सर्जरी करवानी पड़ती है परंतु सावधानी पूर्वक जाँच करने के बाद डॉक्टरों ने इस मरीज़ को छतरी वाली डिवाइस से ही इलाज करने का निर्णय लिया। इस प्रोसीजर को एएस डी डिवाइस क्लोजर कहा जाता है जिसमे बिना चीरे,बिना बेहोशी के दूरबीन से मरीज़ के हार्ट में छतरी नुमा डिवाइस से हार्ट के छेद को बंद कर दिया जाता है। हालांकि मथुरा दास माथुर अस्पताल के हृदय रोग विभाग में अब तक क़रीब 200 डिवाइस क्लोजर हो चुके हैं पर यह पहली बार है कि किसी मरीज़ में एक के पास एक ऐसे दो डिफेक्ट हों और दोनों को एक साथ डिवाइस से बंद किया गया हो। इस तरह के प्रोसीजर में एक डिवाइस लगाने के बाद उसी डिवाइस का सहारा बना कर दूसरी डिवाइस लगाई जाती है जिसमे डिवाइस का एक दूसरे में फँस जाना,दूसरी डिवाइस लगाते समय पहली का खिसक जाना तथा दोनों डिवाइस का एक दूसरे से समन्वय का ख़ास ख़्याल रखना पड़ता है।
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प्रोसीजर के बाद दोनों मरीज़ एक दम स्वस्थ अवस्था में डिस्चार्ज किए जा चुके हैं। विभागाध्यक्ष डॉ रोहित माथुर ने बताया की संभवतया ये दोनों पश्चिमी राजस्थान के पहले इस तरह के ऑपरेशन हैं। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और नियंत्रक डॉ दिलीप कच्छवाहा तथा मथुरादास माथुर अस्पताल के अधीक्षक डॉ विकास राजपुरोहित ने पूरे कार्डियोलॉजी विभाग को बधाई दी।मेडिकल कॉलेज के प्रवक्ता डॉ जयराम रावतानी ने बताया की यह प्रोसीजर चिरंजीवी योजना में पूर्णतः फ्री किये गये हैं।
इन प्रोसीजर में हृदय रोग विभाग के डॉ रोहित माथुर,डॉ पवन सारडा,डॉ अनिल बारूपाल,फोर्टिस एस्कॉर्ट दिल्ली के डॉ नीरज अवस्थी,निश्चेतना विभाग से डॉ राकेश कर्णावत,डॉ शिखा सोनी,डॉ गायत्री,डॉ भरत, नर्सिंग अधिकारी महेंद्र,योगेश, सिमला,करुणा,हरीश,नंद किशोर, हेमलता,नवीन,विकास,गुणेश, सुशीला,उर्मिला,संगीता,शोभा,मैना, इला,त्रिलोक,रणवीर,गोपेश,सुरेंद्र तथा समस्त कैथ लैब स्टाफ और टेक्निशियन का योगदान रहा।
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