सवालों का उत्तर सवालों में ढूंढने वाली आवाज़ खामोश हो गई..
आवाज़ की दुनिया के शैलेन्द्र को-भावांजलि
एक सवाल मैं करूं एक सवाल तुम करो
हर सवाल का सवाल ही जवाब हो.. एक सवाल तुम…
आकाशवाणी जोधपुर के ड्रामा स्टूडियो में मैं एक फीचर की एडिटिंग कर रहा था। इसी दौरान शैलेन्द्र भी आ पहुंचे। जो अंश फीचर में जोड़ा जा रहा था वह था-ये भी कोई सवाल हुआ.. सवाल होते थे हमारे ज़माने में…शैलेन्द्र को देखते ही मैंने कंसोल से अपना हाथ हटाया और शैलेन्द्र की ओर प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा। शैलेंद्र इस गाने को गाने लगे-एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो…हर सवाल का सवाल ही जवाब हो..।
सर! इस गीत को कभी पूरा सुना आपने? मैंने कहा भैया रेडियो में दस साल तक रेडियो सुनने की ही नौकरी की है। इसमें क्या नई बात है। शैलेंद्र फिर गाना गाने लगे-
रफी- प्यार की वेला साथ सजन का फिर क्यों दिल घबराए?
नैहर से घर जाती दुल्हन फिर क्यों नैना छलकाए?
लता- है मालूम कि जाना होगा दिन दुनिया एक सराय
फिर क्यों जाते वक्त मुसाफिर रोये और रुलाये?…
ड्यूटी ऑफिसर जो भी रहे हों, उन्होंने पुराने गीतों का बहुत आनंद लिया होगा। अगर संगीत के प्रति थोड़ा भी लगाव रहा होगा तो लॉगबुक लिखते रेडियो सुनते गीत गुनगुनाया भी होगा। मैं स्वयं को भी उनमे शामिल करता हूँ लेकिन शैलेन्द्र ने उस दिन सुनने की एक नई समझ दी। केवल संगीत का आनंद न लो, गीत के भाव को भी समझो। फ़िल्म ससुराल (1961) का ये गीत गीतकार शैलेन्द्र ने लिखा था। स्वर दिए थे लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने। संगीत दिया था शंकर जयकिशन ने। मेरी पाठकों से विनती है इस गीत को डाउन लोड कर सुने। गीतकार शैलेन्द्र की उस प्रतिभा से आप अवश्य हैरान होंगे खैर! बात उस शैलेंद्र की है जिस शैलेन्द्र ने इस गीत को सुनकर समझना मुझे सिखाया था। वे मेरे पास एक प्रस्ताव लेकर आये थे कि बहुत से ऐसे फिल्मी गाने हैं जिनकी कहानी बहुत रोचक होती है। कुछ उदहारण मुझे सुनाए और कहने लगे क्या इस थीम पर कोई कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है? मैंने कहा किसी ने मना किया है क्या? बोले आपने भी सवाल का जवाब सवाल में ही दे दिया। बहुत मंझा हुआ उद्घोषक शैलेन्द्र गहलोत!
मीडियम वेव 564.97 मीटर अर्थात 531 किलोहर्टज़ पर ये आकाशवाणी जोधपुर है। प्रस्तुत है कार्यक्रम आपकी फरमाइश। आवाज़ की दुनिया के दोस्तों को शैलेन्द्र गहलोत का नमस्कार।…मधुर आवाज कभी बीच मे कोई फिल्मी किस्सा और गानों का अनोखा चयन…
चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना …2..
ख़तम हुए दिन उस डाली के जिस पर तेरा बसेरा था,
आज यहाँ और कल हो वह ये जोगी वाला फेरा था,
सदा रहा है इस दुनिया में किस का आबू दाना
चल उड़ जा रे पंछी कि…
1987-88 में जब शैलेंद्र कैजुअल अनाउंसर थे, जो बाद में 1991 में रेगुलर अनाउंसर (आकाशवाणी नागौर) हुए, हम लोगों का लंबा साथ आकाशवाणी जोधपुर में रहा। जब मैं बाड़मेर से 2002 में वापस जोधपुर आया तो उससे पहले वे प्रसारण डयूटी में थे। अनिल रामजी तब केंद्र निदेशक थे। शैलेन्द्र या तो सुबह की ड्यूटी पसंद करते या विज्ञापन प्रसारण सेवा में पैक्स के साथ मार्केटिंग डयूटी। राम साहब के पास शैलेन्द्र के मसले में बात करने गया। उन्होंने कहा मुझे रेवन्यू से मतलब है। शैलेन्द्र अगली सुबह ही एक लाख का चेक लेकर आ गए। बहुत अच्छी अच्छी जान पहचान थी।..2018 में उन्होंने स्वेच्छिक सेवा निवृति ले ली थी। 3 मार्च को व्हाट्सएप में हमारा जोधपुर का ग्रुप है उसमें रामगोपाल अरोड़ा जी की पोस्ट थी.. कुछ देर ड्यूटी रूम के सारे दृश्य रील की तरह घूमने लगे..अरोड़ा जी से बात की। अनिल गोयल जी की पोस्ट देखी… बहुत कड़वे सत्य को स्वीकार करना पड़ा।
प्यारे शैलेन्द्र! कितने किस्से… कितनी बातें…
1960 में जोधपुर में जाये जन्मे शैलेंद्र गहलोत का दिल का दौरा अंतिम सांस का कारण बना। यारो का यार… शैलेन्द्र यारों के बीच नही रहा। महेंद्र मोदी जी को तो एक बार विश्वास ही नही हुआ। शैलेंद्र! नमन। शैलेंद्र ! एक बार तुमने आपकी फरमाइश में याराना फ़िल्म का जो गीत सुनाया था मेरे भावों में वह गीत उभर कर आ रहा है-
तेरे जैसा यार कहाँ, कहां ऐसा याराना
याद करेगी दुनिया, तेरा मेरा अफ़साना
ॐ शांति।शांति। शांति।। नमन।
(निवेदक- पार्थसारथि थपलियाल)
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