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आधुनिक समाज में गौमाता की उपेक्षा चिंता जनक- पं भारद्वाज

जोधपुर, पंडित दामोदर भारद्वाज ने कहा कि आधुनिक समाज में गौमाता की उपेक्षा चिंताजनक है। पढ़े लिखे शहरी लोग गौ पालन की परम्परा का निर्वहन नहीं करते। भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत हो, इसके लिए लोगों को गौपालन की तरफ लौटना जरुरी है। जो सामर्थ्यवान गौ पालन नहीं कर सकता, उसे गौशालाओं में उदारता से सहयोग करना चाहिए। वे पत्रकार वार्ता में गौमाता कार्यक्रम को लेकर बात कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि भारत वह देश है जहाँ गाय को माता के समान दर्जा प्राप्त है। भारतीय प्रजाति की गाय को आम भाषा में देशी गाय कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने खुद गौमाता की महिमा का गान किया है। भारतीय जन मानस में देशी गाय के प्रति अगाध श्रद्धा है लेकिन आर्थिक कारणों से दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विदेशी नस्ल की गायों ने देशी नस्ल की गायों का स्थान ले लिया, इस वजह से देशी गाय के पालन,संरक्षण और संर्वधन संबधी प्रश्न हमारे सामने हैं।

गाय भारतीय संस्कृति की मूलाधार है। वैदिक काल से ही गाय को संस्कृति, कृषि, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, औद्योगिक एवं औषधीय पहलुओं के लिए पोषण किया जाता रहा है। आध्यात्मिक मनीषियों ने जीवन और सृष्टि,दोनों के रहस्य को खोजकर, गाय को सर्वोपयोगी जीव के रूप मान्य किया और गौविज्ञान का वैज्ञानिक रूप से विकास किया।  गौपालन भारतीय जीवन शैली व ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सदैव केंद्र बिन्दु रहा है। कृषि भारत की प्रमुख आर्थिक शक्ति होने के कारण गाय को हर प्रमुख भारतीय त्याहारों में माता के रूप में पूजा जाता रहा है तथा गाय से जुड़े कई व्रत जैसे गोपद्वमव्रत,गोवर्धन पूजा,गोवत्सव्रत,गोत्रि-रात्रव्रत, गोपाष्टमी एवं प्रयोव्रत हिंदुओं द्वारा रखे जाते हैं। महाकाव्यों में अनेक स्थानों पर गौमाता की स्तुतिभाव काव्य के रूप में संग्रहीत है एवं अनेक कथाओं के माध्यम से वेदों में गाय के अंग-प्रत्यंग में समस्त देवी-देवताओं का वास कहा गया है। गाय को सभी नक्षत्रों की किरणों का प्राप्तकर्ता बताया गया है।

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