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विराट व्यक्तित्व के धनी त्रिलोक चन्द्र भट्ट

– दया जोशी

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो…
कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं साहित्यकार, पत्रकार,उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी त्रिलोक चन्द्र भट्ट पर। जिन्होंने एक पत्रकार से लेकर लेखक,समाज सेवी एवं आंदोलनकारी तक हर भूमिका में अपनी मातृभूमि की सेवा की है। कर्मयोगी त्रिलोक चन्द्र भट्ट का जन्म चार नवम्बर उन्नीस सौ चौंसठ को ग्राम पीपलखेत (गैराड़) बागेश्वर जिले में हुआ। बचपन से ही शिक्षा के प्रति लगाव रखने वाले त्रिलोक पहले से ही तेज स्वाभाव के रहे हैं तथा छात्र नेतृत्व में सदा ही आगे रहने वाले ये कलम का उभरता सितारा अपनी मृदुवाणी तथा नपे-तले शब्दों से आगे ही रहा है। उन्होंने उस दौर में चल रहे उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी।

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काशी सिंह ऐरी, दिवाकर भट्ट व जसवंत सिंह बिष्ट जैसे आन्दोलनकारी नेताओं के साथ मिलकर उत्तराखंड को अस्तित्व में लाने का प्रयास किया। ये 24 अक्टूबर,1987 को हरिद्वार में उत्तराखंड स्टूडेंट फैडरेशन के अध्यक्ष चुने गए। खटीमा व मसूरी कांड को लेकर हुए विशालकाय प्रदर्शन में त्रिलोक पुलिस से सीधे टकरा गये। राज्य आन्दोलन की मांग करते हुए सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के नेतृत्वकर्ताओं में शामिल होने पर 1994 में पुलिस द्वारा उनके विरूद्ध अगस्त्यमुनि (रूद्रप्रयाग) में धारा 147/149/332/353/336/427 भादवि के अंतर्गत गंभीर आपराधिक धाराओं में मुकदमा भी दर्ज किया गया।

उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर आरंभ किये गये लंबे आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। राज्य स्थापना के पश्चात किसी भी प्रकार की राजनीतिक महत्वकांक्षा से परे सामाजिक साहित्यिक जीवन जीना पसंद किया। उत्तराखंड आंदोलन भाग-एक एवं भाग-दो,उत्तरांचल के देवालय,उत्तरांचल के अनमोल मोती, उत्तराखंड राज्य आंदोलन का नवीन इतिहास तथा राजभाषा हिंदी के बढ़ते कदम आदि उनकी आधा दर्जन से भी अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इससे कहीं अधिक प्रकाशन कि कतार में हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने सहारा समय,पंजाब केसरी, दैनिक उत्तराखंड प्रहरी,दैनिक बद्रीविशाल सहित कई दैनिक,साप्ताहिक तथा मासिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में अपनी सेवाएं दी।

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साहसिक पर्यटन भी उनके व्यक्तित्व का प्रमुख हिस्सा रहा है। जिसमें पिंडारी, कफनी और सुन्दरढूंगा ग्लेशियर सहित उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई साहसिक यात्राओं का नेतृत्व किया। त्रिलोक चन्द्र भट्ट जितने सरल सौम्य स्वभाव के व्यक्ति हैं, उतने ही निडर और निर्भीक भी हैं। इस बात का उदाहरण 9 जून 2004 की घटना से पता चलता है,जब उन्होंने एक साहसिक अभियान के दौरान सुंदरढूंगा ग्लेशियर क्षेत्र के ‘सुखराम केव’ दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद भी रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों और अपने साथियों की जीवन रक्षा ही नहीं की बल्कि नौ जीवित बचे जवानों सहित ग्यारह लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए अभियान दल का नेतृत्व किया। उन्होंने एक सप्ताह तक चले आईटीबीपी के रेस्क्यू अभियान में शामिल होकर सुंदरढ़ूंगा ग्लेशियर में मृत जवानों के शव ढूंढने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसके लिए उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान कर पुरस्कृत भी किया गया। बाद में पूर्व मुखयमंत्री भगतसिंह कोश्यारी द्वारा भी सम्मानित किया गया।।वर्ष 2012 में उन्होंने नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स की स्थापना की तथा यूनियन को पत्रकारिता के साथ-साथ असहाय एवं दिव्यांगों की मदद से जुड़कर कार्य कर रहे हैं।

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वर्तमान में वे तरुण हिमालय बुलेटिन एवं उत्तर पथ के संपादक के रूप में कार्यरत हैं। इस बहुमुखी प्रतिभा को सराहते हुए उनको समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा पर्वतीय गौरव अलंकरण,एनयूजे के गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान,तरुण हिमालय गौरव सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उनके अपने मातृभूमि तथा समाज के प्रति विभिन्न भूमिकाओं में किए गये कार्य को सराहते हुए सामाजिक संस्था ‘द विजन सोसाइटी’ द्वारा वर्ष 2016 में ‘विजन और हिल्स फ्यूचर एवार्ड 2016’ से सम्मानित किया गया।

एक और नया सफ़रनामा

प्रेस की स्वतंत्रता के लिए सतत प्रयत्नशील रहने तथा श्रमजीवी पत्रकारों और समाचार पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रचनाकारों को संगठित कर पत्रकारिता के आदर्शों को स्थापित करने के उद्देश्य से भट्ट ने वर्ष 2012 में नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स का गठन किया। 2012 से दिसंबर 2020 तक वे निर्विरोध यूनियन अध्यक्ष निर्वाचित होते रहे। मार्च 2023 में वे पुनः निर्विरोध अध्यक्ष बने हैं। वे उत्तराखण्ड सरकार द्वारा गठित राज्य के पत्रकार कल्याण कोष में भी सदस्य नामित हैं जबकि साहित्यक क्षेत्र में अपनी अलग पहचान के चलते राज्य सरकार ने उन्हें बतौर साहित्यकार स्व.रामप्रसाद बहुगुणा राज्यस्तरीय पत्रकारिता पुरस्कार चयन समिति में भी सदस्य नामित किया है। त्रिलोक चन्द्र भट्ट पत्रकारों की मांगों और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय रहते हुए हमेशा मुखर रहे हैं।

स्वीकार करता हूं और हिम्मत से लड़ता हूं.
चुनौती जब वक्त देता है हार मानी कब है ।।
और राह कोई भी हो, चलना मेरा शौक है।
कर्मयोगी हूँ,कर्म करूँगा ही,ठानी जब है॥

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