विज्ञापन दर नवीनीकरण में न्यूज एजेंसियों की अनिवार्यता का विरोध
हरिद्वार,नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे उत्तराखण्ड) ने केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए विज्ञापन दर नवीनीकरण में न्यूज एजेंसियों की सेवाओं को अनिवार्य किये जाने पर कड़ा एतराज जताते हुए इसे देशभर के लघु,मध्यम और मझोले समाचार पत्रों के अस्तित्व को समाप्त कर चंद न्यूज एजेंसियों को लाभ पहुंचानेे की साजिश बताया है। यूनियन के प्रेदश अध्यक्ष त्रिलोक चन्द्र भट्ट ने भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर और केन्द्रीय संचार ब्यूरो के महानिदेशक को भेजे पत्र में कहा है कि 4 जुलाई को जारी एडवारी के अनुसार अगले ही दिन से देशभर के समाचार पत्र केंद्रीय संचार ब्यूरो में विज्ञापन दर नवीनीकरण के लिए ऑनलाइन नवीनीकरण कर रहे थे जिसमें विभिन्न न्यूज एजेंसियों के सबक्रिप्सन में ‘अन्य’ का विकल्प भी आ रहा था। उस समय एजेंसियों की संख्या भी सीमित थी। किन्तु करीब तीन दिन पूर्व सुनियोजित तरीके से ‘अन्य’ का आप्सन हटा दिया गया और न्यूज एजेंसियों की संख्या बढ़ा दी गई। भट्ट ने कहा कि ‘अन्य’ का विकल्प हटा देने से देशभर के उन लघु मध्यम और मझोले समाचार पत्र-पत्रिका प्रकाशकों के सामने गंभीर समस्या खड़ी हो गयी है जो अपने लिए समाचार,लेख,फीचर आदि खुद ही संकलित करते हैं।
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भट्ट ने कहा है कि देश के हजारों लघु, मध्यम और मझोले श्रेणी के छोटे-छोटे साप्ताहिक,मासिक और पाक्षिक समाचार पत्र जो स्वयं ही स्वामी, प्रकाशक,मुद्रक व संपादक हैं या जिन छोटे समाचार पत्रों के अपने संवाददाता,लेखक और फीचर राइटर हैं,जो अपने काम खुद कर रहे हैं उन्हें न्यूज एजेंसी की आवश्यकता ही नहीं है। उनके लिए ऑन लाइन आवेदन में अन्य का विकल्प हटाकर केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा छोटे समाचार पत्र पत्रिकाओं का अस्तित्व समाप्त करने की साजिश की गई है। नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स के प्रदेश अध्यक्ष भट्ट ने देशभर के लघु,मध्यम और मझोले समाचार पत्र, पत्रिकाओं के व्यापक हित में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री तथा केंन्द्रीय संचार ब्यूरो के महानिदेशक से मांग की है कि केन्द्रीय संचार ब्यूरो द्वारा पीटीआई,एएनआई, यूएनआई, वार्ता,भाषा, आईएएनएस, वेब वार्ता,जीएनएस, हिन्दुस्तान समाचार,ईएमएस,हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा, आरएनएस जैसी जिन बड़ी-बड़ी समाचार एजेंसियों को सूचीबद्ध किया गया है,इनकी अनिवार्यता केवल दैनिक प्रकाशनों और प्रसारणों के लिए लागू की जानी चाहिये और छोटे-छोटे साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्र-पत्रिकाओं को इस अनिवार्यता से मुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा है कि समाचार पत्र पत्रिकाओं के हित में ऑन लाइन आवेदन की अंतिम तिथि को भी कम से कम 15 दिन और आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
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