सीपीआर देकर बचाई जा सकती है जान-राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग

जोधपुर,सीपीआर देकर बचाई जा सकती है जान-राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग। सम्पूर्णानन्द आयुर्विज्ञान महाविद्यालय जोधपुर के निश्चेतना विभाग द्वारा संस्थान के सभी विभागों के पीजी चिकित्सकों को बीएलएस एवं एसीएलएस प्रशिक्षण दिया गया।

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आए दिन समाचार पत्रों एवं सोशियल मिडिया में कार्डियक अरेस्ट के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। ऐसी स्थिति में कार्डियोपल्मोनरी रिससीटेसन यानि सीपीआर एक संजीवनी बूटी हैं,जिससे पीडि़त की जान बचाई जा सकती है। युवाओं सहित हर उम्र के लोगों में अचानक कार्डियक अरेस्ट के बढ़ते मामले बड़ी चिन्ता का विषय बना है। युजीसी ने आंकड़े देते हुए कहा कि देश के केवल 0.1 प्रतिशत लोगों को ही बेसिक लाईफ सपोर्ट (बीएलएस) की जानकारी है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मन्त्रालय ने कार्डियक अरेस्ट वाले मरीजों की जान बचाने के लिए बड़े स्तर पर सीपीआर प्रशिक्षण देने का अभियान प्रारम्भ किया है। माना जाता है कि जितने ज्यादा लोगों को यह प्रशिक्षण दिया जाये,उतने अधिक लोगों की जान बचाना संभव होगा।

इसी सोच को देखते हुए भारत के राजपत्र भाग-।।। खण्ड 4 राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग की अधिसूचना के गजट 29 दिसम्बर 2023 के तहत सभी पीजी चिकित्सकों के लिए बेसिक लाईफ सपोर्ट (बीएलएस) एवं एडवान्स कार्डियक लाईफ सपोर्ट (एसीएलएस) की जानकारी एवं प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया है।

इसी कड़ी में डॉ.संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज के अधिन सभी विभागों के पीजी चिकित्सकों को बीएलएस एवं एसीएलएस प्रशिक्षण दिये जाने के निर्देशानुसार निश्चेतना विभाग,डॉ सम्पूर्णानन्द आयुर्विज्ञान महाविद्यालय,जोधपुर के चिकित्सकों की टीम डॉ सरीता जनवेजा,वरिष्ठ आचार्य एवं विभागाध्यक्ष तथा डॉ गीता सिन्गारिया,वरिष्ठ आचार्य (डायरेक्टर) एवं डॉ प्रमिला सोनी,सह आचार्य (कोर्स कोर्डिनेटर) के नेतृत्व में संस्थान के सभी विभागों के लगभग 510 पीजी चिकित्सकों को दो दिवसीय बीएलएस एवं एसीएलएस प्रशिक्षण 18 मार्च 2024 से 16/जुलाई 2024 तक अलग-अलग बैच में दिया गया।

उक्त प्रशिक्षण निश्चेतना विभाग के चिकित्सक डॉ नीलम मीना,डॉ चन्दा खत्री,डॉ शिखा सोनी,डॉ वन्दना शर्मा, डॉ अभिलाषा थानवी,डॉ मोनिका गुप्ता,डॉ गायत्री तंवर,डॉ रश्मि स्याल, डॉ अनीशा बानु,डॉ मनीष सिंह चौहान,डॉ मनीष झा एवं डॉ आभास छाबड़ा इत्यादि द्वारा दिया गया।

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उक्त प्रशिक्षण के समापन के अवसर डॉ सम्पूर्णानन्द आयुर्विज्ञान महाविद्यालय की प्रधानाचार्य एवं नियन्त्रक डॉ रंजना देसाई एवं मथुरादास माथुर चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ नवीन किशोरिया ने निश्चेतना विभाग के चिकित्सकों की टीम की सराहना की। उन्होनें कहा कि इमरजेन्सी में यदि किसी भी व्यक्ति को हृदयघात (कार्डियक अरेस्ट) हो जाये तब उस समय पीडि़त की जान कैसे बचाई जा सकती है, यह जानकारी हर आम आदमी को होनी चाहिये।

सीपीआर क्या है?एवं सीपीआर की आवश्यकता क्यों
सीपीआर मतलब कार्डियोपल्मोनरी रिससीटेसन यानि हृदय एवं फेंफड़ों को कृत्रिम तरीके से पुन: प्रारम्भ करना है।यह एक प्राथमिक चिकित्सा का हिस्सा है। जब भी किसी की अचानक सांस बंद हो जाये एवं बेहाश हो जाये तब उस स्थिति में सीपीआर देकर मरीज की जान बचाई जा सकती है। यदि सीपीआर समय पर दिया जाये तो पीडि़त की जान बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। कार्डियक अरेस्ट आने की स्थिति में प्रारम्भिक 2 से 10 मिनट का समय बहुत ही अहम होता है। पर्याप्त ऑक्सीजन के बिना शरीर की कोशिकाऐं विशेषत: मस्तिष्क की कोशिकाएं खत्म होने लगती हैं, जिससे गंभीर नुकसान या मौत हो सकती हैं।

सीपीआर कैसे दिया जाता हैं

सीपीआर बेसिक लाईफ सपोर्ट एक बुनियादी जीवन रक्षक कौशल है, इसलिए आज के परिपेक्ष्य में चिकित्सकों,नर्सिंग,पेरामेडिकल स्टॉफ के साथ साथ आम नागरिकों को भी इस कौशल का प्रशिक्षण अत्यन्त आवश्यक हैं। जब किसी व्यक्ति को कार्डियक अरेस्ट होता है तब सीपीआर शुरू करने से पहले यह जॉंच करना जरूरी हैं कि मरीज होश में है या नहीं,शरीर में कोई प्रतिक्रिया है या नहीं। अगर कोई प्रतिक्रिया नहीं है तो सीपीआर शुरू करने से पहले फोन करके चिकित्सा सहायता मंगवानी चाहिये एवं पीडि़त को किसी ठोस जगह पर लिटा दिया जाना चाहिये। मरीज की सांस एवं दिल की धड़कन चल रही है या नहीं यह देखना चाहिये। यदि सांस नहीं चल रही है ओर दिल की धड़कन भी नहीं महसूस हो रही हो तो सीपीआर की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिये।

सीपीआर शुरू करने से पहले यह भी देखना जरूरी है कि जहां आप मरीज को सीपीआर देने जा रहे हैं वह जगह सुरक्षित है या नहीं। अगर जगह सुरक्षित नहीं है तो पहले मरीज को सुरक्षित जगह पर ले जाना चाहिये एवं मरीज का सीपीआर शुरू करना चाहिये।

सीपीआर देने वाला व्यक्ति पीडि़त के पास घुटनों के बल बैठ जाता है। सीपीआर में मुख्य रूप से दो कार्य किये जाते हैं,पहला छाती को दबाना एवं दूसरा मुॅंह से कृत्रिम सांस देना। सीपीआर देते समय पीडि़त के सीने के बीच स्टरनम के निचेले 1/3 भाग में एक हाथ की हथेली रख कर एवं दूसरे हाथ की उंगलियों को पहले हाथ से बॉंधकर छाती को 5-6 सेंन्टी मीटर तक दबाया जाता है,ऐसा 100 -120 प्रति मिनट की गति से दबाया जाता है। पम्पिंग के साथ-साथ मरीज को कृत्रिम सॉंस भी दी जाती हैं।

छाती पर दबाव एवं कृत्रिम सॉंस देने का अनुपात 30: 02 होना चाहिये अर्थात 15 सैकण्ड में 30 बार छाती में दबाव एवं 03 सैकण्ड में दो बार कृत्रिम सांस दी जानी चाहिये। कृत्रिम सांस मुंह से देते समय मरीज के सिर को टिल्ट करते हैं और नाक के छेद को भी बंद करते हैं जिससे मुंह से दी गई सांस सीधी फेंफड़ों तक पंहुच सके। इस बात का भी घ्यान रखा जाता है कि कृत्रिम सांस देते समय मरीज की छाती भी ऊपर हो रही है। यह प्रक्रिया 2 मिनट तक बिना रुके लगातार करते रहना होता है और 2 मिनट के बाद फिर से सांस एवं धड़कन चैक करनी है। अगर धड़कन और सांस महसूस नहीं होने की स्थिति में यही प्रक्रिया तब तक करते रहना हैं जब तक पीडि़त की सांस न आ जाये।

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एसीएलएस (एडवान्स कार्डियक लाईफ सपोर्ट) क्या है
सीपीआर या बेसिक लाईफ सपोर्ट के साथ-साथ दवाईयों व उन्नतउपकरणों का उपयोग कर अस्पताल में मरीज की जान बचाना और जान बचाने के बाद अन्य उपचार एसीएलएस कहलाता है। यह प्रक्रिया अस्पताल में प्रशिक्षित चिकित्सकों एवं नर्सिंग कर्मियों द्वारा की जाती है। इसमें कार्डियक अरेस्ट की पहचान के साथ साथ उसके कारणों की पहचान,वायु प्रबंधन,स्ट्रोक एवं उसका प्रबंधन किया जाता है।