जानिए यजुर्वेद के बारे में
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शब्द संदर्भ – (172) यजुर्वेद
लेखक:- पार्थसारथि थपलियाल
चार वेदों में से यजुर्वेद दूसरा वेद है। यजुर्वेद,यजुष और वेद शब्दों से बना है। यजुष शब्द का अर्थ है यज्ञ /समर्पण। यज्ञ में ईंधन, हवन सामग्री, समिधा, घी, सेवा आदि समर्पित किये जाते हैं। यह वेद मूलतः गद्यात्मक है लेकिन कुछ ऋचाएं पद्यात्मक हैं। यजुर्वेद में वैदिक अनुष्ठान पर गहन चिंतन हुआ है। यह वेद अधिकतर कर्मकांड प्रधान है। इसमें हवन और यज्ञों के नियम विधान है। इसमें यज्ञों में अग्निहोत्र, अश्वमेध, सोम यज्ञ, वाजसनेय यज्ञ, राजसूय यज्ञ आदि का वर्णन है।
यजुर्वेद में तत्वज्ञान,आत्मा, परमात्मा, ईश्वर प्रकृति आदि पर भी चिंतन उपलब्ध है। यजुर्वेद की मध्यंदिनी संहिता ही उपलब्ध है इसमें कुल 1975 मंत्र और 3998 ऋचाएं हैं। इस वेद में 663 मंत्र ऋग्वेद से और कुछ अथर्ववेद से लिये गए हैं। प्रमुख गायत्रीमंत्र और महामृत्युंजयमंत्र भी इस वेद में हैं। ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ का नाम तैतरीय है। आरण्यक का नाम भी तैतरीय है। यजुर्वेद के उपनिषद है- तैतरीय, कठोपनिषद, श्वेताश्वतर यजुर्वेद के दो सम्प्रदाय हैं- एक है ब्रह्म सम्प्रदाय या कृष्ण यजुर्वेद जो दक्षिण भारत में प्रचलित है, दूसरा है आदित्य सम्प्रदाय या शुक्ल यजुर्वेद, जो उत्तर भारत मे प्रचलित है। यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है, इसके ब्राह्मण ग्रंथ का नाम शतपथ ब्राह्मण है।
यजुर्वेद के दो सम्प्रदाय हैं जिनके प्रसिद्ध नाम कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद हैं। कृष्ण यजुर्वेद की सहिंता हैं-तैतरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल। शुक्ल यजुर्वेद की सहिंता है माध्यन्दिन और कण्व।
यजुर्वेद के उपनिषद: तैतरीय, श्वेताश्वर, कठ, मैत्रायणी, वृहदारण्यक, ईशोपनिषद हैं। उपनिषदों की रचना बहुत बाद में हुई है। यजुर्वेद में राष्ट्र और समाज के कल्याण के लिए भी प्रार्थना की गई है।
ओ३म् आ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूरऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढ़ाऽनड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे-निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ — यजुर्वेद 22, मन्त्र 22 इसका काव्यमय अर्थ है-
ब्रह्मन् ! स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी।
क्षत्रिय महारथी हों, अरिदल विनाशकारी ॥
होवें दुधारू गौएँ, पशु अश्व आशुवाही।
आधार राष्ट्र की हों, नारी सुभग सदा ही ॥
बलवान सभ्य योद्धा, यजमान पुत्र होवें।
इच्छानुसार वर्षें, पर्जन्य ताप धोवें ॥
फल-फूल से लदी हों, औषध अमोघ सारी।
हों योग-क्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी ॥
“यदि आप भी किसी हिंदी शब्द का अर्थ व व्याख्या जानना चाहते हैं तो अपना प्रश्न यहां पूछ सकते हैं”।
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