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जोधपुर: उत्साह पूर्वक मनाई डॉ रंगनाथन की 133वीं जयंती

जोधपुर(डीडीन्यूज),जोधपुर: उत्साह पूर्वक मनाई डॉ रंगनाथन की133वीं जयंती। डॉ.एसएन मेडिकल कॉलेज के केंद्रीय पुस्तकालय में पद्मश्री डॉ. शियाली रामामृत रंगनाथन की 133वीं जयंती उत्साह पूर्वक मनाई गई। डॉ. रंगनाथन को भारत में पुस्तकालय विज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ.बीएस. जोधा ने की।

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विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. एफएस भाटी(अतिरिक्त प्राचार्य), डॉ.योगीराज जोशी(अतिरिक्त प्राचार्य),डॉ.विकास राजपुरोहित (अधीक्षक,एमडीएम अस्पताल) और डॉ.मोहन मकवाना (अधीक्षक, उम्मेद अस्पताल) मंच पर उपस्थित थे। अन्य विभागों के वरिष्ठ प्रोफेसरों एवं विभागाध्यक्षों ने भी अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई।

इस अवसर पर 20 नियमित पुस्तक-पाठन करने वाले विद्यार्थियों और उत्कृष्ट कार्यकुशलता के लिए 7 पुस्तकालय कर्मियों को प्रशंसा-पत्र एवं स्मृति-चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस पहल का उद्देश्य डिजिटल युग में भी पुस्तकों के पठन-पाठन की आदत को प्रोत्साहित करना था।

कार्यक्रम के दौरान प्राचार्य डॉ. बीएस जोधा ने अपने उद्बोधन में कहा कि पुस्तकालय किसी भी संस्थान का केंद्रीय बिंदु होता है,यह उसकी शैक्षणिक गतिविधियों का दर्पण है। डॉ.रंगनाथन का जीवन हमें यह सिखाता है कि पुस्तकें केवल ज्ञान का स्रोत नहीं,बल्कि जीवन का सार हैं। उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि सच्चा ज्ञान किताबों से मिलता है,न कि केवल मोबाइल और डिजिटल माध्यमों से। उन्होंने कहा हर व्यक्ति को अपने जीवन में किताबों के साथ समय बिताना चाहिए, क्योंकि वही हमें सोचने,समझने और सही दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। पुस्तक का सानिध्य जीवन को सार्थक बनाता है,और यही डॉ. रंगनाथन का सच्चा संदेश है।

उन्होंने यह भी बताया कि इस वर्ष कॉलेज को ONOS सब्सक्रिप्शन प्राप्त हुआ है और शीघ्र ही NML कंसोर्टियम ई-बुक सब्सक्रिप्शन मिलने जा रहा है,जो इस संस्थान के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।
डॉ.एफएस भाटी,जो स्वयं एक कुशल लेखक हैं और कई पुस्तकें प्रकाशित कर चुके हैं,ने कहा कि पुस्तकालय उनका एक पसंदीदा स्थान है। उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि आधुनिक डिजिटल पुस्तकें पारंपरिक पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकतीं। उन्होंने विद्यार्थियों को पुस्तकों के पठन की आदत विकसित करने की सलाह दी।

चिकित्सा अधिकारी प्रभारी डॉ. किशोर खत्री और बिंदु टाक ने डॉ. रंगनाथन के दूरदर्शी योगदान को रेखांकित करते हुए कहा शियाली रामामृत रंगनाथन,जिन्हें भारत में पुस्तकालय विज्ञान का जनक माना जाता है,ऐसे दूरदर्शी थे जिन्होंने ज्ञान को खोजने और व्यवस्थित करने के तरीकों को बदल दिया।1892 में जन्मे डॉ. रंगनाथन का योगदान केवल पुस्तकों के वर्गीकरण तक सीमित नहीं था,उन्होंने अपने प्रसिद्ध ‘पुस्तकालय विज्ञान के पाँच नियम’ देकर पुस्तकालयों को एक जीवंत आत्मा और उद्देश्य प्रदान किया,जो आज के डिजिटल युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

पुस्तकालय कोई स्थिर संग्रह नहीं, बल्कि एक जीवंत, निरंतर विकसित होने वाली इकाई है,जो हर ज्ञान- पिपासु की सेवा के लिए बनी है। उनका जीवन इस विश्वास का प्रतीक था कि सूचना अधिकार है, विशेषाधिकार नहीं। कार्यक्रम का संचालन बिंदु टाक ने किया। कार्यक्रम का समापन पुस्तक-पठन संस्कृति और पुस्तकालयों की आत्मा को जीवित रखने के संकल्प के साथ हुआ।


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