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भारत की एकात्मता और जनजातीय संस्कृति

भारत की एकात्मता और जनजातीय संस्कृति (1)

संस्कृति

पार्थसारथि थपलियाल

भारत और भारतीय नागरिकों के बारे में सबसे पुरानी परिभाषा विष्णुपुराण और पद्मपुराण में पढ़ने को मिलती ही। इस संदर्भ को व्यक्त करने वाला श्लोक है-

उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।

अर्थात पृथ्वी का जो भाग समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है, उस भू भाग को भारत वर्ष कहते हैं और उसमें निवास करने वाले भारतवर्ष की संतानें हैं। भारतवर्ष को हिंदुस्तान भी कहा जाता रहा है इसका मतलब हिंदुस्तान में जन्म लेने वाला हर आदमी हिन्दू हैं।

भारत में अपना शासन स्थापित करने में जब अंग्रेजों को कठिनाई आ रही थी तब उन्होंने भारतीय समाज में “फूट डालो और राज करो” के सिद्धांत को अपनाया और सबसे पहले भारत में मुस्लिम लीग स्थपित करवाई। आगे चलकर यही मुस्लिम भारत विभाजन का कारण बनी। समाज में द्वेष बढ़ाने के उद्देश्य से अंग्रेजों नें सिखों में भी अलगाव के बीज बोने का प्रयास किया था। अंग्रेजों ने जनजाति के लोगों को भी हिंदुओं से अलग करने की कोशिश की। वे अपने उद्देश्य में कुछ हद तक सफल भी हुए। यह कहना भी गलत होगा कि ऐसा सिर्फ अंग्रेजों ने किया। स्वाधीन भारत में बौद्धों और जैनियों को अलग होने का मंत्र किसने दिया? हिन्दू और मुसलमानों के मध्य सामाजिक दूरी बढ़ाने वाले अंग्रेज नही थे। इस भारत में राजनीति की रोटियां सेकने वाले वोट पाने के लिए कभी ब्राह्मण- राजपूत को भिड़ा देते हैं तो कभी राजपूत और जाटों को। कभी सवर्ण और दलितों को।अपनी राजनीति चमकाने के लिए द्रविड़ आंदोलन चला तो कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने की बात भी उठी।

समाज में ऐसे चिंतक भी हैं जो यह समझते हैं कि हम सभी भारतीय हैं। राष्ट्र के विकास में हमारी सोच समान हो, राष्ट्र की भावना सर्वोपरि होनी चाहिए। हम एक दूसरे के धर्मों का परस्पर सम्मान करें और उन तंतुओं को खोजें जिनसे सामाजिक एकता, समरसता और पारस्परिक सद्भावना बढ़ती हो। “सभ्यता अध्ययन केंद्र” ऐसी ही संस्था है जो समाज को जोड़ने के कार्य में लगी हुई है। ऐसा समाज का अध्ययन करने से ही सम्भव है।

6 व 7 अगस्त 2022 को नई दिल्ली में इंटर यूनिवर्सिटी एक्सीलेटर सेंटर सभागार में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के संयुक्त आयोजक थे सभ्यता अध्ययन केंद्र, जनजातीय कार्यमंत्रालय और वनवासी कल्याण आश्रम। 6 अगस्त को उद्घाटन सत्र में मंच पर विराजमान थे रामचन्द्र खराड़ी, अध्यक्ष वनवासी कल्याण आश्रम, वे सत्र की अध्यक्षता भी कर रहे थे। विशिष्ट अतिथि थे डॉ. अशोक वार्ष्णेय, संगठन मंत्री-आरोग्य भारती तथा सलाहकार,आयुष मंत्रालय एवं डॉ. अविनाश पाण्डेय, निदेशक आईयूएसी और निदेशक सभ्यता अध्ययन केंद्र रवि शंकर। संचालक थे रितेश पाठक। मंगलाचरण पाठ किया अलंकार शर्मा ने।

सत्र के आरंभ में दीप प्रज्ज्वलन व भगवान बिरसा मुंडा के चित्र को नमन करने के पश्चात डॉ.अविनाश पांडेय ने देश के विभिन्न भागों से इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने आये प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने भारतीय समाज की स्थिति पर चिंतन करते हुए कहा कि हमें जो इतिहास पढ़ाया गया वह हमारे गौरव को प्रकट करने वाला इतिहास नही। यह भारतीयों को असभ्य दिखाने वाला इतिहास है। अंग्रेज़ो ने जो इतिहास पढ़ाया उसके अनुसार आर्य अन्यत्र से आये। जबकि आधुनिक उपागमों ने सिद्ध कर दिया है कि हम सभी यहीं के निवासी हैं।

क्रमश: 2….

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