उत्तराखंड में अवैध खनन बना काली कमाई का जरिया
दया जोशी
उत्तराखण्ड में अवैध खनन का काला कारोबार कुछ दशकों में ही जबर्दस्त कमाई का जरिया बन गया है। यह कारोबार राजनेताओं,अफसरों और माफियाओं की मिलीभगत की वजह से एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है और जमकर फल फूल रहा है। खनन माफियाओं को न तो उत्तरा खण्ड हाईकोर्ट के निर्णयों की परवाह है और न जीरो टोलरेंस वाली उत्तराखण्ड सरकार का कोई डर। सभी निर्णय और आदेश खनन माफियाओं ने ठेंगे पर रखे हैं। सरकार के नुमाइंदे और शासन के तमाम बड़े अधिकारी इन खनन माफियाओं से मिलीभगत कर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं लाखों करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के निर्णय एवं उत्तराखण्ड खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भण्डारण निवारण) नियमावली 2021 के प्राविधानों का उल्लघंन उत्तराखंड में अब आम बात हो चुकी है।
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बिना अनुमति के उत्तराखण्ड की सभी नदियों में पोकलेण्ड व जेसीबी मशीन के प्रयोग पर हाईकोर्ट उत्तराखण्ड में याचिकाकर्ता गगन पारसर द्वारा दाखिल याचिका संख्या 169/2022 पर 19/12/2022 के निर्णयानुसार एवं उत्तराखण्ड खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भण्डारण निवारण) नियमावली 2021 के नियमों का जमकर उल्लंघन हो रहा है, जिसके अन्तर्गत नदी में खनन कार्य करने वाली पोकलैंड मशीनों एवं जेसीबी मशीनों को खान अधिकारी एवं राजस्व अधिकारियों द्वारा सीज़ करने के आदेश हैं। यदि ऐसा करता पाया गया तो मशीन मालिकों व खनन कारोबारियों पर लाखों रुपए का जुर्माना लगाया जाना है। इसके बावजूद मालिकों द्वारा अपने रसूख और सांठगांठ का प्रयोग करके इन मशीनों से खनन बेरोक टोक धड़ल्ले से कर रहे हैं। जब इन पोकलैंड व जेसीबी मशीनों को सीज़ किया जाता है तो खनन कारोबारी द्वारा आनन फानन में इनको छुड़ा लिया जाता है तथा जुर्माना वसूली की कोई रसीद भी सार्वजनिक नहीं की जाती है। अवैध खनन में लिप्त इन खनन माफियाओं के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई भी कभी सार्वजनिक नहीं की गई।
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अवैध खनन माफिया अपने रसूख और धन बल का प्रयोग करते हुए अपने पोकलैंड मशीनों और जेसीबी को छुड़ाने में हमेशा कामयाब रहते हैं तथा दिन-रात उत्तराखंड की नदियों का सीना चीर कर अवैध खनन में करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं।
विस्तार पूर्वक इस मामले में बात की जाये तो 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के वार्षिक कारोबार के साथ पर्यटन के बाद उत्तराखंड में खनन (ज्यादातर अवैध) को दूसरा सबसे बड़ा पैसा कमाने का स्रोत कहा जाता है। यह बात सर्वविदित है कि सभी खनन माफिया चुनावी चंदा एकत्रित करते हैं और सभी राजनीतिक दलों में उनकी हिस्सेदारी है।
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हर वर्ष अवैध खनन के भ्रष्टाचार में लिप्त लगभग 150-200 करोड़ रुपये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तराखण्ड के आला अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक पहुंचता है, जिसमें अवैध खनन पर नाममात्र की कार्यवाही करते हुए आला अधिकारी अपनी कुर्सी बचाते हुए अपने अधीनस्थ छोटे कर्मचारियों पर रसूखदारों और खनन माफियाओं के दबाव में स्थानांतरण जैसी कार्यवाही करते हुए छोटे कर्मियों को परोक्ष रुप से खनन में सहयोग करने का दबाव भी बनाते हैं। अवैध खनन पर वैध कार्यवाही करने का मामला ऊधम सिंह नगर के किच्छा क्षेत्र से जुड़ा है जिसमें अवैध खनन में लिप्त जेसीबी को सीज करने वाले एक राजस्व कर्मी का स्थानांतरण रातों रात किच्छा क्षेत्र से बाहर कर दिया गया। उत्तराखंड वन महकमे में महिला वन दरोगा का ट्रांसफर भी चर्चा का विषय बना। तराई में कोसी व दाबका नदियों में खनन कारोबारी धड़ल्ले से अवैध खनन कर रहे हैं।
कुछ दिन पूर्व खनन माफियाओ द्वारा महिला वन दरोगा से अभद्रता कर धमकी दी गयी थी जिस पर महिला दरोगा ने कोतवाली रामनगर मे लिखित शिकायत भी की जिस पर मुकदमा दर्ज भी हुआ लेकिन महिला वन दरोगा का अपने ही विभाग ने अवैध खनन रोकने पर बतौर इनाम ट्रांसफर कर दिया। कोसी नदी मे दिन रात अवैध खनन धडल्ले से जारी है जिसे रोक पाना वन विभाग के लिए टेड़ी खीर बना हुआ है। अब देखना यह है कि उच्च न्यायालय उत्तराखंड के निर्णय एवं अवैध खनन परिवहन एवं भंडारण निवारण नियमावली 2021 के प्रावधानों का पालन कराने में उत्तराखंड सरकार कितनी इमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाती है अथवा अवैध खनन इस प्रदेश की सभी नदियों में हमेशा की तरह ऐसे ही चलता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विभिन्न राज्यों में अवैध खनन जारी है। खनन के लिए नियम मौजूद हैं लेकिन राज्यों के स्तर पर उनका उल्लंघन हो रहा है समस्या की जड़ पर अंगुली रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘समय के साथ महसूस किया गया है कि कमी कानूनों में नहीं हमारे चरित्र में है।’
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