गुरु पूर्णिमा पर किया संस्था के मार्गदर्शकों का सम्मान
श्याम भक्ति सेवा संस्थान ने किया विधिवत सम्मान
जोधपुर,गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जोधपुर के श्याम भक्ति सेवा संस्थान की ओर से संस्थान के मार्गदर्शकों का विधिवत रूप से सम्मान किया गया। इस अवसर पर उनका आशीर्वाद भी लिया। श्याम भक्ति सेवा संस्थान के सचिव राजकुमार रामचंदानी ने बताया कि गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर संस्थान की अध्यक्ष मोनिका प्रजापत के सानिध्य में संस्थान से जुड़े हुए मार्गदर्शकों का सम्मान,अभिनन्दन कर आशीर्वाद लिया।
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जोधपुर के सूरसागर स्थित बड़े राम द्वारा के मुख्य महंत रामसनेही संत रामप्रसाद,सैनाचार्य अचलानंद गिरी, साध्वी प्रीति प्रियंवदा और राजस्थान राज्य संस्कृत अकादमी की पूर्व अध्यक्ष डॉ जया दवे का पूजन और वंदन,अभिनंदन और सम्मान किया गया। इस अवसर पर कार्यकारिणी सदस्य लक्की गोयल,हेमंतलालवानी, कृष्णा गौड़,सदस्य मनीष गहलोत, रश्मि जांगिड़,विदिशा जांगिड़,दमयंती जांगिड़,रामेश्वर जांगिड़ और जैनिल शर्मा ने उत्साह के साथ गुरुजनों के सम्मान में भाग लिया।
इस अवसर पर राम स्नेही संत रामप्रसाद ने कहा कि,बरसों से चली आ रही गुरु शिष्य की परंपरा आज भी परंपरागत तरीके से निभाई जा रही है। गुरु अंधकार से बाहर निकालकर जीवन में सही राह पर चलने का मार्ग बताता है। व्यक्ति को उसके कर्तव्यों, जिम्मेदारियां और धर्म के प्रति जागृत करने के साथ जब सही राह बताता है तो इंसान अपने जीवन में अपने उद्देश्यों में सफल होता है। उन्होंने सभी से अधिक से अधिक पेड़ लगाने और अपने घर मोहल्ले और क्षेत्र को साफ सुथरा रखने का आह्वान किया।
साध्वी प्रीति प्रियमवंदा ने कहा कि गुरु बनाना बहुत आसान होता है लेकिन गुरु के प्रति सम्मान की भावना रखने और गुरु के बताए मार्ग पर चलना बहुत जिम्मेदारी वाला काम होता है। हालांकि गुरु के बताए मार्ग पर चलने से भला हमेशा शिष्य का ही होता है, लेकिन पुराने जमाने की जो गुरु शिष्य परंपरा थी वह अब कम देखने को मिलती है। फिर भी गुरु के प्रति हमेशा सम्मान की भावना रखना,हमारी संस्कृति का सम्मान करना है।
सैनाचार्य अचलानंद ने कहा कि,गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।गुरु शब्द का अर्थ होता है अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं।
राज्य संस्कृत अकादमी की पूर्व अध्यक्ष डॉ जया दवे ने कहा कि सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा के दिन वेदों के रचयिता वेदव्यास का जन्मोत्सव मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वेदव्यास को जगत का प्रथम गुरु माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णुजी के रूप हैं। वेदों में गुरु को ब्रह्मा,विष्णु और महेश का स्वरूप बताया गया है। गुरु के साथ ही माता-पिता को भी गुरु के तुल्य मानकर उनसे सीख लेना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।
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संस्थान के सचिव राजकुमार रामचंदानी ने बताया कि जोधपुर के सूरसागर स्थित बड़े राम द्वारा के मुख्य महंत रामसनेही संत रामप्रसाद, सैनाचार्य अचलानंद गिरी,साध्वी प्रीति प्रियंवदा और राजस्थान राज्य संस्कृत अकादमी की पूर्व अध्यक्ष डॉ जया दवे संस्थान के मार्गदर्शक हैं जो समय-समय पर विभिन्न प्रकार के आध्यात्मिक,धार्मिक,सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकार से जुड़े आयोजनों को करने के लिए राह बताने का काम करते हैं,जिससे यह संस्थान कामयाबी के पथ पर अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखकर आगे जाने में सफल हो पाता है।