जोधपुर, अफीम की खेती को लेकर स्पष्ट नियमों के अभाव ने हाईकोर्ट की दिक्कतों को बढ़ा दिया है। अवैध रूप से अफीम की खेती करने वाले लोगों को स्माल या व्यावसायिक खेती मानी जाए या नहीं? इसे लेकर अस्पष्टता के कारण मारवाड़ में कई लोग अवैध रूप से अफीम की खेती करने के बावजूद आसानी से ना केवल जमानत हासिल कर रहे हैं बल्कि सजा का प्रावधान भी बहुत कम है। इसे लेकर स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बारे में केन्द्र सरकार से नियमों को स्पष्टता बताने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 12 जुलाई को होगी।

हाईकोर्ट के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने जोधपुर जिले में अन्य उपज के साथ अवैध तरीके से अफीम की खेती करने के आरोप में पकड़े गए एक व्यक्ति की जमानत याचिका की सुनवाई के बाद इस मामले में प्रसंज्ञान लिया। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार की ओर से 19 अक्टूबर 2001 को जारी नोटिफिकेशन के कारण वर्ष 1985 के नारकोटिक्स एक्ट को लेकर कुछ संशय पैदा हो गया है।

पहले बगैर लाइसेंस अफीम की खेती को कोको के समान अवैध माना जाता था लेकिन इस नोटिफिकेशन में स्माल व व्यावसायिक उत्पादन की लाइन को जोड़ दिया गया है। इसमें स्पष्ट नहीं है कि स्माल उत्पादन एक पौधा होगा या फिर एक लाख पौधे। नारकोटिक्स एक्ट कहता है कि बगैर लाइसेंस अफीम का उत्पादन ही अपराध है।

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नोटिफिकेशन में स्माल व व्यावसायिक उत्पादन के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान कर दिया गया। इसके तहत स्माल श्रेणी में अधिकतम एक साल की सजा या दस हजार रुपए तक या दोनों एक साथ का प्रावधान है। वहीं व्यावसायिक में दस से बीस साल की सजा व एक से दो लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। कोको की सभी तरह की खेती को अपराध की श्रेणी में माना गया है। इसमें दस साल तक की सजा और एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।

दरअसल डोडा पोस्त की बिक्री पर रोक के बाद मारवाड़ में इसकी तस्करी बहुत अधिक बढ़ गई। साथ ही इसके दाम भी बहुत अधिक बढ़ गए। इससे बचने के लिए मारवाड़ में आजकल कई स्थान पर लोगों ने अपने खेतों में अन्य उपज के साथ अफीम की खेती करना शुरू कर दिया। कई मामले सामने आए और लोग पकड़े भी गए। ऐसे लोग नए नोटिफिकेशन का लाभ उठा स्वयं को स्माल श्रेणी का बता हाथों हाथ जमानत हासिल कर रहे हैं।

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कोर्ट के पास भी इन लोगों को जमानत नहीं देने का कोई ठोस आधार भी नहीं है। अब हाईकोर्ट ने इस बारे में केन्द्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने कहा कि नियमों में स्पष्टता बहुत आवश्यक है। बगैर लाइसेंस अफीम की खेती पूरी तरह से गैर कानूनी है या नहीं। यह स्पष्ट होने से इससे जुड़े मामलों में फैसला लेने में आसानी रहेगी। मारवाड़ के ग्रामीण क्षेत्र में अफीम व डोडा पोस्त का बहुत अधिक प्रचलन है।

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ग्रामीण क्षेत्र में शादी समारोह हो या फिर किसी की मौत के बाद होने वाली बैठकों में अफीम व डोडा पोस्त की मनुहार होती रहती है। इसके बगैर आयोजन को अधूरा माना जाता है। बढ़ते दाम के कारण लोगों ने विकल्प के रूप में गैर काूनी तरीके से इसकी खेती करना शुरू कर दिया, ताकि खुद की आवश्यकताओं को पूरा कर सके। साथ ही नियमों में अस्पष्टता का फायदा उठा वे आसानी से जेल जाने से भी बच रहे हैं।

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