राष्ट्रीय स्तर पर मिला सिल्वर प्राइज
अस्थि रोग विभाग की उपलब्धि
जोधपुर,राष्ट्रीय स्तर पर मिला सिल्वर प्राइज। मुँबई में आयोजित स्पाइन सर्जरी की राष्ट्रीय कांफ्रेंस में डॉ एस एन मेडिकल कॉलेज टीम ने शोध पत्रों की पोस्टर श्रेणी में राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया। अस्थि रोग विभागध्यक्ष डॉ किशोर राय चन्दानी ने बताया कि अस्थि रोग विभाग स्पाइन सर्जरी के क्षेत्र नये आयाम स्थापित कर रहा है। इस वर्ष मुंबई में स्पाइन सर्जरी की राष्ट्रीय कांफ्रेंस आयोजित की गई चार दिनों तक चली इस राष्ट्रीय कांफ्रेंस में भारत के एक हज़ार से अधिक स्पाइन सर्जन ने भाग लिया, जिसमे सौ से अधिक शोध पत्रों को पढ़ा गया एवं पचास से अधिक पोस्टर का प्रदर्शन किया गया। अस्थि रोग विभाग डॉ एसएनमेडिकल कॉलेज से पाँच शोध पत्रों का वाचन किया गया,जिसमे से स्पाइन सर्जन रीढ़ की हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ महेंद्र सिंह टाक के मार्गदर्शन में अस्थि रोग विभाग जोधपुर द्वारा प्रदर्शित पोस्टर श्रेणी में डॉ संकल्प लाल को राष्ट्रीय स्तर पर दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। इस उपलब्धि के लिए अस्पताल अधीक्षक डॉ फ़तह सिंह भाटी व मेडिकल कॉलेज प्रधानाचार्या डॉ रंजना देसाई ने समस्त टीम को बधाई दी।
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ओक्रोनोसिस नामक बीमारी का पोस्टर का प्रदर्शन किया गया
वरिष्ठ आचार्य अस्थि रोग डॉ महेश भाटी ने बताया कि यह बीमारी रीढ़ की हड्डी की एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी है जो एक लाख लोगों में से केवल एक या दो लोगो को होती है इस बीमारी में शरीर में जन्मजात एक एंजाइम की कमी रहती हैं।इस बीमारी को एल्कप्टोंन यूरिया के नाम से भी जाना जाता है। इसके मरीजों के शरीर पर विभिन्न जगह पर जैसे कान चमड़ी पर,हथेलियों पर,तलुवों पर नीले रंग के चकते बन जाते हैं।यह एक वंशानुगत बीमारी है जो कई बार पीढ़ी दर पीढ़ी में देखने को मिलती है। इस बीमारी में रीढ़ की हड्डी एवं शरीर के विभिन्न जोड़ों में अलग तरह के पिगमेंट के जमा हो जाने से इन मरीजों के विभिन्न जॉइंट्स बहुत ही तेज़ी से ख़राब होने लग जाते हैं। विभिन्न जॉइंट्स में आर्थराइटिस बहुत ही जल्दी विकसित हो जाता है।मरीज़ की कमर व गर्दन की डिस्क बहुत ही कम उम्र में ख़राब होने लग जाती है। चालीस की उम्र होते होते लगभग पूरे स्पाइन की समस्त डिस्क ख़राब हों जाती है। इन मरिजों को हृदय की बीमारियों की आशंका भी काफ़ी ज़्यादा रहती है। इस तरह के मरिजों को भोजन में टाइरोसिन प्रोटीन की मात्रा कम करके एवं विटामिन सी की मात्रा बढ़ाकर कुछ हद तक इस बीमारी के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
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