शब्दों का बढ़ाएं ज्ञान,जिज्ञासा का करें समाधान
शब्द संदर्भ:- (92) जय, विजय, दिग्विजय
लेखक – पार्थसारथि थपलियाल
जिज्ञासा
नोएडा से विशाखा त्यागी की जिज्ञासा है कि जय, विजय और दिग्विजय में क्या अंतर है?
समाधान
कई बार कुछ शब्द एक ही अर्थ के प्रतीत होते हैं लेकिन जब इन शब्दों की प्रकृति और संस्कृति को देखें तो अंतर दिखाई देता है।
“जय” शब्द को ही लीजिए। सामान्यतः जय शब्द का अर्थ जीत माना जाता है। पुराने नाटकों में आपने राजसभा के दृश्य में संवाद देखा सुना होगा- “महाराज की “जय” हो। महाराज! अंग देश के महामंत्री राजसभा में आने की अनुमति चाहते हैं।” नाटक के दृश्य में कोई युद्ध नही है न युद्ध की संभावना है। फिर जय किस बात की? कई बार कहा जाता है कि आपने इतनी देर में अमुक काम कर दिया तो मैं आपका “जैकारा” लगाऊंगा। किसी विद्यार्थी द्वारा बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंको से उत्तीर्ण होना, उस विद्यार्थी की प्रतिभा का परिचायक बन जाता है। इसे प्रतियोगिता नही कहा जायेगा। उस विद्यार्थी का यशगान भी उसकी जय के प्रतीक है। किसी महान हस्ती के आगमन पर समाज में नारे लगाए
जाते है अमुक महोदय की जय हो।। “जय” उसी व्यक्ति की कही जाती है जिसने अपने व्यवहार से लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली हो। “जय” किसी व्यक्ति की उपलब्धि से उपजे यश का प्रतीक है। आरती याद है- ॐ जय जगदीश हरे….
“विजय” शब्द का अर्थ है किसी चुनौती, प्रतियोगिता या युध्द में जीत स्थापित करना। विजय के लिए एक से अधिक पक्षों की आवश्यकता होती है। कोई प्रतियोगिता हुई। वह खेल-कूद, ड्रामा-डांस, चित्रकला, भाषण आदि कुछ भी जिसमे हार और जीत के लिए मुकाबला किया जाता है। प्रतियोगिता के अंतिम चरण में एक पक्ष “विजयी” होता है। क्रिकेट का खेल बहुत लोकप्रिय है इसमें आप जीत और हार शब्दों को और इस शब्द की संस्कृति को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। दो देशों के बीच हुए युद्ध में एक पक्ष जीतता है, दूसरा पक्ष हारता है। जो जीतता है उसे विजय बोलते हैं।
“दिग्विजय” शब्द दो शब्दों की संधि या मेल से बना हुआ है। दिग + विजय। “दिग” का अर्थ है दिशा और “विजय” का अर्थ है जीत। जब किसी राज्य ने अपनी हर दिशा जीत ली हो तो दिग्विजय कहलाया जाएगा। जिसने हर दिशा जीत ली हो वह दिग्विजयी कहलायेगा। अक्सर यह शब्द सम्राटों के संदर्भ में उपयोग में लाया जाता है। दिग्विजय शब्द उन महान व्यक्तियों के लिए भी उपयोग में लाया जाता है जिन्होंने अपनी प्रसिद्धि, विद्वता या ज्ञान के कारण सीमाओं के पार भी निर्विवाद सम्मान पाया हो।
प्रसंगवश
जय, विजय दो द्वारपाल थे, जो भगवान विष्णु की सेवा में कार्यरत थे। एक बार सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार ऋषि भगवान विष्णु के दर्शन करने पहुंचे। जय, विजय ने द्वार पर उन्हें रोक लिया। बोले बिना अनुमति प्रवेश नही है। काफी वाद संवाद हुआ। द्वारपाल नही माने। सनकादि ऋषियों ने द्वारपालों को श्राप दे दिया कि जाओ तुम तीन जन्मों तक राक्षस योनि में जाओ। भगवान विष्णु ने बचाव करने पर ऋषियों ने कहा कि श्राप वापस तो नही हो सकता है, लेकिन तीनों योनियों में आप (भगवान विष्णु) इनका उद्धार करने जाओगे। इस प्रकार जय और विजय नामक द्वारपाल पहली योनि में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के रूप में राक्षस योनि में जन्मे। हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर किया। हिरण्यकश्यप का वध नरसिंह अवतार लेकर, भगवान राम के रूप में रावण और कुम्भकर्ण और भगवान कृष्ण के अवतार में कंश और शिशुपाल का वध किया।
“यदि आप भी किसी हिंदी शब्द अर्थ व व्याख्या जानना चाहते हैं तो अपना प्रश्न यहां पूछ सकते हैं।”
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