जोधपुर, एम्स जोधपुर के ह्दय रोग विभाग के विशेषज्ञों द्वारा नवीनतम तकनीक के बायो रेसोर्बेबल स्टंट का सफलता पूर्वक प्रत्यारोपण किया। चिकित्सा अधीक्षक एम्स डॉ महेन्द्र कुमार गर्ग ने बताया कि बीकानेर के 52 वर्षीय ह्दयाघात से पीड़ीत मरीज को एम्स में भर्ती किया गया। चिकित्सकों द्वारा एंजियोग्राफी कर बलॉकेज़ का पता लगाया गया और स्टंट लगवाने की सलाह दी गई।
मरीज की स्वीकृति के पश्चात ब्लॉकेज हटाने के लिए एमईआरईएस 100 माईक्रोन बायो रेसोर्बेबल स्टंट लगाया गया। डॉ राहुल चौधरी ने बताया कि संपूर्ण एंजियोप्लास्टी कोरोनरी ईमेजिंग की सहायता से की गई ताकि स्टंट के साईज़ और लम्बाई का सही अनुमान लगाया जा सके। राजस्थान के किसी भी सरकारी संस्थान में इस तकनीक से की गई यह अपनी तरह की प्रथम एंजियोप्लास्टी है। मरीज का प्रोसिजर ह्दयरोग विभाग के डॉ राहुल चौधरी, डॉ सुरेंद्र देवड़ा और डॉ अतुल कौशिक ने नर्सिंग स्टाफ एवं तकनीकी स्टाफ की मदद से किया।
क्या होता है बायो रेसोर्बेबल स्टंट
यह स्टंट इंप्लाट होने के दो से तीन साल बाद आर्टरी में घुल जाता है। ह्दय की कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज़ होने पर सामान्यतया एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी द्वारा इसे ठीक किया जाता है। बिना सर्जरी के एंजियोपलास्टी द्वारा स्टंट लगाना काफी कारगर उपचार है लेकिन कई मामलों में मैटलिक स्टंट फिर से बंद हो जाता है या मरीज को स्टंट से जुड़ी अन्य समस्या हो सकती है।
लेकिन अब नवीनतम तकनीक से लगाए गए मैटलिक स्टंट कुछ समय बाद शरीर में ही घुल जाते हैं और आर्टरी सामान्यरूप से कार्य करने लगती है। पुरानी तकनीक से लगाए गए मैटलिक फ्रेम से बने स्टंट हमेशा आर्टरी में रहते हैं लेकिन बायो डिग्रेडेबल स्टंट ऐसी तकनीक है जिसमें मैटलिक फ्रेम का प्रयोग नहीं किया जाता है।
यह स्टंट पोलिमर से बना होता है जो शरीर में इंप्लाट होने के दो से तीन साल बाद अपने आप घुल जाता है। स्टंट घुलने के बाद आर्टरी प्राकृतिक अवस्था में आ जाती है। कम आयु के मरीज़ों के लिए बायो डिग्रेडेबल स्टंट से एंजियोप्लास्टी और भी अधिक उपयोगी है।
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