{"remix_data":[],"remix_entry_point":"challenges","source_tags":["local"],"origin":"unknown","total_draw_time":0,"total_draw_actions":0,"layers_used":0,"brushes_used":0,"photos_added":0,"total_editor_actions":{},"tools_used":{"addons":1,"transform":1},"is_sticker":false,"edited_since_last_sticker_save":true,"containsFTESticker":false}

भगत की कोठी-मन्नारगुड़ी एक्सप्रेस 2 मई से एलएचबी रैक से चलेगी

यात्रियों का सफर होगा आरामदायक

जोधपुर,भगत की कोठी-मन्नारगुड़ी एक्सप्रेस 2 मई से एलएचबी रैक से चलेगी। रेलवे ने यात्री सुविधा में विस्तार करते हुए मन्नारगुड़ी-भगत की कोठी-मन्नारगुड़ी एक्सप्रेस ट्रेन का अत्याधुनिक एलएचबी कोच से संचालन प्रारंभ किया है।

यह भी पढ़ें – युवक परिषद के स्नेह मिलन में समाज की सेवा की मिली प्रेरणा

उत्तर पश्चिम रेलवे के जोधपुर डीआरएम पंकज कुमार सिंह ने बताया कि रेल प्रशासन द्वारा यात्री सुविधा में वृद्धि के उद्देश्य से ट्रेन 22674/22673,मन्नारगुड़ी-भगत की कोठी-मन्नारगुड़ी सुपरफास्ट ट्रेन का 29 अप्रेल से मन्नारगुड़ी से आईसीएफ की जगह अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित एलएचबी रैक से संचालन प्रारंभ किया गया है जिससे यात्रियों का सफर और अधिक आरामदायक होगा। उन्होंने बताया कि ट्रेन 22673,भगत की कोठी से मन्नार गुड़ी एक्सप्रेस 2 अप्रेल को वापसी में भी एलएचबी कोच से संचालित होगी।

ट्रेन में होंगे 22 कोच
एलएचबी रैक में परिवर्तित होने के बाद ट्रेन में 2 सेकंड एसी,9 थ्री टायर एसी,7 स्लीपर,2 साधारण श्रेणी व दो पॉवरकार श्रेणी के डिब्बों सहित कुल 22 डिब्बे होंगे। उल्लेखनीय है कि मन्नारगुड़ी एक्सप्रेस ट्रेन के लिए एलएचबी रैक चैन्नई स्थित इंट्रीगल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) में बनाए गए हैं।

यह भी पढ़ें – सामूहिक शादी सम्मेलन सात जोड़ों का निकाह

क्या होते हैं एलएचबी कोच
एलएचबी जर्मन तकनीक है। यह अधिकतर तेज गति वाली ट्रेनों में इस्तेमाल किया जाता है। जिससे ट्रेन और भी स्पीड से पटरी पर दौड़ सकेगी। इसके साथ ही ज्यादा स्पेस होने से यात्री आराम से सीट पर बैठ व लेट सकते हैं। इस रैक से दुर्घटना होने की संभावना कम रहती है। क्योंकि ये कोच पटरी से आसानी से नहीं उतरते है।

इसके अलावा एलएचबी कोच ट्रेन में हो तो इसकी गति 160 से 180 किमी प्रति घंटे तक पहुंच सकती है। लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) आपस में टकरा नही सकते हैं। एलएचबी कोच मजबूत होते हैं अगर दुर्घटना हो जाती है तो नुकसान भी कम होता है। ये कोच एक-दूसरे पर भी नहीं चढ़ते जिससे यात्री सुरक्षित रहते हैं। इन कोचों का ओवरऑल मेंटेनेंस 3 साल में एक बार होता है। जबकि पारंपरिक कोच का मेंटेनेंस डेढ़ से लेकर दो साल में करवाना जरूरी होता है।

दूरदृष्टि न्यूज़ की एप्लीकेशन यहाँ से इनस्टॉल कीजिए – https://play.google.com/store/apps/details?id=com.digital.doordrishtinews