सुर ताल और परंपरा से सराबोर हुआ जोधपुर
- लोक रंगों का महोत्सव
- राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह संपन्न
जोधपुर(डीडीन्यूज),सुर ताल और परंपरा से सराबोर हुआ जोधपुर। सम्राट अशोक उद्यान का ओपन एयर थिएटर शुक्रवार की शाम एक अद्भुत सांस्कृतिक संगम का साक्षी बना।
शहर विधायक अतुल भंसाली एवं सूरसागर विधायक देवेंद्र जोशी की गरमाई उपस्थित में राजस्थान संगीत नाटक अकादमी एवं जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह के समापन अवसर पर लोक कलाओं का ऐसा इंद्रधनुष बिखरा जिसने दर्शकों को परंपरा और सृजन की अनोखी यात्रा पर ले लिया। कार्यक्रम में नगर निगम (दक्षिण) के उपमहापौर किशन लड्ढा भी उपस्थित थे।
अकादमी के सचिव शरद व्यास ने बताया कि इस अवसर पर देशभर के विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों ने अपनी अद्वितीय प्रस्तुतियों से समारोह को अविस्मरणीय बना दिया। इसमें जोधपुर के सुरेन्द्र पंवार ने मांड गायन प्रस्तुत कर सुरों की मिठास घोली तो बल्लभ सांस्कृतिक मंच के राधे कृष्ण ने ब्रज वंदना से भक्ति का भाव जगाया। उत्तराखंड के राजेन्द्र सिंह का घसियारी नृत्य और हरियाणा के कैलाश लोहावट का फाग नृत्य ग्रामीण जीवन के उल्लास और सहजता को मंच पर जीवंत कर गए।
व्यास ने आगे बताया कि गुजरात के दीपक मकवाना ने डांडिया रास और महाराष्ट्र की सुरभि मकवाना ने लावणी नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को लोक उत्सवों की चिरपरिचित उमंग से जोड़ दिया। मनप्रीत सिंह ने भंगड़ा और जिंदुआ की ऊर्जावान प्रस्तुति से पूरा वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा दिया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों द्वारा नुक्कड़ नाटक ने दर्शकों को स्वच्छ भारत के प्रति समर्पित,जागरूक एवं प्रतिबद्ध रहने का का संदेश दिया।
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राजस्थान की समृद्ध धरोहर भी इस मंच पर बखूबी झलकी। जयपुर के बनवारी लाल जाट का कच्ची घोड़ी नृत्य और किशनगढ़ की अंजना कुमावत का घूमर दर्शकों को लोक परंपराओं की गहराई से जोड़ गए। पादरला की दुर्गा ने तेरहताली प्रस्तुत कर लय और अनुशासन का अद्भुत संगम दिखाया। अंजना कुमावत ने भवाई और चरी नृत्य से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया,जयपुर के महावीर नाथ ने कालबेलिया और राजस्थानी नृत्य की मोहक छवि सामने रखी। डीग के अशोक शर्मा ने मयूर और फूलों की होली प्रस्तुत कर समारोह की शाम को अविस्मरणीय बना दिया।
समापन अवसर पर मंच पर सजे रंग,वाद्ययंत्रों की थाप और कलाकारों के पांवों की लय ने यह संदेश दिया कि लोक कला केवल प्रदर्शन नहीं,बल्कि जीवन का उत्सव है। शरद व्यास ने कहा कि यह समारोह केवल सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं,बल्कि परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने और हमारी विरासत को जीवंत बनाए रखने का माध्यम है।