तीन दिवसीय श्रीहनुमान कथा संपन्न

जोधपुर(डीडीन्यूज),श्रीहनुमान कथा के तृतीय दिन शुक्रवार को भारत समन्वय धाम कमला नेहरू नगर में कथा के क्रम को ग्रंथों पर आधारित आगे बढाते हुए तुलसीरचित रामचरित मानस एवं वाल्मिकी रामायण के आधार पर कथावाचक गोविन्ददेव गिरि ने श्रीरामजी व श्रीहनुमानजी की दिव्य लीलाओं का अभूतपूर्व,अलौकिक व संगीतमय पारायण किया।

हनुमानजी द्वारा श्रीराम के वनवास काल में सीता की खोज करने में जो अनुपम कार्य किया उसको वर्तमान के मानव जीवन से जोड़ते हुए आम जन को हनुमानजी के बुद्धि,बल, चातुर्य एवं समर्पण भाव की शिक्षा लेने का एहसास कराया।

विद्यालयों पंचायतों में लहराया देशभक्ति का रंग

श्रीहनुमानजी ने भगवान के विलक्षण कार्यों को करके भी अपने आप को श्रेय लेने से दूर रखा और जब प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी को इस अद्भुत मदद के लिये कहा कि हनुमान मैं तेरे से कभी उऋण नहीं हो सकता लेकिन हनुमानजी ने प्रत्युत्तर में सदैव यही कहा कि प्रभु मैंने कुछ भी नहीं किया चाहे सीताजी की खोज, लंकादहन,लक्ष्मण के लिऐ संजीवनी बूटी व राम-रावण युद्ध में जो भी भूमिका की वो केवल प्रभु आपकी कृपा बल से हुई।

इस आधार पर उन्होंने आज के इस कलयुग में हनुमानजी व रामजी के सान्निध्य से शिक्षा व प्रेरणा लेने का आदेश भक्तों को दिया। पिछले तीन दिनों से चल रही श्रीहनुमान कथा की कथा अलौकिक रही। श्रीहनुमानजी भगवान शिव के रूद्रावतार,पवनपुत्र एवं अंजनी माता के सुत के रूप में साक्षात भगवान ही थे लेकिन त्रेतायुग में अवतरित भगवान राम अपने सभी अंशों सहित निर्वाण को चले गये लेकिन हनुमानजी ने धरती पर ही रहकर श्रीरामजी की कथा सुनने की लालसा मन में धारण कर ली।

विद्यालयों पंचायतों में लहराया देशभक्ति का रंग

आज भी श्रीहनुमानजी इस सृष्टि पर विद्यमान हैं और यह तथ्य ग्रंथों में प्रमाणित है। द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को हनुमानजी को अपने रथ पर झंडे में विराजमान कराने का आदेश दिया।
आज कथा की पूर्णाहूति मुख्य यजमान सत्यनारायण शर्मा,शोभा शर्मा,राधेश्याम सोनी,श्याम बाहेती सपत्नीक एवं समन्वय परिवार के सदस्यों द्वारा की गई।

स्व.सत्यमित्रानन्द गिरि द्वारा स्थापित भारत समन्वध धाम,लक्ष्मीनारायण मन्दिर,मनकामेश्वर मन्दिर एवं श्रीगुरूदेव मंदिर के बारे में श्रोताओं को सदैव समर्पण भाव से जुड़ने और गुरुदेव की इस कर्मभूति से ज्ञान, कर्म व भक्ति की सीख लेकन अपने जीवन को धन्य करने की सलाह दी। आरती के पूर्व संस्था उपाध्यक्ष उम्मेदकिशन पुरोहित व संस्था के ही वरिष्ठ उपाध्यक्ष रघुनाथसिंह सांखला का सम्मान किया।