शीतलाष्टमी पर घर-घर हुई शीतला माता की पूजा-अर्चना

  • लगाया ठंडे पकवानों का भोग
  • मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

जोधपुर, पारिवारिक सदस्यों के व्यवहार में शीतलता एवं बच्चों को चर्म संबंधी बीमारियों से संरक्षण की मनौती से जुड़ा शीतलाष्टमी पूजन रविवार को किया गया। शीतलाष्टमी पर रविवार को शीतला माता के दर्शनों के लिए कागा तीर्थ स्थल पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पड़ी। इस दौरान यहां अधिकांश भक्तों ने माता की शक्ति व भक्ति पर विश्वास करते हुए बगैर मास्क ही वहां पहुंच कर अपना प्रसाद चढ़ाया।

Worshiping of Mother Sheetla took place from house to house on Sheetlashtami

हालांकि मेले में तैनात सुरक्षाकर्मी और मंदिर संचालन समिति के लोग मास्क लगाए हुए नजर आए। शीतलाष्टमी पर घर-घर में शीतला माता की पूजा-अर्चना हुई और सौभाग्यवती महिलाओं ने पति और पुत्र की लंबी आयु के लिए प्रार्थना की। शीतलाष्टमी पर घरों में शीतला माता, ओरी माता, अचपड़ाजी एवं पंथवारी माता का प्रतीक बनाकर पूजन किया गया।

खास बात यह है कि आज के दिन माता शीतला को शीतल और एक दिन पहले पकाए गए पकवानों का भोग लगाया गया। वैसे तो लोग इसकी तैयारी दो-तीन दिन पहले से ही कर रहे थे लेकिन रविवार सुबह लोगों में इसे लेकर विशेष उत्साह नजर आया। कुछ घरों में सूर्योदय से पूर्व पूजा हुई तो कई परिवारों ने सूर्योदय के बाद शीतला माता की विधिवत पूजा की।

कागा तीर्थ स्थल स्थित शीतला माता के मंदिर में सुबह से ही लोगों का आना जारी रहा। मंदिर के कपाट खुलते ही लोग शीतला माता की पूजा-अर्चना में जुट गए। दिन चढऩे के साथ लोगों की भीड़ बढ़ती गई। केवल जोधपुर ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोग भी माता के दर्शन करने पहुंचे।

शीतला माता पूजन पूरे भारत में केवल जोधपुर में चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी के बजाय दूसरे दिन अष्टमी के दिन किया जाता है। इसका प्रमुख कारण विक्रम संवत 1826 में सप्तमी के दिन तत्कालीन जोधपुर के महाराजा विजयसिंह के महाराज कुमार की मृत्यु होने से जोधपुर सहित मारवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में अकता रखने की परम्परा है।

श्रद्धालुओं ने मां शीतला के समक्ष शीश नवाकर पारिवारिक सदस्यों के व्यवहार में शीतलता व शिशुओं को ओरी-अचपड़ा सहित चर्म संबंधी बीमारियों से संरक्षण प्रदान करने की मनौती मांगी। कई महिलाओं ने शिशुओं को माता के चरणों में लिटाकर चरणामृत पिलाया। रंग-बिरंगे पारम्परिक परिधान पहने महिलाएं मंगल गीत गाते हुए शीतला माता के मंदिर पहुंची।

मंदिर के बाहर लोगों का हुजूम नजर आया। घरों में शीतला माता, ओरी माता, अचपड़ा एवं पंथवारी माता का प्रतीक बनाकर पूजन किया गया। पूजन के दौरान एक दिन पूर्व घरों में बनाए गए पकवानों का भोग लगाकर घर के सभी बतौर प्रसादी ठंडा ग्रहण किया। अधिकांश घरों में शीतलाष्टमी को चूल्हा नहीं जला। यहां तक की दूध व चाय भी नहीं पी गई।

ठंडा खाना खाने की परंपरा

शीतला सप्तमी व अष्टमी पर ठंडा भोजन ही खाया जाता है इसलिए इस पर्व को बास्योड़ा भी कहते हैं। घरों में एक दिन पूर्व खाना तैयार कर ठंडा किया गया और बिना गर्म किए उसका स्वाद लिया गया। कैर-सांगरी का पंचकूटा, चावल, मिष्ठान, कर्बा, कढ़ी, दही-राबड़ी, पूडिय़ां, पापड़, मठरी, सलेवड़े, खीचिए, गुलगुले, खाजा, कांजी बड़े, तली हुई खाद्य वस्तुएं और कई नमकीन व्यंजन खाए गए। मान्यता के अनुरूप सुबह शीतला माता की पत्थर पर मूर्ति बनाई गई और इसके बाद पूजन किया गया। बच्चों को शीतला माता के समक्ष धोक लगवाई गई। ऐसी आस्था है कि शीतला माता की धोक लगाने से बच्चे स्वस्थ रहेंगे।

यहां अष्टमी को होता है पूजन

पूरे देश में होली के सात दिन बाद सप्तमी को शीतला माता का पूजन किया जाता है लेकिन जोधपुर में यह पूजा अष्टमी को होती है। जोधपुर में सदियों से दैवीय पूजन विधि विधान की अपेक्षा एक राजा के आदेशानुसार अब तक होता आ रहा है। महाराजा विजयसिंह वर्ष 1752 में अपने पिता महाराजा बखत सिंह के निधन होने पर जोधपुर के महाराजा बने। अगले वर्ष महाराजा रामसिंह ने उनसे सत्ता हथिया ली। इसके बाद में उनका निधन होने पर 1772 में एक बार फिर वे जोधपुर के महाराजा बने। इसके कुछ वर्ष बाद माता चेचक निकलने के कारण शीतला सप्तमी को उनके बड़े पुत्र का निधन हो गया। माता के प्रकोप से पुत्र की मौत से दुखी महाराजा ने शीतला माता को शहर से निष्कासन का आदेश जारी कर दिया। इस पर जूनी मंडी स्थित मंदिर से शीतला माता की प्रतिमा को उठाकर कागा की पहाडिय़ों में पहुंचा दिया गया। जोधपुर में कागा क्षेत्र श्मशान स्थल था। इसके निकट ही एक बाग भी था। श्मशान के निकट पहाड़ी में माता की प्रतिमा को रखवा दिया गया। महाराजा का गुस्सा इससे भी शांत नहीं हुआ। उन्होंने कागा की तरफ खुलने वाले नगर के द्वार नागौर गेट को नमक से चुनवा दिया। कई लोग आज भी बोलचाल में इस द्वार को नागौर गेट के बजाय लूणिया दरवाजा कहते है। समय के साथ महाराजा का गुस्सा शांत अवश्य हुआ लेकिन शीतला माता का निष्कासन रद्द नहीं हो पाया। कई बरस बाद कागा की पहाडिय़ों में शीतला माता की प्रतिमा के इर्दगिर्द मंदिर का निर्माण कराया गया। तब से लेकर अब तक शहर के लोग सप्तमी के बजाय अष्टमी को शीतला माता की पूजा करते हैं। हालांकि शहर का विस्तार होने के कारण अब यह मंदिर एक बार फिर से आबादी क्षेत्र में आ चुका है।

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