माइसेटोमा पर गाइडलाइन बनाने के लिए
डॉ दिलीप कच्छावा को डबल्यूएचओ का आमंत्रण
जोधपुर,माइसेटोमा पर गाइडलाइन बनाने के लिए डॉ दिलीप कच्छावा को डबल्यूएचओ का आमंत्रण।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)ने डॉ.दिलीप कच्छावा पूर्व प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक तथा वरिष्ठ प्रोफेसर त्वचा रोग विभाग एसएन मेडिकल को माइसेटोमा बिमारी पर विश्व की प्रथम तथा नवीनतम निर्देशिका (गाइडलाइन) बनाने के लिए आमंत्रित किया है।
डॉ दिलीप कच्छावा ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माइसेटोमा बिमारी पर गहन अनुसंधान कर, इसके इलाज के लिए विश्व भर में प्रथम बार निर्देशिका बनाने के लिए उन्हें आमंत्रित किया है।
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उन्होंने बताया कि पहले नैरोबी, केन्या में हुई विशेषज्ञों की मीटिंग तथा उसके पश्चात नई दिल्ली में हुई विशेषज्ञों की मीटिंग में डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज में इस बिमारी को लेकर अब तक हुए अनुसंधान तथा डॉ दिलीप कच्छावा द्वारा इसमें किए गए शोध कार्य से प्रभावित होकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस रोग से संबंधित एक विस्तृत निर्देशिका बनाने का निर्णय लिया। जो इस रोग को पहचानने के लक्षणों तथा इलाज से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य एवं निर्देश विश्व भर के समस्त चिकित्सकों, विभिन्न देशों के स्वास्थ्य मंत्रालयों तथा सभी एनजीओ को उपलब्ध कराएगी।
जिसे भविष्य में चिकित्सकों द्वारा इस रोग के इलाज हेतु मार्ग दर्शक पुस्तिका के रूप में उपयोग लिया जा सकेगा। डॉक्टर दिलीप कच्छावा के नेतृत्व में डॉक्टर एसएन मेडिकल कॉलेज में माइसेटोमा बिमारी से पीड़ित पिछले 10 सालों में आए सभी रोगियों से संबंधित अनुसंधान पहले से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की संस्था “इग्स फॉर नेगलेक्टेड डिजीज इनिसीएटिव’’ के अंतर्गत जारी है।
जिसमें इस रोग से संबंधित विभिन्न लक्षणों का अध्ययन,इस रोग के कारक जीवाणुओं पर अध्ययन तथा प्रदेश में इस रोग का फैलाव कितना है पर अध्ययन किया जा रहा है। जिससे भविष्य में इस रोग से संबंधित नई दवाइयां विकसित करने में सहायता मिलेगी।
डॉ.कच्छावा ने बताया माइसेटोमा चमड़ी के नीचे के ऊतकों का विनाशकारी संक्रामक रोग है जिसे आम भासा में लोग कीड़ी नगरा बीमारी के नाम से भी जानते हैं। जिस के दो प्रमुख प्रकार होते हैं यूमाइसेटोमा व ऐक्टिनोमाइसेटोमा।
यूमाइसेटोमा में रोग कारक फंगस संक्रमण (कवक) के कारण होता है, जबकि ऐक्टिनोमाइसेटोमा में बैक्टीरियल संक्रमण (ऐक्टिनोमाइसेस) के कारण गांठ उत्पन्न होती हैं। ये गांठें समय के साथ बढ़ती हैं और शरीर के अंगों में दर्द,सूजन और त्वचा के बदलाव का कारण बनती हैं। इस रोग में घाव से काले दाने निकलना सूजन और दर्द होना एवं बाद में हड्डी एवं मास का गलना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। और अंत में पैर काटने जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
माइसेटोमा का समय पर पता चलना व उपचार करवाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। सही समय पर इलाज न होने पर यह रोग गंभीर स्थिति में बदल सकता है।
इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य स्वास्थ्य संगठन द्वारा बनाई जा रही यह निर्देशिका महटवपूर्ण है।डॉ दिलीप कच्छावा द्वारा वीटिलीगो (सफेद दाग) की बिमारी। पर इलाज हेतु विकसित की गई जोधपुर तकनीक भी विश्व स्तर पर प्रसिद्ध एवं स्थापित हो चुकी है। जिसके संबंध में उन्होंने बताया कि वीटिलीगो बिमारी के इलाज हेतु, उनके द्वारा विकसित तकनीक अब विभिन्न नए रूपों में सब के द्वारा स्वीकृत एवं उपयोग की जा रही है।
यह त्वचा पर होने वाले सफेद दाग को ठीक करने के लिए एक माइनर सर्जरी है जिसमे मरीज की जांघ से चमड़ी लेकर सफेद दाग की जगह प्रत्यारोपित करते हैं। जिससे अब तक डेढ़ हजार रोगी लाभांवित हो चुके हैं। यह तकनीक रोगियों को सफेद दाग से 82 से 90 प्रतिशत तक मुक्ति दिला देती है।
इंटरनेशनल पिगमेंट सेल कॉन्फ्रेंस वाशिंगटन ने इस टेक्निक को आविष्कार की श्रेणी में रखा जो 40 वर्षों के भीतर सब टेक्निक को प्रतिस्थापित कर देगी। ये टेक्निक विश्व कांग्रेस ऑफ डर्मेटोलॉजी, इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ डर्मेटोलॉजी, डेसिल व अन्य विश्व स्तरीय कॉन्फ्रेंस व भारत में प्रदर्शित हो चुकी है।
यह तकनीक विश्व भर के महत्वपूर्ण जर्नल्स जैसे जर्नल ऑफ अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजीज तथा अन्य में जिनका की इंपैक्ट फैक्टर 10 से अधिक है,में प्रमुखता से छप चुकी है।जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। विभाग में अध्ययनरत डॉक्टर्स की स्टडी को पिछले चार साल में तीन बार राष्ट्रीय स्तर की सेमिनार में फर्स्ट अवार्ड मिला।
वर्ष 2021 में डॉ.हेमा मालिनी की स्टडी श्क्लिनिकल स्टडी टू एसेस द एफिकेसी ऑफ ऑटोलॉगस नॉन कल्चर्ड नॉन ट्रिप्सिनाइज्ड मिलेनोसाइट्स एंड किरेटीनोसाइट्स ग्राफ्टिंग फ्रॉम पेरिलीजनल स्किन (वी मॉडिफिकेशन ऑफ जोधपुर टेक्निक) को आईएडीवीएल की ओर से डॉ.सीएस भवानी मेमोरियल अवार्ड मिला था। 2021 में ही डॉ. आनंद कुमार लामोरिया के अध्ययन कम्परेटिव स्टडी बिटविन फोलिक्यूलर यूनिट ट्रांसप्लांटेशन एंड ऑटोलोगस नॉन कल्चर्ड नॉन ट्रिप्सिनाइजड एपिडर्मल सेल्स ग्राफ्टिंग इन स्टेबल विटीलिगो (जोधपुर टेक्निक) को कॉन्फ्रेंस एसिकॉन-2021 में जेसीएएस 2020 में प्रकाशित उत्कृष्ट अध्ययन के लिए प्रथम पुरस्कार मिला था।
हाल में डॉ.राहुल सिंगरोदिया की ओर से किए अध्ययन प्रोस्पेक्टिव स्टडी ऑफ इम्यूनोहिस्टो केमिकल मार्कर्स,एक्सप्रेस्ड बाई द किरेटिनोसाइट्स इन्फेक्टेड विद मॉलसकम कन्टेजियोसम वायरस बिफॉर एंड आफ्टर ट्रीटमेंट बाइ ऑटोइनोक्यूलेशन एंड देयर रोल इन रिग्रेशन ऑफ डोरमेंट लीजनश् को दिल्ली में हुई राष्ट्रीय स्तरीय कॉन्फ्रेंस एसिकॉन-2024 में प्रथम पुरस्कार मिला। कॉन्फ्रेंस में इसे डॉ.चिन्मय यादव की ओर से प्रस्तुत किया गया।