सिंध व गंगा तटों पर पनपी भारतीय संस्कृति की धारा आज भी परचम लहरा रही है-जिनेन्द्रमुनि

जोधपुर/गोगुन्दा,सिंध व गंगा तटों पर पनपी भारतीय संस्कृति की धारा आज भी परचम लहरा रही है- जिनेन्द्रमुनि। आज विश्व सभ्यता के सर्वोच्च शिखर की ओर ऊपर उठ रहा है। हर ओर प्रगति का शंखनाद सुनाई दे रहा है। सभ्यता के मुकाबले हमारी मानवीय संस्कृति लड़खड़ा रही है। विश्व में कई सभ्यता पनपी, उनके साथ अपनी संस्कृति थी।

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दुनिया की अन्य प्राचीन सभ्यताएं जो अधिकतर नदियों के किनारे पनपी,वे काल के गर्त में समा गई।मगर भारतीय संस्कृति की जो धारा सिंध एवं गंगा के तटों पर पनपी,वह आज भी अपना परचम लहरा रही है। उपरोक्त विचार श्रीवर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा में महाश्रमण जिनेन्द्रमुनि ने व्यक्त किए। मुनि ने कहा हमारी संस्कृति मानवता,त्याग,सहिष्णुता और धर्म के अमृत से सिंचित रही है।

चार प्राचीन संस्कृति में भारत की संस्कृति ही मानो अमरता का वरदान पाये हुए आज भी जीवित है।पश्चिमी देशों की तरह आज भारत में वृद्धाश्रमों की स्थापना होने लगी है।इन वृद्धाश्रमों का उधेश्य है अपनी संतानों से उपेक्षित वृद्ध माता पिता इन आश्रमो में रहकर शेष जीवन बिताएं। माता पिता भक्ति के अभाव में ही वृद्धाश्रमों को जन्म दिया है।

यह भारतीय संस्कृति पर ऐसा धब्बा है,जो मिटाया जाना चाहिए। प्रवीण मुनि ने कहा कि हमारे युवकों पर सांस्कृतिक हमला हो रहा है। विदेशी संस्कृति हमारे हजारों वर्षों की संस्कृति को निगल रही है। हमारे पुरखो का त्याग,उनका बलिदान सब कुछ अतीत बनकर रह जायेगा। रितेश मुनि ने उपस्थित श्रावकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि धर्म ही रक्षा करने वाला है। उसके सिवाय संसार में कोई भी मनुष्य का रक्षक नही है। धर्म तो बहुत है पर परम धर्म एक ही है और वह है अहिंसा। धर्म में अहिंसा का अन्यतम स्थान है।

प्रभातमुनि ने कहा कि आज दुनिया में महावीर,बुद्ध,कृष्ण जैसे महा पुरुषों का स्मरण मात्र से, श्रद्धा से सिर झुक जाता है। उनका नाम लेते ही हदय कुसुम खिल जाता है। सदैव दूसरो के दुःखों को दूर करने की चेष्ठा की उन्ही के लिए संसार रोता है। स्थानक भवन में श्रावकों का अगमन हुआ है।राजसमंद, कांकरोली,भुताला और फलासिया से लोगों ने दर्शन लाभ लिया।