एशिया कप के बहाने भाषाई मर्यादा का चिंतन
पार्थसारथि थपलियाल
भारत में क्रिकेट केवल खेल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय उत्सव है।जब भारतीय टीम कोई बड़ी प्रतियोगिता जीतती है तो करोड़ों भारतीय एक साथ उल्लसित होते हैं। यह विजय केवल खेल के मैदान तक सीमित नहीं रहती,बल्कि जन-जन के दिल में राष्ट्रीय गर्व का संचार करती है। ऐसे उत्सवी क्षणों में यदि कोई राजनीतिक व्यक्ति जनता की भावनाओं को धिक्कारे तो वह केवल असंवेदनशीलता ही नहीं,बल्कि राजनीति का बौनापन और अपसंस्कृति का प्रतीक बन जाता है। सुप्रिया श्रीनेत का विवादित वीडियो इसी मानसिकता का ताज़ा उदाहरण है। 28 सितंबर 2025 को दुबई में एशिया कप क्रिकेट मैच के फाइनल में भारतीय टीम की जीत पर क्रिकेट प्रेमियों ने खेल,सिनेमा,राजनीति और अन्य क्षेत्रों से सेलिब्रिटीज ने भारतीय टीम को बधाइयां दी।
प्रधानमंत्री,भाजपा के अध्यक्ष जे. पी.नड्डा व अन्य नेताओं ने अपने अपने ढंग से भारतीय क्रिकेट टीम को इस सफलता पर बधाइयां दी और खुशी व्यक्त की। क्रिकेट प्रेमी ढोल नगाड़े बजाकर खुशियां मना रहे थे। कांग्रेस पार्टी की ओर से पूरे दिन किसी ने कोई भाव व्यक्त नहीं किया। कांग्रेस पार्टी के प्रमुख चेहरे सोनिया गांधी,राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे,केसी वेणुगोपाल,प्रियंका गांधी,पवन खेड़ा या जयराम रमेश सभी खामोश रहे। कांग्रेस असमंजस में रही। अगले दिन कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत का एक वीडियो देखने को मिला,जिसमें इस मैच के करोड़ों दर्शकों को बुरी तरह से धिक्कारा जा रहा था। चुल्लूभर पानी में डूब मरने का भाव स्पष्ट था। जिस शब्दावली का उपयोग कर रही थी वह अमर्यादित थी। क्या भारत की जनता भी कांग्रेस के लिए प्रतिद्वंदी हो गयी है? यह हैरानी की बात है कि कांग्रेस देश की जनता के मनोभाव (मूड) समझने में भी नाकाम रही। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने निजी स्तर पर,विजेता क्रिकेट टीम को बधाई दी। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया,उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार,अशोक गहलोत,सचिन पायलट,दीपेंद्र हुड्डा,मनु सिंघवी ने कांग्रेस तरह से खुशी प्रकट की।
लोकतंत्र में शब्द ही सबसे बड़ा अस्त्र होते हैं। शब्दों का प्रयोग सोच समझकर किया जाना चहिए। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जिस वैमनस्यता और हिकारत भरे शब्द प्रधानमंत्री के लिए कहते हैं उसमें उनका “सत्ता पर स्वामित्व का भाव” प्रखर होकर दिखाई देता है। समय समय पर विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ही मर्यादा भूलकर भाषा और समाज का स्तर गिरा रहे हैं।
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भारत में क्रिकेट केवल खेल नहीं, बल्कि राष्ट्रभावना का प्रतीक है। वर्तमान दौर में क्रिकेट राष्ट्रीय एकता का महत्वपूर्ण सूत्र है। गाँव-शहर, भाषा-प्रांत और वर्ग-भेद से ऊपर उठकर जब भारतीय टीम जीतती है, तो पूरा देश एकजुट होकर जश्न मनाता है। ऐसे समय पर जनता की भावनाओं को धिक्कारना केवल खेल-भावना पर नहीं,बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता पर भी चोट है। राजनेताओं की अमर्यादित भाषा राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक दुर्भावनाओं को बढ़ा रही है। राजनीति में संकेतात्मक व्यंग्य, कटाक्ष पहले भी होते रहे हैं लेकिन वर्तमान में कोई भी पार्टी हो,वह प्रतिपक्षी पार्टी पर गिर पड़ती है। यह गिरावट बहुत निकृष्ट स्तर की होती है। इन्हीं का अनुकरण नई पीढ़ी करने लगी है।
जनता ही लोकतंत्र की आत्मा है। जनता की भावनाओं का उपहास करना उस विश्वास को तोड़ता है जिस पर राजनीति टिकी है। क्रिकेट जीत पर उमड़े उत्साह को तुच्छ मानना दरअसल उस मानसिकता को दर्शाता है जिसमें जनता को केवल वोट बैंक समझा जाता है। यह लोकतंत्र की आत्मा को आहत करता है। यदि जनता ही अपमानित होगी तो लोकतंत्र का आधार कमजोर होगा। राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता पाना नहीं,बल्कि समाज का मार्गदर्शन करना है। यदि नेता जनता की भावनाओं का सम्मान करें,उनकी आकांक्षाओं को साझा करें और रचनात्मक संवाद करें, तभी राजनीति का स्तर ऊँचा होगा और संस्कृति मजबूत बनेगी।
सुप्रिया श्रीनेत का विवादित वीडियो हमें यह सोचने पर विवश करता है कि क्या राजनीति अब केवल तात्कालिक सनसनी और व्यक्तिगत आक्षेप तक सीमित रह जाएगी,या फिर वह अपने मूल दायित्व-जनता की आकांक्षाओं और संवेदनाओं के सम्मान,की ओर लौटेगी। लोकतंत्र में शब्दों की गरिमा ही उसका सौंदर्य है। जब भाषा बौनी हो जाती है,तो राजनीति भी बौनी हो जाती है। आवश्यक है कि राजनीतिक अखाड़े के सभी लोग अपनी वाणी और आचरण दोनों में भारतीय संस्कृति की मर्यादा को जीवित रखे। यही लोकतंत्र और समाज की वास्तविक शक्ति है।