पूर्णकालिक रेजिडेंट को मासिक भत्ता नहीं देना बेगार के समान

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  • हाईकोर्ट ने दिया आठ सप्ताह में भुगतान का आदेश

जोधपुर,पीजी मेडिकल कोर्स के दौरान पूर्णकालिक रेजिडेंट के रूप में अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए मिलने वाले मासिक वज़ीफ़ा/ स्टाइपेंड के भुगतान को रोकना अनुचित है। आठ सप्ताह के भीतर भीतर मासिक वज़ीफ़े का भुगतान करने के हाइकोर्ट एकलपीठ ने आदेश दिए।

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याची को राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश दिनेश मेहता की एकलपीठ से राहत मिली। अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने याची चिकित्सक डॉ.दिनेश चौधरी की ओर से पैरवी की। सांगानेर,जयपुर निवासी डॉ. दिनेश चौधरी की ओर से अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने रिट याचिका दायर कर बताया कि याचिकाकर्ता चिकित्सा विभाग में नियमित नियुक्त चिकित्सा अधिकारी है और उसका चयन रेडिओ-डॉयग्नोसिस ब्रांच में नीट पीजी डिप्लोमा कोर्स सत्र 2021 में मेडिकल कॉलेज,चुरू में हो जाने पर उसने 1 जून 2022 को मेडिकल कॉलेज चुरू में पीजी डिप्लोमा कोर्स जॉइन कर लिया।

क़रीब चार माह कोर्स के पश्चात उसका चयन नीट पीजी डिग्री कोर्स (रेडिओ-डॉयग्नोसिस ब्रांच) सत्र 2022 में एसएमएस मेडिकल कॉलेज,जयपुर में हो जाने पर उसने अपने भविष्य और विभाग हित में नियमानुसार चुरू से कार्यमुक्त होकर 07 अक्टूबर 2022 को उक्त डिग्री कोर्स मेडिकल कॉलेज,जयपुर में जॉइन कर लिया,जहां वर्तमान में अध्ययनरत है,लेकिन चुरू मेडिकल कॉलेज में पीजी मेडिकल डिप्लोमा कोर्स के समय दिया जाने वाला वज़ीफ़ा,हॉस्टल फीस और फ़ीस पर ली गयी जीएसटी.टैक्स राशि का भुगतान यह कहते हुए मना कर दिया कि उसने पीजी डिप्लोमा कोर्स पूर्ण करने से पहले ही बीच सत्र में छोड़ दिया है।

रिट याचिका दायर होने के बाद नोटिस मिलने पर चिकित्सा विभाग ने हॉस्टल फीस और कोर्स फ़ीस पर ली गयी जीएसटी.टैक्स राशि का पुनर्भुगतान याचिकाकर्ता को कर दिया गया लेकिन मासिक वज़ीफ़ा राशि का भुगतान रोक दिया गया। अधिवक्ता ख़िलेरी ने बताया कि पीजी मेडिकल कोर्स करने वाले छात्रों को मासिक वज़ीफ़ा इसलिए दिया जाता है क्योंकि वे पूर्णकालिक रेजिडेंट के रूप में कॉलेज से सम्बद्ध अस्पतालों में अपनी सेवाएं देते हैं। इसलिये डिप्लोमा/डिग्री कोर्स की अवधि पूर्ण होने से पूर्व कोर्स छोड़ने देने पर दिए गए वज़ीफ़े की राशि की वसूली करना या वज़ीफ़े की राशि का भुगतान रोक देना,उनसे बेगार लेने के समान हैं,जो कि संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत निषिद्ध है।

मासिक वज़ीफ़ा/स्टाइपेंड का भुगतान राज्य सरकार द्वारा अस्पताल में पूर्णकालिक रेजिडेंट के रूप में डयूटी करने के बदले में छात्र को किया जाता है न कि केवल पढ़ाई करने के लिए। ऐसे में इस सम्बंध में जमानत बॉन्ड में शामिल की गई शर्त भी अनुचित, सार्वजनिक नीति के विरुद्ध और शून्य है जबकि याचिकाकर्ता के मामले में सत्र 2021-22 में तो जमानत बॉन्ड पेश नहीं करने की भी विभाग ने छूट दे रखी थी। ऐसे में विभाग द्वारा मासिक स्टाइपेंड राशि का भुगतान रोकना गैरवाजिब, गैरकानूनी और असवैधानिक है।

प्रकरण के तथ्यों और मामले की परिस्थितियों को देखते हुए और याची के अधिवक्ता के तर्कों से सहमत होकर राजस्थान हाइकोर्ट एकलपीठ ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को आठ सप्ताह के भीतर भीतर पूर्णकालिक रेजिडेंट डॉक्टर के रूप में दी गयी नियमित सेवाओं के लिए बक़ाया वज़ीफ़े (स्टाइपेंड) का भुगतान करने के आदेश दिए।