लेखक: पार्थसारथि थपलियाल

शब्द संदर्भ-71
(RIP, श्रद्धाजंलि, नमन, ॐ शांति)

जिज्ञासा

जितेंद्र जालोरी जोधपुर, वे सनातन संस्कृति में वे गहन रुचि रखने वाले हैं। उन्होंने जानना चाहा है कि अक्सर लोग शोक अभिव्यक्ति के रूप में श्रद्धांजलि, नमन आदि शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। सही क्या है?

समाधान

यह निश्चित है जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। सनातन संस्कृति में 16 संस्कार हैं, उनमें अंतिम संस्कार है अंत्येष्ठि। अंत्येष्ठि संस्कार को भी गरिमामय ढंग से किया जाता है। पंच तत्वों से से बना शरीर पंचतत्वों में मिल गया। तुलसी दास जी ने कहा है, क्षिति,जल, पावक, गगन समीरा पंचतत्व रचित अधम शरीरा।

इस शरीर मे “आत्मा” नामक ऊर्जा जब तक विद्यमान है तब तक यह देह उस आत्मा का आवरण है। आत्मा निकली देह निर्जीव। श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है “न हन्यते हन्यमाने शरीरे” शरीर मरता है आत्मा नही। ठीक उसी तरह जैसे बल्ब यदि फ्यूज हो जाय तो प्रकाश देना बंद। मनुष्य की चेतना के चार बिंदु हैं मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार, इनका रुकना इस बात का संकेत है कि आत्मा प्रस्थान कर चुकी है। फिर भी शरीर को शांत होने में कुछ समय लगता है। आध्यात्मिक प्रश्न था कि मैं कौन हूं? उत्तर है आत्मा। उस मैं के बिना देह का कोई अस्तित्व नही।

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जिज्ञासा का उत्तर

अब मुख्य बात पर आते हैं- किसी की मृत्यु पर शोक अभिव्यक्ति क्या हो? यहां पर व्यक्ति की धार्मिक मान्यता सामने आती है। अब्राह्मिक धर्म (ईसाई, मुसलमान आदि) के अनुयायी जो प्रलयकाल में जीवित होने की कामना रखते हैं उनके लिए RIP यानी रेस्ट इन पीस कहते हैं। सनातन धर्मी जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अथवा पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं उनके लिए इस तरह के प्रसंग में उपयुक्त तो यह है कि “ईश्वर दिवंगत आत्मा को मोक्ष प्रदान करें” या ईश्वर दिवंगत आत्मा को गो लोक में /अथवा वैकुंठ लोक में स्थान दें। आदिगुरु शंकराचार्य ने कहा है “ब्रह्म सत्यम जगदमिथ्या”। ईश्वर ही सत्य है दुनिया मिथ्या है।

उत्तर की व्याख्या

क्योंकि पुरुषार्थ चतुष्टय में चौथा चरण मोक्ष है। मोक्ष का अर्थ है पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाना। वैकुंठ लोक में भी पुण्यात्माओं को ही स्थान मिलता है। अन्य शब्द उन लोगों के लिए हैं जिसे मृत व्यक्ति के आत्मीय संबंध थे। वे अपने दोनों हाथों को अंजली की तरह बनाकर उनके चित्र के सामने पुष्प की अंजली, पुष्पांजलि, अथवा उस व्यक्ति की सूक्ष्म आत्मा के प्रति हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना की जाय कि प्रभु दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों मे स्थान दें और उनके परिजनों को इस दुख की घड़ी में शक्ति दें ताकि वे इस क्षोभ से बाहर आ सकें।

नमन का अर्थ भी सम्मान देने के लिए झुकना ही होता है। जब व्यक्ति की देह नही है तो सूक्ष्म शरीर के प्रति हम अपना सम्मान व्यक्त करते हैं। इसी क्रम में यदि शोकाभिव्यक्ति है तो भावांजलि, भजन के माध्यम से है तो स्वरांजलि या भजनांजली शब्द उपयुक्त हैं। ॐ शांति भी श्रद्धांजलि स्वरूप कहा जाता है। ॐ शब्द ईश्वर के लिए प्रणव है। उसमें सृजक ब्रह्मा, पालक विष्णु और कल्याणकारी शिव समाए हुए हैं। अतः प्रार्थना है ॐ शांति इसका भाव है, परमेश्वर! इस आत्मा को सत्य में शांति पूर्वक समा देना। वही भाव जो मोक्ष में है।

वैसे प्राचीन काल में जब अंजलि दी जाती थी तब दोनों हाथों को मिलाकर हथेली में अन्न जैसे जौ, तिल, पुष्प और जल रखकर (अन्न जल) अर्पित करने की क्रिया थी। एक बात और बात दूं श्रद्धांजलि किसी जीवित को भी दी जा सकती है, लेकिन शब्द अपने अर्थ में रूढ़ हो गया। अब श्रद्धांजलि मृत व्यक्ति के प्रति ही दी जाती है।

यदि किसी भी पाठक को हिंदी शब्दों की व्याख्या की जानकारी चाहिए तो अपना प्रश्न “शब्द संदर्भ” में पूछ सकते हैं।

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