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उपन्यास उमादे को हिन्दी सेवा पुरस्कार

जयपुर,उमादे को हिन्दी सेवा पुरस्कार। लेखक डॉ.फतेहसिंह भाटी की कृति ‘उमादे’ को राजस्थान सरकार के भाषा एवं पुस्तकालय विभाग द्वारा राज्य-स्तरीय ‘हिन्दी सेवा पुरस्कार- 2023’ से सम्मानित किया गया है।जनवरी 2022 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित लेखक डॉ.फतेह सिंह भाटी की कृति ‘उमादे’ का तीन महीने बाद ही अप्रैल 2022 में दूसरा संस्करण आया और लगभग पौने दो वर्ष की इस यात्रा में आखिल भारतीय और राज्य स्तरीय आधा दर्जन से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी इस कृति ‘उमादे’ को अब राजस्थान सरकार के भाषा एवं पुस्तकालय विभाग द्वारा राज्य-स्तरीय ‘हिन्दी सेवा पुरस्कार-2023’ से सम्मानित किया गया है।

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बिड़ला सभागार जयपुर में आयोजित राज्य स्तरीय भव्य समारोह में हजारों विद्वजनों की उपस्थिति में कृति ‘उमादे’ के लेखक डॉ.फतेह सिंह भाटी को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्री राजस्थान सरकार डॉ.बीडी कल्ला ने प्रसंशा पत्र देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के अध्यक्ष उच्च शिक्षा मंत्री राजस्थान,राजेन्द्र यादव ने कृति उमादे के लिए पुरस्कार स्वरूप 50 हजार का चेक भेंट किया। स्कूल शिक्षा तथा भाषा एवं पुस्तकालय विभाग के शासन सचिव नवीन जैन, आईएएस ने डॉ.भाटी को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। भाषा एवं पुस्तकालय विभाग की निदेशक सोविला माथुर एवं उप निदेशक रेणुका राठौड़ ने श्रीफल व पुस्तक देकर लेखक को सम्मानित किया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता गांधी शांति प्रतिष्ठान,दिल्ली के निदेशक कुमार प्रशांत ने प्रकृति को बचाए रखने के लिए डॉ.भाटी को पौधा भेंट किया।

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भाषा एवं पुस्तकालय विभाग द्वारा मिली जानकारी के अनुसार हिन्दी साहित्य के अंतर्गत मिली लगभग पांच दर्जन पुस्तकों में विभाग द्वारा तय प्रबुद्ध लोगों की चयन समिति द्वारा उपन्यास उमादे को पुरस्कार के लिए चुना गया। समारोह में पुरस्कृत कृति ‘उमादे’ के बारे में बताते हुए लेखक डॉ.फतेह सिंह भाटी ने कहा कि उपन्यास “उमादे” कहने को तो 16वीं शताब्दी में तत्कालीन जैसलगिर (वर्तमान जैसलमेर) की राजकुमारी उमादे जिसका विवाह तत्कालीन मारवाड़ (जोधपुर) के राव मालदेव से होता है,की ऐतिहासिक कहानी है। इस कहानी में प्रेम,प्रतीक्षा और विरह तो है ही,उस समय का लोक,समाज, राजनीति,छल-कपट की झलक भी है। तत्कालीन जैसलगिर की भू-राजनीतिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र होने का भी वर्णन है लेकिन मूल बात मानव मन की पीड़ा और उसका प्रकटीकरण है। उपन्यास की नायिका उमादे जिस तरह से स्त्री के मान-सम्मान,उसकी अस्मिता,दांपत्य की मर्यादा के लिए अपने पति यानी उस समय के उत्तर भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली राजा मालदेव का सामना करती है,उन्हें चुनौती देती है,जीवन भर रावजी उसे स्पर्श नहीं कर सकते ऐसी प्रतिज्ञा करती है। वह आज जब हम स्त्री सशक्तिकरण और फेमिनिज्म की बात करते हैं तब बेहद महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक हो जाता है। वह न सिर्फ़ स्त्री या पत्नी की प्रतिष्ठा की बात करती है बल्कि अपने पिता युवराज लूणकरण से विद्वतापूर्ण बातचीत में उन्हें यह भी याद दिलाती है कि पिता का सम्मान अच्छी बात है,वह किया जाना चाहिए लेकिन पिता और राष्ट्र के बीच चुनाव की दुविधा हो तो व्यक्ति को देश के लाखों नागरिकों के सम्मान,सुख और अस्तित्व के बारे में पहले सोचना चाहिए।

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