हाईकोर्ट ने खारिज की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका

जोधपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा है कि बाल कल्याण समिति की ओर से किशोर न्याय(जेजे) एक्ट के तहत जारी आदेश की समीक्षा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने जालोर निवासी युवक की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया।

यह लगाई गई याचिका

जालोर निवासी एक युवक ने याचिका पेश कर कहा कि बाड़मेर निवासी एक युवती कानूनन उसकी पत्नी है। उसे जबरन जोधपुर के बालिका गृह में रखा जा रहा है। ऐसे में उसे मुझे सौंपा जाए। इस मामले में न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश विनोद कुमार भारवाणी की खंडपीठ के समक्ष इस मामले की सुनवाई के दौरान बताया गया कि लड़क़ी फिलहाल नाबालिग है। स्कूल की मार्कशीट के अनुसार लड़क़ी की जन्म तिथि 5 जून 2006 है। ऐसे में वह अभी तक नाबालिग है।

बाड़मेर में बाल कल्याण समिति के समक्ष भी यह याचिका पेश की गई थी। बाल कल्याण समिति ने सभी पक्ष की तहकीकात के बाद लड़क़ी को नाबालिग माना और उसे अपने पिता के साथ भेजने का आदेश दिया था। साथ ही बाड़मेर के एसपी से कहा गया था कि लड़क़ी को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाए। बाद में लड़क़ी ने अपने बयान में सुरक्षा की मांग की। इस पर 11 दिसम्बर 2021 को बाल कल्याण समिति ने उसे जोधपुर के बालिका गृह में भेजने का आदेश दिया। तब से यह लड़क़ी जोधपुर के बालिका गृह में रह रही है। इस लड़क़ी को लेकर जालोर के युवक ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पेश की।

खंडपीठ ने कहा लडक़ी नाबालिग

खंडपीठ ने कहा कि जन्मतिथि के अनुसार लड़क़ी नाबालिग है और उसे बालिका गृह में जबरन नहीं रखा गया है। उसे बाल कल्याण समिति के आदेश के अनुसार ही यहां रखा गया है। नाबालिग लड़क़ी को अपने साथ ले जाने का अधिकार सिर्फ उसके माता-पिता को ही है। खंडपीठ ने कहा कि बाल कल्याण समिति की ओर से जेजे एक्ट के तहत जारी किए गए आदेश की समीक्षा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तहत नहीं किया जा सकता है। इसके साथ खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी।

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