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जोधपुर, माघ महोत्सव के तहत जय नारायण व्यास स्मृति भवन टाउन हॉल में अभिज्ञान शाकुंतलम् के चौथे अध्याय का नाट्य मंचन किया गया। जिसमें राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग व राजस्थान संस्कृत अकादमी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया गया। इस नाट्य में दुष्यन्त अपनी राजधानी को लौट आता है तथा शकुन्तला उसके विरह से पीड़ित है।

Effective staging of Abhigyan Shakuntalam

राजा के ध्यान में मग्न हुई शकुन्तला को दुर्वासा ऋषि का आगमन ज्ञात नहीं होता। उचित सत्कार न होने के कारण रूष्ट दुर्वासा उसे श्राप देते हैं कि जिसका तू ध्यान कर रही है वह बताने पर भी तुझे स्मरण नहीं करेगा। शकुन्तला की सखी प्रियंवदा दुर्वासा को प्रार्थना करती है राजा को कोई अभिज्ञान दिखाने पर इस श्राप का कोई प्रभाव न होगा, ऐसा कहकर दुर्वासा गायब हो जाते हैं। उधर कण्व तीर्थ यात्रा से लौट आये हैं।

अग्निशाला में प्रवेश करते ही उन्हें दुष्यन्त-शकुन्तला के गान्धर्व विवाह का ज्ञान हो जाता है। तभी वे अपने दो शिष्यों एवं एक वृद्धा तापसी गौतमी के साथ शकुन्तला को पतिगृह भेजने की तैयारी करते हैं। शकुन्तला की विदाई का दृश्य बड़ा ही हृदयस्पर्शी है । सुख-दुःख में सम रहने वाले कण्व भी पुत्री को विदा करते हुए अपने हृदय में विफलता का अनुभव करते हैं । हरिण शकुन्तला के वियोग में घास खाना छोड़ देते हैं, मयूर नाचना बन्द कर देते हैं, पीले पत्ते गिराने के बहाने लतायें मानो आँसू बहाती हैं।

पतिगृह में आचरण करने योग्य उपदेश देकर अन्त में कण्व पुत्री को विदा कर देते हैं । विदाई के पश्चात् वे कहते हैं कि कन्यारूपी अमानत (धरोहर) उसके अधिकारी पति को सौंपकर उनका हृदय हल्का हो गया है। इस समारोह के मुख्य अतिथि जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रवीण चंद्र त्रिवेदी राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा थे। अकादमी के सचिव एलएन बैरवा अकादमी के अरुण पुरोहित ने अतिथियों का स्वागत किया।