जैन समाज ने पेश किया अनुकरणीय उदहारण
जोधपुर, देश और दुनिया में कल ईद मनाई गई। इस मौके पर बकरों और अन्य पशुओं की कुर्बानी भी दी गई। इसके उलट जोधपुर में अलग ही घटनाक्रम देखने को मिला। जैन व्यापारियों के एक समूह ने बड़ी संख्या में बकरों की खरीद कर उनको अपने बाड़ों में भेज दिया जहां वे अपनी प्राकृतिक मृत्यु तक जीवित रहेंगे।
जोधपुर शहर के बाहर चोखा गांव के पास दूर तक फैली हुई बकरा मंडी है। इस मंडी 8में जोधपुर और आसपास के गांवों से हजारों बकरे ईद की कुर्बानी के लिए बिकने के लिए आए हुए थे। पिछले कई दिन से लग रही इस मंडी में रोजाना हजारों लोग कुर्बानी के लिए बकरे खरीदने आ रहे थे। उत्साह में तेज कदमों से चल रहे यह लोग भी बकरे खरीदने ही आए थे लेकिन उनका उद्देश्य अलग ही था।
ये लोग बकरे तो खरीद रहे थे लेकिन कुर्बानी के लिए नहीं। ये लोग इन बकरों को अमर करना चाहते थे। अमर करने का मतलब है कि इनके खरीदे हुए बकरों को जोधपुर के पास भोपालगढ़ और अन्य जगहों पर बनी हुई बकरा शालाओं में भेज दिया गया जहां दानदाताओं के पैसे से उनके चारे पानी का इंतजाम होगा। बीमार होने पर पशु चिकित्सक उनका इलाज भी करेंगे। इस तरह से बकरे अपनी उम्र जी सकेंगे और प्राकृतिक रूप से मर सकेंगे।
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गौतम कोठारी, शालिभद्र सिंधी, पंकज जैन, अमरचंद जैन, मुकेश मूथा, दीपक बोथरा, मूलचंद मूथा, आशीष गुलेच्छा, दीपेश बोहरा, राजेश बाफना और उनके सहयोग से इस ईद पर करीब ढाई सौ बकरे खरीदे गए। इसके लिए यह सभी अपने व्यापार व्यवसाय से समय निकालकर दो दिन से सुबह और शाम शहर के बाहर चौका गांव के पास जाकर बकरों की खरीद-फरोख्त कर रहे। खरीदे हुए बकरों को गाड़ियों में भरवा कर बकरा शालाओं में भेज रहे थे। इस तरह इन अहिंसा के पुजारियों ने जीवदया कर ढाई सौ बकरों को जीवनदान देकर अहिंसा का एक अनुकरणीय उदहारण समाज मे पेश किया।
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