31अक्टूबर को मनाएं दीपावली
इस बार की दीपावली पर भ्रम की स्थिति को स्पष्ट कर रहे दैवज्ञ काशीनाथ भट्टाचार्य
दैवज्ञ काशीनाथ भट्टाचार्य के प्रसिद्ध ग्रन्थ शीघ्रबोध में दीपावली को लेकर सीधी सीधी बात लिखी है,पता नहीं अब तक इस पर किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया? शीघ्र बोध में साफ लिखा है।–
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दीपोत्सवस्य वेलायां प्रतिपद् दृश्यते यदि।
सा तिथिर्विबुधैस्त्याज्या यथा नारी रजस्वला॥
दीपोत्सव के समय यदि प्रतिपदा दिख जाए तो उस दूषित तिथि को रजस्वला की भाँति त्याग कर देना चाहिए।
आषाढ़ी श्रावणी वैत्र फाल्गुनी दीपमालिका।
नन्दा विद्धा न कर्तव्या कृते धान्यक्षयो भवेत्॥
आषाढ़ी पूर्णिमा,रक्षाबंधन,होली और दीपावली को कभी भी नन्दा यानि प्रतिपदा से विद्ध नहीं करना चाहिए वरना धन धान्य का क्षय होता है।
जयपुर के एक गाँव फागी से एक वृद्ध पण्डितजी दयाशंकर शास्त्री ने एक 100 साल पुरानी पुस्तक से निकालकर ये श्लोक भेजे और कहा, कि 31 अक्टूबर को दीपावली मनवाकर धर्मसभा ने करोड़ों लोगों को बचा लिया क्योंकि 1 नवंबर को प्रतिपदा विद्धा दूषित अमावस्या में दीपावली करना बिल्कुल भी ठीक नहीं है। 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाएं और अपने धर्म की रक्षा करें।
इसके अतिरिक्त स्कंदपुराण के द्वितीय भाग वैष्णवखंड के कार्तिकमहात्म्य के 10वें अध्याय “दीपावली कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा महात्म्य” नामक अध्याय के श्लोक क्रमांक 11 में भगवान श्रीब्रह्माजी ने स्पष्ट कह दिया…
माङ्गल्यंतद्दिनेचेत्स्याद्वित्तादितस्यनश्यति।
बलेश्चप्रतिपद्दर्शाद्यदिविद्धं भविष्यति॥
अर्थात् –
अमावस्या विद्ध बलि प्रतिपदा तिथि में मोहवशात् माङ्गल्य कार्य हेतु अनुष्ठान करने से सारा धन नष्ट हो जाता है।
1 तारीख को यही धन हानि करने वाली स्थिति बन रही है व इससे पूरा समाज संकट में पड़ रहा है। इसलिए भूलकर भी 1 तारीख को दीपावली न मनाएं।
1 नवंबर को बिना कर्मकाल के दीपावली मनाने के दुष्परिणाम –
व्रतराज में तो यहाँ तक कहा है –
न कुर्वन्ति नरा इत्थं लक्ष्म्या ये सुखसुप्तिकाम् ।
धनचिन्ताविहीनास्ते कथं रात्रौ स्वपन्ति हि ॥
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन लक्ष्मीं सुस्वापयेन्नरः ।
दुःखदारिद्यानिर्मुक्तः स्वजातौ स्यात् प्रतिष्ठितः॥
ये वैष्णवावैष्णवा या बलिराज्योत्सवं नराः।
न कुर्वन्ति वृथा तेषां धर्माः स्युर्नात्र संशयः॥
उस सुखसुप्तिका में जो लक्ष्मी के लिए कमलों की शय्या बनाकर पूजते नहीं,वे पुरुष कभी रात्रि में धन की चिन्ता के बिना नहीं सोते। इसलिए सब तरह से कोशिश कर लक्ष्मी को सुखशय्या पे पौढ़ावे,वह दुःख दारिद्य से छूटकर अपनी जाति में प्रतिष्ठित हो जाता है। जो वैष्णव या अवैष्णव बलिराज्य का उत्सव नहीं मनाते,उनके किए हुए सब धर्म व्यर्थ हो जाते हैं, इसमें संदेह नहीं है।
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स्पष्ट है कि प्रदोष व अर्धरात्रि में अमावस्या होने से 31 अक्टूबर की रात्रि को ही सुखसुप्तिका और बलिराज्य का उत्सव दीपावली है, तब 1 नवंबर की रात्रि में प्रतिपदा में यह सब शास्त्रोक्त कर्म करने का फल कैसे मिलेगा ? इसलिए 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाकर आनंद करें।