भरत मुनि का रंगमंच देवों की उपस्थिति का अनुभव कराता है- त्रिपाठी

राष्ट्रीय नाट्य कार्यशाला

जोधपुर,रंगमंच एक साधना है। भारतीय नाटक में मनुष्य अकेला नहीं, सारी सृष्टि का अंग है। सृष्टि के कण कण में ‌देवता का वास है। भरत मुनि का रंगमंच देवताओं की उपस्थिति का अनुभव कराता है। रंगमंच को भरत मुनि ने नाट्य को एक यज्ञ बताया है। नाट्यशास्त्र में आगम और निगम का समन्वय करते हुए वैदिक यज्ञ और पौराणिक पूजा पद्धतियों के तत्त्व अपनाये। उक्त विचार प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी ने नाट्यशास्त्र कार्यशाला के द्वितीय ‌दिवस के‌ प्रथम सत्र में नाट्यशास्त्र का अध्यापन करते हुए प्रकट किए।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने कल के सत्र में नाट्यशास्त्र के पहले और दूसरे अध्याय का अध्यापन करते हुए भारतीय नाट्य के उद्भव और नाट्यमंडप के निर्माण की विधि को स्पष्ट किया। आज‌ के‌ सत्रों में उन्होंने नाट्य मंडप में देवताओं के पूजन तथा नाटक के प्रारम्भ होने ‌के‌ पहले किये जाने वाले पूर्व-रंग के विधान की विस्तार से चर्चा की। अपने चौथे व्याख्यान में उन्होंने रस-भाव और नायक-नायिका भेद को‌ समझाया।

द्वितीय दिवस के द्वितीय सत्र के अंतर्गत डॉली ठकर के द्वारा नाट्य में नृत्य की अवधारणा का स्पष्टीकरण करते हुए नाट्यशास्त्र के चतुर्थ अध्याय में वर्णित चारि, करण, रेचक, अंगहार के विषय में विस्तार से समझाया। नाट्य और नृत्य कला के समंवय का अद्भुत चित्रण उनके द्वारा किया गया। पंच दिवसीय कार्यशाला के द्वितीय दिवस का प्रवर्तन करते हुए रमेश बोराणा ने कार्यक्रम प्रारंभ किया, जिसका समापन भार्गव ठकर जी “नाट्य मंडप और गोवर्धन पांचाल के नाट्य प्रस्तुतियाँ” विषयक चतुर्थ सत्र के द्वारा संपादित हुआ।