धर्म को सादगी सदाचार से नही जोड़ना आत्मछलना है-जिनेन्द्रमुनि
जोधपुर/गोगुन्दा,धर्म को सादगी सदाचार से नही जोड़ना आत्मछलना है-जिनेन्द्रमुनि। वर्धमानस्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीरजैन गौशाला के उमरणा स्थानक भवन में जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि अन्याय अनीति और जुल्म करना भी अपने आप में अधर्म औऱ पाप है। इसको होते देखकर आंखें मूंद कर बैठ जाए अथवा अनदेखा कर मन से विचार करें कि मेरा क्या मतलब,मेरा क्या लेना देना,जो करेगा सो भरेगा,ऐसी पलायनवादी मानसिकता भी हिंसा का धोतक है।
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अन्याय करना हिंसा है। चुपचाप सहना भी हिंसा है। अहिंसा का अर्थ कायरता,बुझदिली मान रहे हैं तो वह उनकी भयंकर भूल होगी।जो आत्मा अत्याचार को मिटाने के लिए अपने प्राणों तक की परवाह नहीं करते हुए दीवाने बन कर सिर पर कफन का टुकड़ा बांधकर मैदान में उतर जाते हैं,इन्हीं को अहिंसावादी कहने का अधिकार है।
जैन संत ने कहा अहिंसावादी अहिंसा को कलंकित कर रहे हैं।यह हमारे लिए शर्म की बात है? आज इनमें भी साहस नही बचा है कि इनको ललकार सके। सच्चे निर्माण की भावना दिलों में है ऐसे काले लोगों को संबंध विच्छेद की घोषणा करें। जब तक धर्म को सदाचार सादगी से नहीं जोड़ा जाएगा। तब तक धर्म की दुहाई देना अपनी आत्मा की छलना है।
बहुत से लोग दुखी को देख कर सोचते हैं कि भगवान इन्हें कर्मों का फल दे रहा है। यदि इसकी सहायता को आगे जाएंगे तो शायद भगवान नाराज हो जाएगा और यह विपति हमारे पर आ जायेगी। यह सोचना भयंकर भूल है। विश्व के सभी धर्मों ने एक स्वर में हिंसा से दूर रहने का संदेश दिया है। कैसी हास्यस्पद स्थिति बनती जा रही है कि गले तक हिंसा में डूबे लोग भी अहिंसा की दुआई दे रहे है। जिसमे करुणा, संवेदना नहीं होती है वे अधार्मिक है। पत्थर के समान है और राक्षस और शैतान है।
कठोर ह्दय ही अहिंसा की पहचान है। प्रवीण मुनि ने कहा कि नैतिकता को अपनाना है। जीवन के हर क्षेत्र में प्रमाणिकता पैदा करनी है। अब समय आ गया है। अपना जीवन नैतिक रूप से उच्च बनाना है। रितेश मुनि ने कहा कि दान धन का उपयोग सर्वोत्तम उपयोग है। जिसका धन दुसरों के काम नही आता वह धर्म से दूर है। उसका परिणाम दुःखद है।प्रभातमुनि ने कहा हमारे विकास में अहंकार भी बहुत बडी बाधा है।