जोधपुर:घर मिला तो लौट आई मुस्कान

पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय संबल पखवाड़ा

जोधपुर(डीडीन्यूज),जोधपुर:घर मिला तो लौट आई मुस्कान। भवाद गांव की वह सुबह आम दिनों से कुछ अलग थी। पंचायत भवन के बाहर लगे टेंट,भीतर रखी मेज़-कुर्सियां, और एक के बाद एक आते ग्रामीण, सबमें एक उम्मीद थी। राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय संबल पखवाड़ा के अंतर्गत यह राजस्व शिविर उन लोगों के लिए था,जिनकी ज़मीन तो थी,मकान भी था लेकिन कागज़ पर उसका नाम नहीं था।

गीता,छोटी,गोपाल और रामरतन जैसे ग्रामीण वर्षों से अपने ही घरों में अस्थायी की तरह रह रहे थे। लेकिन जब तहसीलदार कृष्णा इंकिया और सरपंच मांगली देवी के हाथों उन्हें पट्टा सौंपा गया, तो वह कागज़ उनके लिए सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि पहचान,सुरक्षा,सम्मान और अधिकार का प्रमाण था। उनकी आंखों में खुशी और चेहरे पर संतोष की झलक थी। अब ये घर मेरा है..सचमुच मेरा,गीता ने धीमे स्वर में कहा,जब उसने अपने नाम का पट्टा थामा।

भैंसेर चावण्डियाली की कहानी
तिंवरी क्षेत्र की ग्राम पंचायत भैंसेर चावण्डियाली में भी ऐसा ही दृश्य था। यहां रहने वाले हरिसिंह पुत्र मोहबतसिंह के लिए स्वामित्व योजना ने उनके भूखंड पर मालिकाना हक का सपना साकार किया। शिविर प्रभारी पारसमल (नायब तहसीलदार) ने उन्हें प्रॉपर्टी कार्ड सौंपा,जो न केवल उनके स्वामित्व का प्रमाण बना,बल्कि अब वे अपनी संपत्ति को वित्तीय सुरक्षा में बदल सकते हैं,चाहे वह ऋण हो या अन्य सरकारी लाभ। शिविर में पेंशन,पालनहार,कन्यादान और विशेष योग्यजन योजनाओं की जानकारी भी दी गई। मोबाइल ऐप से जुड़ने के तरीके भी सिखाए गए, यानी प्रशासन अब सिर्फ कागज़ी नहीं,डिजिटल भी हो रहा है।

दो भाइयों के बीच पड़ी रिश्तों की दीवार हटी
ग्राम पंचायत बड़ा कोटेचा में जब अनवर खान और रुस्तम खान वर्षों पुराने जमीनी विवाद के निपटारे के लिए शिविर में पहुंचे,तो किसी को नहीं लगा था कि समाधान उसी दिन मिल जाएगा। शिविर प्रभारी गिरिराज किशोर और पटवारी किशोर खोरवाल ने न केवल मौके का निरीक्षण किया,बल्कि दोनों पक्षों की बात सुनकर आपसी सहमति से विवाद का समाधान कर दिया। गांव के लोग बोले यह शिविर सिर्फ जमीन ही नहीं बांटता,रिश्तों को भी जोड़ता है।

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सोपड़ा में बुज़ुर्गों को मिला उनका हक
हिरादेसर पंचायत के गांव सोपड़ा में रहने वाले छगनाराम,हमीरराम और भगाराम वर्षों से अपने पुश्तैनी मकानों में रह रहे थे लेकिन अधिकार का प्रमाण नहीं था। जब उन्होंने शिविर में अपने मकानों के पट्टों के लिए आवेदन किया,तो शिविर प्रभारी खरताराम चौधरी और टीम ने स्वामित्व योजना के तहत तुरंत स्वामित्व कार्ड और मकान पट्टे सौंपे। वृद्ध छगनाराम के चेहरे पर आई मुस्कान कह रही थी,जिंदगी के इस पड़ाव पर अब कोई डर नहीं रहा। घर अब सिर्फ चार दीवारें नहीं, कागज़ पर मेरा नाम भी है।

अंत्योदय की असली तस्वीर
ये चार कहानियां केवल रिपोर्ट नहीं, बल्कि उस बदलाव की मिसाल हैं, जो सरकार की नीतियों से ज़मीनी स्तर पर घटित हो रहा है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में चल रही योजनाएं अब ग्रामीणों की मुस्कान में दिख रही हैं। शिविर अब सिर्फ सरकारी उपस्थिति नहीं,बल्कि ग्रामीणों के जीवन में एक ठोस, संवेदनशील और भरोसेमंद हस्तक्षेप बन चुके हैं,जहां उन्हें न सिर्फ अधिकार मिल रहा है,बल्कि आत्मसम्मान भी मिल रहा है।

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