कैंसर और दुर्लभ रोगों के उपचार की राहें हो सकती हैं आसान
- आईआईटी जोधपुर के वैज्ञानिकों ने सेंट्रोसोम के रहस्यों को सुलझाया
- सेल के ‘कंट्रोल सेंटर’ की गुत्थी सुलझा रहे हैं आईआईटी जोधपुर के वैज्ञानिक
- कैंसर और दुर्लभ बीमारियों के उपचार की दिशा में नई उम्मीद
- डॉ.प्रियांका सिंह और उनकी टीम का अग्रणी शोध
- यह उजागर करता है कि किस प्रकार सेल का ‘मिशन कंट्रोल सेंटर’ स्वस्थ वृद्धि को नियंत्रित करता है
- कैंसर जैसी बीमारियों से बचाव में हो सकता है सहायक
जोधपुर(दूरदृष्टीन्यूज),कैंसर और दुर्लभ रोगों के उपचार की राहें हो सकती हैं आसान। कल्पना कीजिए कि हमारा शरीर एक व्यस्त शहर की तरह है जहाँ प्रोटीन, अणु और अन्य जैविक अंश सड़कों पर दौड़ते वाहनों की तरह गतिशील हैं। इस सारे जटिल ट्रैफिक को नियंत्रित करने वाला “ट्रैफिक कंट्रोल सेंटर” कौन है? उत्तर है-सेंट्रोसोम,जो कोशिका(सेल) का अपना “मिशन कंट्रोल सेंटर” है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर (IIT जोधपुर)के बायोसाइंस एंड बायो इंजीनियरिंग विभाग की सह-आचार्य डॉ.प्रियांका सिंह और उनकी शोध टीम सेंट्रोसोम की संरचना और कार्यप्रणाली को समझने में जुटी हैं। उनका शोध यह उजागर कर रहा है कि यह सूक्ष्म जैविक केंद्र किस प्रकार कोशिकाओं के विभाजन को नियंत्रित करता है, संतुलन बनाए रखता है और असंतुलन होने पर कैंसर या माइक्रोसेफली जैसी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
डॉ.सिंह कहती हैं कि”हम कोशिका की कार्यप्रणाली का सटीक ब्लूप्रिंट समझना चाहते हैं ताकि कैंसर को वहीं रोका जा सके,जहाँ वह शुरू होता है और स्वस्थ कोशिकाओं को कोई क्षति न पहुँचे।”जब कोशिकाएँ विभाजित होती हैं,तो सेंट्रोसोम दोगुना होकर सेल के दोनों छोरों पर पहुँच जाते हैं और सूक्ष्म तंतु (माइक्रोट्यूब्यूल्स) बनाते हैं जो गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) को दो बराबर भागों में बाँटते हैं। यदि सेंट्रोसोम की संख्या ज़्यादा या कम हो जाए,तो कोशिकाओं का विभाजन अनियंत्रित हो जाता है जो कैंसर की प्रमुख पहचान है।
नए रहस्य उजागर कैंसर को रोकने की दिशा में कदम
डॉ.सिंह की टीम ने यह खोज की है कि PLK4 नामक प्रोटीन एक स्विच की तरह कार्य करता है,जो समय पर दो अवस्थाओं के बीच बदलता है और सेल डिवीजन को संतुलित रखता है। उन्होंने यह भी पाया कि STIL प्रोटीन और BRCA1 ट्यूमर सप्रेसर प्रोटीन के बीच एक नया, अप्रत्याशित संबंध है,यह साझेदारी बताती है कि कैसे कोशिका के भीतर की यह प्रणाली स्वयं कैंसर रोधी भूमिका निभाती है।
टीम यह भी अध्ययन कर रही है कि सेंट्रोसोम से जुड़ी प्रोटीन में परिवर्तन (म्यूटेशन) कैसे माइक्रोसेफली जैसी दुर्लभ बीमारियों का कारण बनते हैं।उन्होंने पाया कि CPAP प्रोटीन में दो अलग-अलग प्रकार के म्यूटेशन से एक में सेंट्रोसोम बहुत बड़े हो जाते हैं और दूसरे में उनकी संख्या बढ़ जाती है। यह संतुलन बिगड़ना गंभीर विकास संबंधी विकारों का कारण बनता है।
कैंसर और दुर्लभ रोगों के लिए नई उम्मीद
कुछ कैंसर कोशिकाएँ सेंट्रोसोम की संख्या बढ़ने के बावजूद उन्हें एक साथ जोड़ लेती हैं ताकि सामान्य विभाजन का भ्रम बना रहे। डॉ.सिंह की टीम ने ऐसे म्यूटेशन की पहचान की है जो यह धोखा देने में मदद करते हैं और ऐसे रसायनों का विकास किया है जो इन सेंट्रोसोम क्लस्टर्स को तोड़ सकते हैं। यह भविष्य की कैंसर थेरेपी के लिए एक नई दिशा प्रदान कर सकता है।
भारतीय जनसंख्या में दुर्लभ सेंट्रोसोम- संबंधी बीमारियों की पहचान की दिशा में टीम चिकित्सकों और शोधकर्ताओं का एक नेटवर्क बना रही है ताकि प्रारंभिक निदान और विशिष्ट भारतीय पैटर्न की मैपिंग की जा सके। रासायनिक नवाचार और सहयोग
डॉ.सिंह की प्रयोगशाला
IIT जोधपुर के रसायनशास्त्र विभाग के डॉ.संदीप मुरारका के साथ मिलकर,नए रासायनिक यौगिकों पर भी कार्य कर रही है जो कैंसर रोधी दवाओं के लिए Taxol जैसी पारंपरिक दवाओं का विकल्प बन सकते हैं। टीम के बनाए नए यौगिकों ने बहुत कम मात्रा में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सक्षम होने का प्रमाण दिया है जो इन्हें भविष्य की क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए संभावित उम्मीदवार बनाता है। टीम मौजूदा दवाओं को पुनः उपयोग (repurpose) कर सेंट्रोसोम की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने के प्रयास में है जिससे लक्षित,कम लागत वाली और प्रभावी एंटी-कैंसर थेरेपी विकसित हो सके।
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IIT जोधपुर की शोध भावना
डॉ.प्रियांका सिंह का यह अग्रणी कार्य न केवल कोशिकाओं के विभाजन और रोगों की समझ को नया दृष्टिकोण देता है,बल्कि ऑन्कोलॉजी,न्यूरोलॉजी और पुनर्जनन चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भी परिवर्तनकारी योगदान दे रहा है। यह शोध IIT जोधपुर की उस भावना का परिचायक है जो मूलभूत विज्ञान को सामाजिक प्रभाव से जोड़ने के मिशन को आगे बढ़ाती है। सेंट्रोसोम वास्तव में कोशिका का कमांड सेंटर है। डॉ.सिंह कहती हैं यदि हम यह समझ जाएँ कि यह कैसे निर्णय लेता है,तो हम बीमारियों के नियमों को फिर से लिख सकते हैं कैंसर से लेकर दुर्लभ विकास संबंधी विकारों तक।
