शिखर सम्मेलन के शिखर पर भारत

✍🏻पार्थसारथि थपलियाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा से सीधे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में पहुँचने की कूटनीति ने यह साबित कर दिया कि भारत अब विश्व मंच पर केवल आमंत्रित मेहमान नहीं,बल्कि निर्णायक किरदार के रूप में है। जापान होकर चीन जाने के पीछे राजनीति के पंडित अपने अपने अर्थ निकाल रहे हैं। चीन के तियानजिन शहर में आयोजित “शंघाई सहयोग संगठन” की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत सम्मान, प्रवासी भारतीय लोगों के मध्य व चीनी कलाकारों द्वारा राजस्थानी स्वागत गीत ने बता दिया कि स्वागत अपनत्व से भरपूर है।

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रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग की गलबहियां उत्साहपूर्ण भाव भंगिमा जिस पर सुदूर वॉशिंगटन में उद्विग्न मन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चिंताएं बढ़ने के लिए पर्याप्त थे। इन तीन नेताओं की उपस्थिति पर दुनिया की निगाहें टिकी हुई थीं। उसमें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वाधिक आकर्षण और चर्चा के केंद्र बने हुए थे।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप,जो अपनी तुगलकी टैरिफ नीति लागू करने से अलग थलग होते लगते हैं, उन्हें चिंतित करने वाला यह समूह नई विश्व व्यवस्था स्थापित करने की बात कर रहा है। इस व्यवस्था को यदि शंघाई सहयोग संगठन वास्तव में अपना लेता है तो संयुक्त राष्ट्र संघ में अकेले बैठे रहकर ट्रंप किस पर अपनी चौधराहट दिखाएंगे? इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति किसी “सुपरस्टार” से कम नहीं थी। प्रधान मंत्री मोदी को राष्ट्रपति पुतिन का अपनी कार में बैठाकर होटल ले जाने के लिए 10 मिनट तक प्रतीक्षा करना सुदृढ़ मैत्री का परिचायक लगा,जिसे दुनिया देखती रह गयी।

शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमापार से आतंक को बढ़वा देना,पुलवामा में आतंकियों द्वारा बेकसूर पर्यटकों को जान से मार देना,आतंकवादी देश को सहयोग करना,दोहरे मानदंड अपनाना जैसे मुद्दों पर भारत के नजरिए से समझा दिया और संयुक्त वक्तव्य में पुलवामा में बेकसूर हिंदुओं का नर संहार को भी शामिल करवाया।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ वह सब सुनते रहे जो कहा जा रहा था। तब पाकिस्तान की ओर से केवल झेंपने और मौन रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मोदी का यह संदेश कि,आतंकवाद “अच्छा” या “बुरा” नहीं होता,बल्कि केवल आतंकवाद होता है,ऐसा कहना पाकिस्तान की रीढ़ पर सीधा प्रहार था। चीन की बात करें तो उसका इतिहास किसी “विश्वसनीय सहयोगी” का नहीं,बल्कि “छल- कपट के व्यापारी” का है। 1962 का विश्वासघात,डोकलाम का टकराव और लद्दाख में हुई झड़पें उसकी असलियत उजागर करती हैं।

SCO शिखर सम्मेलन में चीन जब “शांति और विकास” की रट लगाता है तो यह वैसा ही लगता है जैसे भेड़ की खाल में भेड़िया भाषण दे रहा हो। मोदी ने परोक्ष रूप से यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब बदल चुका है। पहले तो छेड़ता नहीं,कोई छेड़ता है तो छोड़ता नहीं। इस दौर का भारत,दुनिया की आंख में आंख डालकर बात करता है,भारत आत्मविश्वास से भरा देश है। शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की हुंकार देशवासियों के लिए स्वाभिमान की बात थी।

एक कहावत है नादान की दोस्ती जी का जंजाल। यह बात भारतीय राजनीति के नादानो पर ही लागू नहीं होती। यह धरती अभी वीरों से विहीन नहीं हुई। एक नादान दोस्त ट्रंप के यहां भी है,नाम है पीटर नवारो,जो ट्रंप सरकार में उनका आर्थिक सलाहकार है,इसकी भाषा अमेरिकी डीप स्टेट के नायक जॉर्ज सोरोस की तरह सुनाई दी,नवारो ने भारत के ब्राह्मण समाज पर राजनीतिक विद्वेष से भरी टिप्पणी की। भारत में कुछ विघ्नसंतोषी,जो पारिवारवादी दलों में हैं और जातीय गणना के झण्डावरदार हैं उन्हें राहत मिली होगी। पीटर नवारो ने भारत में ब्राह्मणों पर जो बेहूदा सामाजिक टिप्पणी की,उसे कांग्रेस के नेता उदितराज मीडिया में सही बताते दिखाई दिए।

विदेशी अख़बारों ने मोदी की भागीदारी को गौरवपूर्ण माना। फाइनेंशियल टाइम्स,अखबार ने लिखा कि “भारत की उपस्थिति ने एससीओ को विश्वसनीयता और संतुलन दिया। ”न्यूयॉर्क टाइम्स, अखबार ने कहा कि “मोदी एक गहरे विभाजित विश्व में एक स्थिरकारी आवाज के रूप में उभरे हैं”। द जापान टाइम्स,अखबार ने लिखा कि “भारत अब एक निष्क्रिय खिलाड़ी नहीं है,बल्कि एक अनिवार्य भागीदार है”। प्रधानमंत्री मोदी ने तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर भारत के दृष्टिकोण को साफ किया। 1.आतंकवाद पर ज़ीरो टॉलरेंस। 2. सीमा विवाद पर शांति और बराबरी का संवाद। 3.रूस-यूक्रेन युद्ध पर शांति और संवाद की अनिवार्यता। रूस-यूक्रेन युद्ध,विश्व में ऊर्जा संकट,ग्लोबल वार्मिंग,खाद्य असुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतियों के बीच मोदी का संतुलित स्वर दुनिया को यह विश्वास दिलाता है कि भारत अब सिर्फ़ अपने लिए नहीं,बल्कि पूरी मानवता के लिए सोचता है।

यही कारण है कि उनकी उपस्थिति ने SCO को एक “औपचारिक मंच”से आगे बढ़ाकर “प्रासंगिक” बना दिया। आज जब अमेरिका टैरिफ युद्ध की जिद्द में उलझा है और चीन विस्तारवाद के नशे में,तब मोदी का भारत वैश्विक स्थिरता का नया स्तंभ बनकर उभर रहा है। SCO समिट में मोदी ने जो कहा,वह केवल भाषण नहीं था, बल्कि यह उद्घोषणा थी कि आतंकवाद और युद्ध जैसी चुनौतियों के सामने भारत अब खामोश नहीं रहेगा।

मोदी की यह विदेश नीति सिर्फ़ कूटनीति नहीं,बल्कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा का वह नया अध्याय है जिसने पाकिस्तान की जुबान बंद की,चीन को आईना दिखाया और दुनिया को भरोसा दिलाया और यही वजह है कि विदेशी मीडिया की सुर्ख़ियों में मोदी “सुपरस्टार” कहलाए,क्योंकि अस्थिर दुनिया में स्थिर स्वर हमेशा सबसे ऊँचा सुनाई देता है। यह शंघाई सहयोग शिखर सम्मेलन में भारत के शिखर पर होने की नई सफलता है।


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