हिंदी शब्द का बढ़ाएं ज्ञान,जिज्ञासा का करें समाधान
शब्द संदर्भ:- (100) सभ्य और सभ्यता
लेखक -पार्थसारथि थपलियाल
जिज्ञासा
दिल्ली से नरेंद्र शर्मा सभ्य और सभ्यता शब्दों के बारे में जानना चाहते हैं।
समाधान
“सभ्य” शब्द का मूल अर्थ है- “सभा में बैठने योग्य।” जिन लोगों ने समाज का चिंतन कर यह मूल्यांकन किया होगा कि सभा में वे लोग बैठने चाहिए जो नैतिकता रखते हों, विभिन्न सामाजिक विषयों पर गहन समझ रखते हों और वे न्याय प्रिय भी हों, उन्हें ही सभा में बैठने योग्य माना जाना चाहिए, वे लोग सभ्य शब्द के जनक हैं। समाज में सभ्य लोगों के सर्वमान्य गरिमा युक्त आचार और व्यवहार का प्रकटन ही सभ्यता है। सभ्य लोगों की चौपाल, बैठक ही सभा कहलाई जाती है। नीति शास्त्र में एक श्लोक है-
न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा, न ते वृद्ध ये न वदन्ति धर्म:।।
अर्थात वह सभा, सभा नही है जिसमें वृद्ध (ज्ञान और अनुभव से पूर्ण लोग) न हों, वे वृद्ध, वृद्ध नही हैं, जो धर्म (सत्य और न्याय परक) नही बोलते हों।
वृद्ध दो प्रकार के होते हैं-
ज्ञानवृद्ध और वयवृद्ध।
समाज में सामूहिक व्यवहार लोक संस्कृति को जन्म देता है। लोक संस्कृति में पनपती है सभ्यता। संस्कृति समाज की मानसिकता को प्रकट करती है। संस्कृति मंदगति से चलती है सभ्यता तीव्रगति से। सभ्यता आधुनिकता को बढ़ावा देती है, जबकि संस्कृति परंपराओं के माध्यम से बची रहती है। संस्कृति की सत्ता मानसिक होती है और सभ्यता की सत्ता बाह्य। यह बाह्य सत्ता ही पुराने को नकारने के लिए उद्द्यत रहती है। नए को स्वीकार करने के लिए लोग तैयार रहते हैं, इसलिए पुराना छोड़ दिया जाता है। भारत में गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड की अवधारणा कोई सोच भी नही सकता था, अब ऐसे संबंधों को बताने में लोग गर्व अनुभव करते हैं। पहले पर स्त्री या पर पुरुष गमन को अनैतिक माना जाता था, अब कानून ही कहता है कि कोई वयस्क स्त्री या पुरुष पारस्परिक सहमति के आधार पर शारीरिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध नही है। पहले कोमोतेजक या अर्द्धनग्न शरीर दिखाना असभ्य माना जाता था, आज आप बोलकर तो देखिए, निजता और “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार” बताकर कारागार जाने की नौबत आ सकती है। यह सब देखते हुए समाज का बुद्धिजीवी शांत है या भयभीत है?
पावस आवत देखिके कोयल साढ़े मौन
अब दादुर वक्त भये, हमे पूछिये कौन।।
संस्कृति समाज के आंतरिक स्वभाव से निकला व्यवहार है, सभ्यता व्यक्ति/समाज को बाह्य कारकों को बढ़ाने से मिलती है। धोती कुर्ता छोड़कर पैंट-शर्ट पहनना, या जीन्स टी शर्ट पहना,सब्ज़ी रोटी की जगह पिज़्ज़ा- बर्गर खाना,शादी समारोह में पहले घर वाले आतिथ्य में लगे होते थे, बाहर वाले नाचना गाना करते थे अब परिवर्तन हुआ है घरवाले नाचते गाते हैं,खाना बनाने के लिए लोग बाहर से बुलाये जाते हैं।
संस्कृति के प्रभाव से व्यक्ति विनयशील, मिलनसार, लोकसंग्रही, उदार,सहिष्णु और आदर्श चरित्र को स्थापित करता है जबकि सभ्यता भौतिक प्रगति और विकास की सूचक है। इस दौर की बाजारवादी सभ्यता ने पाश्चात्य संस्कृति का आलिंगन कर दिया है। इसमें पहनावे में आधुनिकता, बोलने में आत्मकेंद्रित भाव, पहले सभ्यता वास्तव में मानवीय मूल्यों को लेकर चलती थी, प्रगतिशील सोच, कलाओं का विकास, नवनिर्माण को बढ़ावा, स्थापत्य कलाएं जो आज भी प्राचीन सभ्यताओं के इतिहास बताती हैं, जीवन को उच्च बनाने के प्रयास आदि आदि शामिल हैं। आज भी सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेष,बौद्ध स्तूप,अंकोर्बत के मनीर, खजुराहो के मंजीरों के भित्ति चित्र आदि प्राचीन सभ्यता को आज भी प्रदर्शित करते हैं।
संस्कृति हमारे सामजिक जीवनप्रवाह की उद्गमस्थली है और सभ्यता इस प्रवाह में सहायक उपकरण। संस्कृति साध्य है और सभ्यता साधन। सभ्यता में गिरावट का मूल्यांकन संस्कृति करती है।
अब तक सभ्यता पर समाज का नियंत्रण होता था। फूहड़ किस्म के फैशन अथवा व्यवहार समाज द्वारा नकार दिए जाते थे। रूढ़ि बन चुके व्यवहारों को त्याग कर समाज वैकल्पिक उपयुक्त आधुनिक व्यवहारों को स्वीकार करता था, लेकिन आधुनिकता के दौर में बाज़ारवाद ने सबसे अधिक कुठाराघात हमारी संस्कृति और सभ्यता पर किया है। संबंधों के तानेबाने खत्म हो रहे हैं। नई आर्थिक नीतियों के दौर में बाजार विज्ञापनों के माध्यम से घरों के संस्कार भी खराब कर रहा है। समाज का अदृश्य नियंत्रण भी नही रहा। मीडिया अपसंस्कृति का मार्ग दर्शक और संवाहक बन गया है। मीडिया के अनेक प्लेटफॉर्म हैं जो अनैतिकता, अश्लीलता और कामुकता को बढ़ावा दे रहे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जो गोरखधंधे अपनाये जा रहे हैं उनके परिणाम समाज में दिखाई दे रहे हैं। समझ में नही आता कि पूरा कपड़ा पहनना सभ्य है या छोटे वस्त्र धारण करना सभ्य है। यह समाज के लिए चिंतनीय है।
“यदि आप भी किसी हिंदी शब्द का अर्थ व व्याख्या जानना चाहते हैं तो अपना प्रश्न यहां पूछ सकते हैं।”