डॉ.दिलीप कच्छावा को मिला जिनेवा से माइसेटोमा पर प्रोजेक्ट

जोधपुर,डॉ.दिलीप कच्छावा को मिला जिनेवा से माइसेटोमा पर प्रोजेक्ट। डॉ एसएन मेडिकल कालेज के प्राचार्य रहे,वरिष्ठ प्रोफेसर,त्वचा रोग विभाग के डॉ.दिलीप कच्छावा, को डीएनडीआई जिनेवा, स्विट्जरलैंड से माइसेटोमा पर प्रोजेक्ट प्राप्त हुआ है। डॉ.कच्छावा ने बताया कि माइसेटोमा चमड़ी के नीचे के ऊतकों का विनाशकारी संक्रामक रोग है।

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इसकी सराहना करते हुए डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज की वर्तमान प्राचार्य एवं नियंत्रक तथा वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ रंजना देसाई ने बताया कि कॉलेज को इस तरह का अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट मिलना खुसी की बात है तथा यह माइसेटोमा रोग पर ज्ञान को तथा मरीजों को मिलने वाले उपचार को और अधिक उन्नत सतर पर ले जाएगा। माइसेटोमा के दो प्रमुख प्रकार होते हैं यूमाइसेटोमा और ऐक्टिनोमाइसेटोमा। यूमाइसेटोमा में रोग कारक फंगस संक्रमण (कवक) के कारण होता है ऐक्टिनोमाइसेटोमा में बैक्टीरियल संक्रमण (ऐक्टिनोमाइसेस) के कारण गांठें उत्पन्न होती हैं। ये गांठें समय के साथ बढ़ती हैं और शरीर के अंगों में दर्द, सूजन और त्वचा के बदलाव का कारण बनती हैं।

इस रोग में शरीर की ऊपरी त्वचा या अंगों में संक्रमण होता है और रोगी के अंगों में गांठों का उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। धीरे धीरे ये गांठे फूटने लगती है और इनसे स्त्राव तथा दानो का निकलना शुरु हो जाता है। यह रोग शुरू में अधिक दर्द उत्पन नहीं करता है जिस से रोगी इसे अधिक गम्भीरता से नहीं लेते और समय से त्वचा रोग विशेषज्ञ के पास नहीं पहुँचते, इसलिए ये धीरे धीरे विशाल रूप ले लेता है। इसका समय पर पता न चलने पर अंगों जैसे की मसल्स एंड हड्डी को नुकसान पहुंचा सकता है। शुरुआत में जहा इस रोग का इलाज केवल दवाईयों से संभव है वहीं अधिक समय बीतने पर पैर काटना भी पड़ सकता है।

यदि ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं,तो तुरंत एक त्वचा विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। माइसेटोमा का समय पर पता चलना और उपचार करवाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। सही समय पर इलाज न होने पर यह रोग गंभीर स्थिति में बदल सकता है। डॉक्टर आदेशित दवाओं के साथ-साथ चिकित्सा की दिशा में आगामी समय के लिए विभिन उपचार एवं सावधानिया बताते है जिनका पालन करना आवशयक है।

देरी से उपचार शुरु होने पर गंभीर विकलांगता बीमारी के कारण हो सकती है जिस कारण पैर को सर्जरी द्वारा काटना (एम्पूटेशन) आवश्यक हो जाता है। इस रोग का निदान चुनौती पूर्ण है विशेषकर संसाधन- सीमित परिस्थितियों में, साथ ही मायसेटोमा के बारे में मरीजों एवं चिकित्स्कों में भी जागरूकता सीमित है।

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डॉ.कच्छावा ने बताया की इस अध्ययन में,लगभग 25 अस्पताल जिनमें से अधिकांश तृतीय श्रेणी अस्पताल और शिक्षण संस्थान/अस्पताल हैं,एक साथ मिलकर काम करेंगे। डॉ.कच्छावा की टीम के सदस्य डॉ.पंकज राव प्रोफेसर त्वचा विभाग डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज, डॉ.श्वेता माथुर वैज्ञानिक एमडीआरयू डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज, डॉ.प्रज्ञा, जेआर, त्वचा विभाग,डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज, जोधपुर शामिल है।