आत्मविश्वास पूर्ण भारतीय कूटनीति
– पार्थसारथि थपलियाल की कलम से
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों में थे। पदासीन होने के कुछ ही समय बाद अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे लोगों को उनके मूल देशों में भेजा जा रहा था। ऐसे लोगों में भारतीय भी शामिल थे। उन लोगों के हाथों में जंजीरें बंधी थी। यह भारत के लिए चिंता का विषय था। प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप की मित्रता पर कई कटाक्ष उन दिनों विपक्ष द्वारा किए गए। यह व्यवहार प्रधानमंत्री मोदी की सोच से परे था। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ थोपना उस समय दोनों देशों के संबंधों में तनाव का कारण बना। इस 50 प्रतिशत में 25 प्रतिशत भाग इसलिए बढ़ाया गया कि भारत रूस से कच्चा तेल क्यों खरीदता है।
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राष्ट्रपति ट्रंप के आर्थिक सलाहकार नवारो इसी भारत विरोधी नीति लागू करवा रहे थे,जिसमें दोस्ती का पुट गायब था। इस कठिन परिस्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झुकने के बजाय आत्मविश्वास से उत्तर दिया। वास्तव में टीम इंडिया में शामिल विदेशमंत्री डॉक्टर एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कूटनीति का जो ताना बाना धैर्य से बुना,वह अकल्पनीय था। धैर्य,साहसपूर्ण कूटनीति,संयत और स्पष्ट भाषा ने कूटनीति और राजनीति के पंडितों को भी अचरज में डाल दिया। यह भारत के उस नए स्वर का परिचायक था,जो अब वैश्विक राजनीति में दबाव से नहीं, बल्कि अपनी शर्तों और हितों के आधार पर निर्णय लेता है। मोदी के कार्यकाल ने भारत की कूटनीति को अभूतपूर्व ऊँचाई दी।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर भारत ने आतंकवाद पर कठोर रुख अपनाकर पाकिस्तान को बेनकाब किया और चीन की विस्तारवादी नीति का सामना डटकर किया। रूस और अमेरिका दोनों से संबंधों का संतुलन साधना और विकासशील देशों की आवाज बनना इस बात का प्रमाण है कि भारत अब विश्व व्यवस्था में एक स्वतंत्र ध्रुव है लेकिन मोदी की पहचान केवल कूटनीति तक सीमित नहीं रही। उन्होंने बार-बार यह साबित किया कि भारत संकट की घड़ी में केवल अपने ही नहीं,बल्कि पूरी मानवता का सहारा बन सकता है। ऑपरेशन सिंदूर इसका जीवंत उदाहरण है, जिसने दिखाया कि युद्धक हालात में भी भारत अपने नागरिकों को सुरक्षित वापस ला सकता है। इससे पहले कोविड काल में ऑपरेशन गंगा और वंदे भारत मिशन ने लाखों भारतीयों को सुरक्षित घर पहुँचाया।
मानवता की सेवा में मोदी सरकार की सबसे बड़ी पहचान बनी वैक्सीन मित्रता। जब समृद्ध देश अपने नागरिकों तक ही टीके सीमित रख रहे थे,भारत ने 200 करोड़ से अधिक टीके अपने लोगों को लगाने के साथ-साथ एशिया,अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक जीवनदायी टीके पहुँचाए। यह केवल उत्पादन क्षमता नहीं,बल्कि भारतीय परंपरा “वसुधैव कुटुम्बकम्” की आधुनिक अभिव्यक्ति थी।
योग दिवस की वैश्विक मान्यता, जी-20 शिखर सम्मेलन की सफल मेज़बानी और भारतीय संस्कृति की सॉफ्ट पावर का विस्तार मोदी युग की अन्य उपलब्धियाँ हैं। इनसे भारत को न केवल आर्थिक या सामरिक शक्ति,बल्कि एक नैतिक शक्ति के रूप में भी सम्मान मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम इंडिया जिस तरह काम कर रही है,उसी का परिणाम है भारत में चहुमुखी विकास हो रहा है,भारत आत्मनिर्भर हो रहा राज्य है। अभिअभी जीएसटी की दरों में जो परिवर्तन हुए हैं उससे आम जनता को बहुत लाभ होगा। कमियां और चुनौतियां सरकार की आलोचना का कारण बनती हैं। बेरोजगारी,कृषि संकट और सामाजिक असमानता जैसे प्रश्न आज भी गंभीर हैं लेकिन हर कोई इस बात को मानता है कि देश में बहुत सुविधाएं बढ़ी हैं। आलोचकों का कहना है कि वैश्विक दबदबे की आड़ में आंतरिक चुनौतियाँ अनदेखी हो रही हैं। परंतु यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि मोदी के कार्यकाल में भारत ने आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता के बल पर विश्व मंच पर अपनी ऐसी स्थिति बना ली है,जहाँ कोई बड़ी शक्ति उसे नज़र अंदाज़ नहीं कर सकती।
पहलगाम में हिंदू पुरुषों की पहचान कर जिस तरह का नरसंहार किया गया था। मोदी सरकार ने अपनी घोषणा के अनुसार ऑपरेशन सिंदूर चलाकर देश की सैन्य क्षमता और कौशल से पूरी दुनिया को अचंभित किया।गत सप्ताह चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन में रूस, भारत और चीन ने मिलकर यूरोप और अमेरिका की चौधराहट को नई व्यवस्था स्थापित करने का मुद्दा उठाकर अमेरिका को घुटनों के बल बैठा दिया। ट्रंप को झुकाना प्रतीक मात्र था। असली उपलब्धि वह आत्मविश्वास है जिसने भारत को कूटनीति और मानवीय सेवा,दोनों में अग्रणी बना दिया। यही भारत की वास्तविक पहचान है-एक ऐसा राष्ट्र, जो अपनी शर्तों पर विश्व राजनीति को दिशा देने और पूरी मानवता की सेवा करने में सक्षम है। इस दौर में दुनिया भारत की आत्म-विश्वासपूर्ण भारतीय कूटनीति को अचरज भरे अंदाज में समझने की कोशिश कर रही है।