डॉक्टर से 2.18 करोड़ की ठगी के आरोप में एक और आरोपी जयपुर से गिरफ्तार

  • साइबर थाना पुलिस
  • जयपुर से गिरफ्तार कर लाया गया – पूछताछ जारी
  • सस्ती कीमत पर शेयर दिलाने का झांसा देकर की थी ठगी

जोधपुर,डॉक्टर से 2.18 करोड़ की ठगी के आरोप में एक और आरोपी जयपुर से गिरफ्तार। कमिश्नरेट के साइबर पुलिस थाना ने एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय गैंग का खुलासा किया था जो सस्ती रेट पर शेयर दिलाने व लोन पास करवाने की आड़ में करोड़ों रुपए की ठगी कर चुकी है। पुलिस ने दो आरोपियों को हाल में गिरफ्तार किया था जो दोनों उदयपुर के रहने वाले हैं।

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उन्होंने एक डॉॅक्टर से करीब 2.18 करोड़ की ठगी की थी। प्रकरण से जुड़े एक और आरोपी को अब जयपुर से गिरफ्तार कर लाया गया है। आरोपी जयपुर के कालावाड़ महेशकलां राबड़ों की ढाणी निवासी अनोप यादव पुत्र रामनारायण यादव को पकड़ा गया है।

गौरतलब है कि उम्मेद हैरिटेज में रहने वाले डॉ.बलवीर सिंह ने गत 16 मई को रातानाडा थाने में धोखाधड़ी की रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया कि उसके फेसबुक अकांउट पर ऑन लाइन कोटक पीएमएस साइट पर शेयर व आईपीओ में पैसा लगाने पर मार्केट रेट से पांच प्रतिशत कम रेट पर शेयर मिलने का मैसेज आया। उनके द्वारा एक एप डाउनलोड करवाया तथा एक आईडी व पासवर्ड दिए दिए।

शुरुआत में निवेश पर मार्केट रेट से ज्यादा लाभ मिला। उसके बाद आईपीओ व शेयर में निवेश करने पर ज्यादा लाभ प्राप्त होने के नाम पर दो करोड़ 18 लाख 97 हजार 797 रुपए की धोखाधड़ी कर ली गई। केस को साइबर पुलिस थाना में सौंपा गया।

यूं आए थे पकड़ में
साइबर थाना पुलिस की टीम को जांच में पता चला कि इस ठगी में डॉक्टर को एक फर्जी खाता पंजाब नैशनल बैंक अलवर प्राप्त हुआ था। इस पर अलवर से खाता खुलवाने वाले अजयसिंह को अलवर के मेवात क्षेत्र से गिरफ्तार कर पुलिस अभिरक्षा में लेकर अन्य अपराधियों की तलाश जयपुर,अलवर व दिल्ली में की गई।

तब अजयसिंह,अनूप यादव,दिपेश सोमवंशी व यश जोशी के नाम सामने आए। इसके बाद आरोपी 48 पहाड शिवनाथ विला एकलिगंपुरा उदयपुर निवासी दिपेश सोमवंशी और नगर परिषद कॉलोनी आदुर साइड ब्रह्मपोल उदयपुर निवासी यश जोशी को दिल्ली क्षेत्र से दस्तयाब करने में सफलता प्राप्त की थी।

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पैसों की जरूरत वालों को करती चिन्हित
आरोपीयों की गैंग ऐसे व्यक्तियों को चिन्हित करती है,जिनको पैसों की जरूरत होती है। ऐसे व्यक्ति को विश्वास में लेते और लोन पास करवाने की आड़ में आवश्यक दस्तावेज तैयार करवाकर अपने प्रभाव वाली बैंक में चालू खाता खुलवाते।

फिर उस खाते को (कॉरपोरेट इन्टरनेट बैंकिंग) से जोड़ क़र इस खाते में खाताधारक के अलावा एक आदमी ट्रांजेक्शन के लिए और जोड़ देते थे जो अपनी ही गैंग का सदस्य होता था, इससे जुडऩे के बाद खाताधारक को किसी भी लेनदेन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है।