साईमा सैयद ने किया 60 किमी. एंड्यूरेंस रेस क्वालिफाई
80 किलोमीटर रेस के लिए मिली योग्यता
जोधपुर(दूरदृष्टीन्यूज),साईमा सैयद ने किया 60 किमी. एंड्यूरेंस रेस क्वालिफाई। देश की पहली महिला वन-स्टार राइडर बनने का गौरव हासिल कर चुकी राजस्थान की विख्यात घुड़सवार साईमा सैयद ने एक बार फिर कमाल कर दिखाया। मयूर चोपासनी स्कूल में हॉर्स राइडिंग क्लब कोच के रूप में पदस्थ साईमा ने नेशनल एंड्यूरेंस चैंपियनशिप की 60 किलोमीटर स्पर्धा में शानदार प्रदर्शन करते हुए रेस को सभी मापदंडों के साथ सफलता पूर्वक क्वालिफाई किया और अब 80 किलोमीटर रेस में हिस्सा लेने की योग्यता हासिल कर ली है।
प्रशिक्षक बनने के बाद खिलाड़ियों का स्वयं खेल से दूर हो जाना आम बात है,लेकिन साईमा ने कोच रहते हुए भी मैदान में उतरकर अपने शिष्यों के सामने ‘कर के दिखाने’ का संदेश दिया। इससे न केवल उनके सहयोगी प्रशिक्षकों में उत्साह है, बल्कि उनके मार्गदर्शन में प्रशिक्षण ले रहे युवा राइडर्स में भी नई ऊर्जा का संचार हुआ है।
भारतीय घुड़सवारी महासंघ के तत्वावधान में राजस्थान इक्वेस्ट्रियन एसोसिएशन द्वारा डूंडलोद के आरई पीसी पोलो ग्राउंड में आयोजित इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में साईमा अपनी पसंदीदा घोड़ी ‘कोको’ के साथ उतरीं और शानदार प्रदर्शन करते हुए उल्लेखनीय सफलता हासिल की।
साईमा इससे पहले भी एक ही सत्र में 40,60 और 80-80 किलोमीटर की दो रेस पूरी कर वन-स्टार राइडर बनने की अनोखी उपलब्धि अपने नाम कर चुकी हैं।
करीब एक दशक पहले,जब भारत में महिला एंड्यूरेंस राइडर्स का अस्तित्व लगभग नगण्य था,तब साईमा ने यह सफर शुरू किया। उस दौर में 60 और 80 किलोमीटर की रेस में वे देश की अकेली महिला प्रतिभागी हुआ करती थीं।कठिनाइयों के सामने हार न मानते हुए,निरंतर संघर्ष ने उन्हें ऊँचाइयों तक पहुँचाया और आज उनसे प्रेरित होकर कई महिलाएँ इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
विश्व के अधिकांश खेलों में जहाँ पुरुष-महिला के लिए अलग-अलग पैरामीटर होते हैं,वहीं घुड़सवारी में न कोई भेदभाव,न अलग श्रेणियाँ। महिलाओं को पुरुषों की ही तरह प्रतिस्पर्धा करनी होती है और प्रदर्शन के आधार पर ही जीत दर्ज करनी होती है। इसी कारण साईमा की उपलब्धियाँ और भी अधिक प्रभावशाली और प्रेरणादायी बन जाती हैं।
साईमा सैयद ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि यदि हिम्मत, मेहनत और लगन साथ हो,तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं,चाहे प्रतिस्पर्धा कितनी भी कठिन क्यों न हो।
